जिनके लिए एक अभिशाप है बुढ़ापा!

 एक तरफ हम नौजवानों का देश होने का दम भर रहे हैं, दूसरी तरफ देश में उम्रदराज आबादी आज तमाम समस्याओं का सामना कर रही है। आधुनिक जीवनशैली में बुजुर्गों का अकेलापन बढ़ता जा रहा है। अकेलेपन के कारण बुजुर्ग बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और इसकी वजह से उनमें निराशा और अवसाद की भावना घर करती जा रही है। ज्यादातर बुजुर्गों की दास्तान इतनी सी है कि नौकरी से रिटायर होने के बाद चूंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था, ऐसे में उनके घर वाले भी उनकी उपेक्षा करने लगे और यहीं से उनके एकाकीपन की यात्रा शुरू होती है।

-श्याम माथुर-

मौजूदा दौर में हम लगातार इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि हमारा देश युवाओं का देश है, क्योंकि देश की आधी से ज्यादा आबादी नौजवानों की है। लेकिन इस उजली तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि आधुनिक जीवनशैली में बुजुर्गों का अकेलापन बढ़ता जा रहा है। अकेलेपन के कारण बुजुर्ग बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और लंबे समय तक कायम रहने वाली बीमारियों के कारण उनमें निराशा और अवसाद की भावना घर करती जा रही है। ऐसे बुजुर्ग मरीजों की इच्छा रहती है कि परिवार के लोग ही उनकी देखभाल करें। परन्तु ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता। बदलती जीवनशैली के साथ या आर्थिक कठिनाइयों के कारण पति-पत्नी दोनों को ही नौकरी करनी पड़ती है। उन्हें न तो इतना समय मिलता है और न सुविधा कि वे बुर्जुग मां-बाप की देखभाल कर सकें। इस कारण वे अपने बुजुर्गों को ओल्ड-एज होम में छोड़ देते हैं और समय-समय पर उनसे मिलने जाते रहते हैं। लेकिन ऐसे स्थानों पर बुजुर्ग अपने को असहाय व उपेक्षित महसूस करते हैं।



एक राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 3 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते हैं। 9.3 प्रतिशत ऐसे हैं, जो पति या पत्नी के साथ और 35.6 प्रतिशत ऐसे हैं, जो बच्चों के साथ रहते हैं। विदेशों के उदाहरण लें, तो कई देशों में बुजुर्गों की स्थिति अच्छी नहीं है। चीन में तो छह में से एक व्यक्ति 60 से अधिक उम्र का है। वहाँ के तमाम बुजुर्ग डिमेंसिया से पीड़ित हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बुजुर्गों में अल्जाइमर की विकराल समस्या है। इसका इलाज लंबे समय तक चलता है। सभी देशों में इतनी सुविधा नहीं है कि वे मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में रख सकें। इसके समाधान के रूप में जापान ने केयर होम का रास्ता निकाला है। प्रतिदिन वीडियो कांफ्रेंसिंग कें माध्यम से अस्पतालों के डॉक्टर या नर्स बुजुर्गों से दिन में दो-तीन बार उनका हालचाल और दवाई लेने के बारे में पूछते रहते हैं।

अपने आपसपास आपको अनेक बुजुर्ग ऐसे मिल जाएंगे, जो कहते हैं कि दरअसल बुढ़ापा एक अभिशाप है। बुढ़ापे में जिंदगी जीने के लिए उन्हें हर पल संघर्ष करना पड़ता है। सामाजिक मूल्यों और आदर्शों को लोगों ने मानो तिलांजलि दे दी है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत की 20 प्रतिशत जनसंख्या वृद्ध हो जाएगी, जो कि वर्तमान में 6 प्रतिशत है। इसके बावजूद हमारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में बुजुर्गों और उनसे जुड़े रोगों के प्रति बेरुखी दिखाई गई है। बढ़ती उम्र के साथ अनेक प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। साथ ही पुराने रोग हरे हो जाते हैं। फिलहाल हमारे देश में बुजुर्गों में गैर संक्रामक रोगों एवं किसी न किसी प्रकार की दिव्यांगता की समस्या सबसे ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर के एक सर्वे के अनुसार बुजुर्गों की 80 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इस कारण उन तक पर्याप्त सेवाएं नहीं पहुंच पाती हैं। हमारे 30 प्रतिशत के लगभग बुजुर्ग गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं। हमारी स्वास्थ्य प्रणाली बुजुर्गों में बढ़ती गैर संक्रामक बीमारी जैस अल्ज़ाइमर डिमेंसिया (इन रोगों में याददाश्त प्रभावित होती है) आदि से निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखती। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी इस प्रकार के रोगियों की देखभाल के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। ऐसे मामलों में स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त तो हैं ही, साथ ही अस्पताल में भर्ती होने का खर्च भी बहुत ज्यादा है। इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे के अनुसार हाल के दौर में पुराने और असंक्रामक रोगों से पीड़ित बुजुर्गों की संख्या दुगुनी हो गई। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है।

हमारे देश में भी ऐसे बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन्हें अपने लोग ही सता रहे हैं। काफी संख्या में ऐसे बुजुर्ग हैं जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक तरीके से शोषण का शिकार हो रहे हैं। देश के बड़े शहरों में वृद्धाश्रम खुलने की रफ्तार तेज हो रही है और पिछले एक साल में ऐसे वृद्धाश्रमों में कई नए लोग भी आए हैं। वजह यह है कि महामारी के बाद देश में लगे लॉकडाउन के दौरान बुजुर्गों की देखभाल करने को लेकर परिवार में काफी ज्यादा झगड़े हुए हैं। ज्यादातर बुजुर्गों की दास्तान इतनी सी है- नौकरी से रिटायर होने के बाद मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। बहू मेरी देखभाल नहीं करना चाहती थी। मेरे बेटे ने सोचा कि इस जगह पर रहना मेरे लिए सबसे अच्छा होगा क्योंकि उसे लगा कि मैं एक बोझ हूं। जाहिर है कि अनेक परिवारों में कोरोना महामारी से पैदा हुए नकारात्मक माहौल की वजह से बुजुर्गों को ताने दिए गए। उनके साथ गलत व्यवहार किया गया और कई बार उनका शोषण भी किया गया। बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में जाने के लिए मजबूर किया गया।

हाल में हुए राष्ट्रीय सर्वे लॉन्जिटूडनल एजिंग स्टडीज ऑफ इंडिया (एलएएसआई)में भी गंभीर मामलों का पता चला है। सर्वे के नतीजों में बताया गया कि देश में 60 और उससे अधिक आयु वर्ग के लगभग 5 प्रतिशत लोगों के साथ पिछले एक साल में शारीरिक और भावनात्मक शोषण हुआ है। उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। यह समस्या बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सबसे अधिक देखी गई। दुर्व्यवहार करने वाले कोई और नहीं, बल्कि वे लोग ही थे जिन्हें इन बुजुर्गों ने पाल-पोस कर बड़ा किया था। यानी उनके बच्चे और पोते-पोतियां।

सामाजिक कलंक और किसी तरह की सहायता न मिलने के डर से ये बुजुर्ग अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के मामलों की शिकायत नहीं करते हैं। दरअसल बुजुर्गों का समूह एक कमजोर समूह है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुर्व्यवहार का तरीका क्या है, लेकिन इसका असर काफी ज्यादा होता है। व्यक्ति को लगातार मानसिक चोट पहुंचती है। ये लोग पहले से ही अपनी उम्र की वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे होते हैं। बुजुर्गों का अपमान करना, दुर्व्यवहार का सबसे सामान्य तरीका है। जब उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार उनसे बात नहीं करते, समय नहीं बिताते या उनकी जरूरतों का ख्याल नहीं रखते हैं, तो ऐसे में बुजुर्ग अपमानित महसूस करते हैं।

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