वैश्विक गायक मुकेश पर ‘सान्निध्य लंदन’ ने किया विशेष अन्तरराष्ट्रीय सभा का आयोजन

-ब्यूरो रिपोर्ट- नई दिल्ली। ‘सान्निध्य लंदन’ और ‘साउथ एशिएन सिनेमा फाउंडेशन’ ने भारतीय सिनेमा की रूहानी और दर्द भरी आवाज़ मुकेश की 46वीं पुण्यतिथि के अवसर पर ज़ूम की सहायता से समारोह आयोजित किया। 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में जन्मे मुकेश का यह जन्मशती वर्ष है। इस ज़ूम समारोह पर मुकेश के जीवन और कृतित्व पर फिल्म इतिहासकार और लेखक डॉ॰ राजीव श्रीवास्तव की नई पुस्तक 'भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश' का ‘लंदन लोकार्पण’ किया गया। यह किताब भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित की गई है। ‘सान्निध्य लंदन’ की 34वीं कड़ी में भारतीय उच्चायोग लंदन और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की सहभागिता रही। इस सत्र में मुकेश के जीवन से जुड़े कई ख़ास मेहमानों ने भी शिरकत की। के. भरत जो गायक मुकेश के साथ अकोर्डियन बजाते थे, उनकी बहन हेमा जिन्हे मुकेश अपनी बेटी की तरह मानते थे और जोधपुर के ए. के. व्यास ने भी इस शो में हिस्सा लिया जो मुकेश को उन्हीं के गीत गाकर सुनाया करते थे। एक और ख़ास अतिथि भारत के सुप्रसिद्ध गुगली गेंदबाज़ बी. एस. चंन्द्रशेखर थे जो मुकेश के गीत गुनगुनाते हुए क्रिकेट के महारथियों को पवेलियन का रास्ता दिखाते थे। बनारस से पत्रकार अत्रि भारद्वाज, गुजरात से जज अशोक नानावती, संगीत निर्देशक व प्रसिद्ध मेंडोलियन वादक किशोर देसाई और गायिका दिलराज कौर ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेकर मुकेश के जीवन और कृतित्व को जीवंत किया।
‘सान्निध्य लंदन’ और ‘साउथ एशिएन सिनेमा फाउंडेशन’ के संयोजक और निदेशक तथा बी.बी.सी. लंदन (हिन्दी सेवा) के पूर्व प्रसारक ललित मोहन जोशी ने अपनी भूमिका में कहा कि डॉ॰ राजीव श्रीवास्तव की किताब का निचोड़ मुकेश के कुंदन लाल सहगल से मुकेश बन जाने की कहानी है। मुकेश बचपन से ही कालजयी गायक कुंदन लाल सहगल की आवाज़ के दीवाने थे। दिल्ली का घर छोड़ दिया, बम्बई आ गए और संघर्ष किया। अंततः इच्छा शक्ति रंग लायी। मुकेश को राष्ट्रीय पहचान दिलाई 'पहली नज़र' (1945) के उस मशहूर गीत 'दिल जलता है तो जलने दे' ने जिसे सफ़दर आह ने लिखा था और अनिल बिस्वास ने सुरों में ढाला था। इस गीत की तासीर, इसमें निहित दर्द और इसकी आवाज़ हूबहू के. एल. सहगल की थी। स्वयं कुंदन लाल सहगल इस गीत को सुन कर अचरज में पड़ गए और कहने लगे कि मुझे याद नहीं आता मैंने कब ये गाना गाया था। ललित मोहन जोशी से संवाद के दौरान इस पुस्तक के लेखक डॉ॰ राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि 1950 के दशक में 'आवारा हूँ' और 'मेरा जूता है जापानी’ जैसे कालजयी गीतों ने मुकेश को भारत का पहला वैश्विक गायक बनाया। मुकेश की सफलता का श्रेय शैलेन्द्र जैसे गीतकारों को भी जाता है जो आम इंसान की ज़बान में लिखते थे पर बात बड़ी गहरी और दार्शनिकता से लबरेज़ होती थी। आ अब लौट चलें, नैन बिछाये बाँहें पसारे तुझको पुकारे देश तेरा जैसे गीतों ने मुकेश की आवाज़ को एक टीस दी। मुकेश ने ग़ैर फ़िल्मी गीत भी खूबसूरती से गाये और भक्ति संगीत को नई ऊंचाई दी। ‘तुलसी रामायण’ की रिकॉर्डिंग उनके लिए एक अलौकिक अनुभव था। मुकेश के करीबी अकोर्डियन वादक के. भरत ने भावुक होकर अपनी यादें साझा करते हुए 'आवारा हूँ' और 'जाने कहाँ गए वो दिन' बजाकर सबका मन मोह लिया। इसके अलावा ए. के. व्यास ने 'सारंगा तेरी याद में’ जैसे गीत प्रस्तुत किए। बनारस से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अत्रि भरद्वाज ने कहा कि सत्तर के दशक में मुकेश के संपर्क में आना उनके जीवन को बदलने वाला अनुभव था। मशहूर गायिका दिलराज कौर पूरे कार्यक्रम में रहकर मुकेश के साथ गाए अपने गीत सुनाये और उन पलों को भी साझा किया, जो मुकेश के साथ उन्होंने व्यतीत किए थे। कार्यक्रम में युवा गायिका उत्तरा सुकन्या जोशी और डॉ॰ कुसुम पंत जोशी ने भी गीत गाकर मुकेश की सार्वभौमिकता को उजागर किया। कार्यक्रम में गायक मुकेश की भतीजी ऋतु भी उपस्थित थीं और उन्होंने भी अपने मुकेश ताऊ जी के संग अपने बचपन की यादें साझा की। इस मौके पर प्रकाशन विभाग के संयुक्त निदेशक राकेश रेणु ने कहा कि मुकेश पर डॉ॰ राजीव श्रीवास्तव की यह पुस्तक फिल्म इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो पढ़ा जाना चाहिए। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में भारतीय उच्चायोग लंदन की हिंदी-संस्कृति अताशे नंदिता साहू ने कहा कि सान्निध्य लंदन भारतीय सिनेमा और कला के ऐसे कार्यक्रमों के ज़रिये एक मत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ‘भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश’ एक ऐसी शोधपूर्ण एवं प्रामाणिक पुस्तक है जो वैश्विक स्तर पर संग्रहणीय और व्यापक रूप से पढ़ी जाने के योग्य है। डॉ॰ राजीव श्रीवास्तव की यह पुस्तक वृहद शोध, साक्षात्कार, नायाब तस्वीरों और रंगीन आर्ट पृष्ठों पर छपी 304 पेज की किताब है जिसे सूचना प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन प्रभाग ने प्रकाशित किया है। इसका मूल्य 810 रुपए है।

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