बोल कि लब आजाद हैं तेरे!
बॉम्बे हाई कोर्ट के हालिया फैसले के बाद अब केंद्र सरकार पूरे देश में कहीं भी डिजिटल मीडिया के लिए कोड ऑफ कंडक्ट या नीति संहिता लागू नहीं कर सकेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि डिजिटल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने की आजादी अब बरकरार रहेगी। फैसला देते समय अदालत ने लोकतंत्र में असहमति की जरूरत पर टिप्पणी भी की। अदालत ने कहा, ‘देश के सही प्रशासन के लिए जन सेवकों के लिए आलोचना का सामना करना स्वास्थ्यप्रद है, लेकिन 2021 के नियमों की वजह से किसी को भी इनकी आलोचना करने के बारे में दो बार सोचना पड़ेगा।’
- श्याम माथुर -
जो लोग देश में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं, आपकी और हमारी वैचारिक स्वतंत्रता के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं और स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया को कायम रखने के लिए हर पल जद्दोजहद कर रहे हैं, उन्हें पिछले दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट ने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने नए डिजिटल मीडिया नियमों के दो प्रावधानों पर रोक लगा दी है। अदालत ने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइन्स एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स, 2021 के नियम 9(1) और 9(3) पर रोक लगाई है और साफ कहा है कि दोनों नियम अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं और ये सरकार की कानून बनाने की शक्ति के परे हैं। इन दोनों नियमों के तहत इंटरनेट पर समाचार प्रकाशित करने वालों को सरकार द्वारा तय की गई नीति का पालन करना अनिवार्य था। इसके अलावा इनके तहत एक तीन-स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली बनाने की भी आदेश दिया गया था, जिसकी अध्यक्षता सरकार के ही हाथ में होगी। पत्रकारों और मीडिया संस्थानों ने इन नियमों की कड़ी आलोचना की थी और कुछ जागरूक मीडिया कर्मियों ने नए नियमों के खिलाफ अलग- अलग अदालतों में मामला दर्ज कर दिया था। बॉम्बे हाई कोर्ट में मामला दर्ज कराया था ‘द लीफलेट’ वेबसाइट चलाने वाली कंपनी और वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने।
बॉम्बे हाई कोर्ट के हालिया फैसले के बाद अब केंद्र सरकार पूरे देश में कहीं भी डिजिटल मीडिया के लिए कोड ऑफ कंडक्ट या नीति संहिता लागू नहीं कर सकेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि डिजिटल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने की आजादी अब बरकरार रहेगी और उस पर किसी तरह का अंकुश सरकार नहीं लगा सकेगी। अदालत ने नीति-संहिता को गैर जरूरी बताते हुए यह भी कहा कि उसकी वजह से इंटरनेट पर सामग्री का ऐसा विनियमन होगा जिससे लोगों की सोचने की आजादी छिन जाएगी और उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल करने में भी घुटन महसूस होगी।
दरअसल पिछले लंबे समय से सरकार इस प्रयत्न में जुटी है कि डिजिटल मीडिया को नियमन के दायरे में लिया जाए, ताकि इंटरनेट के जरिये सरकार के कार्यकलापों की आलोचना करना आसान नहीं रहे। हाल के दौर में डिजिटल मीडिया ने बड़ी तेजी से अपनी एक अलग पहचान बनाई है और ऐसे प्लेटफॉर्म पर लोग खुलकर अपनी राय का इजहार करने लगे हैं। कुछ मामलों में तो डिजिटल मीडिया ने लोगों की राय और उनकी धारणा को भी प्रभावित किया। डिजिटल मीडिया की यही लोकप्रियता सरकार की आंखों में खटकने लगी और इसी साल 25 फरवरी को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमों का खुलासा कर दिया। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि डिजिटल मीडिया की पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए ये नियम लाए गए हैं और इसके लिए जनता और हितधारकों से विस्तृत परामर्श भी किया गया है। इनके मुताबिक सोशल मीडिया और सभी मध्यस्थों को कानून का पालन करना होगा, ऐसा न करने पर उन्हें कानूनी सुरक्षा नहीं मिलेगी। ये नियम लागू कराने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की होगी। नियम के अनुच्छेद 4(2) में कहा गया है कि किसी गलत चैट या मैसेज को सबसे पहले किसने भेजा, सरकार के पूछने पर उसकी पहचान भी बतानी होगी।
गैर-कानूनी जानकारी या पोस्ट हटाने का काम भी कंपनियों की ओर से नियुक्त अधिकारी करेंगे। सोशल मीडिया कंपनियां यूजर्स के लिए शिकायत निवारण प्रक्रिया का एक ढांचा बनाएंगीं। इसके लिए कंपनियां तीन अधिकारियों- चीफ कम्पलायंस ऑफिसर, नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन और रेसिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर की नियुक्ति करेंगीं। इनका नंबर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा ताकि लोगों को शिकायत करने में आसानी हो। ये अधिकारी लोगों की शिकायत सुनेंगे और 15 दिन के अंदर उसका निस्तारण करेंगे। इन अधिकारियों को हर महीने की कार्रवाई की एक रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।
देश की तमाम बड़ी कंपनियों ने नए नियमों पर कड़ा एतराज किया और इन प्रावधानों को हटवाने के लिए उन्होंने लगातार सरकार से बातचीत की, लेकिन बातचीत का कोई नतीजा ना निकलने के बाद इन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला ले लिया। इसी साल जून महीने में 13 बड़ी मीडिया कंपनियों ने नए आईटी नियमों के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया और अदालत से राहत की गुहार लगाई। मीडिया कंपनियों की याचिका में कहा गया कि इन नियमों से प्रेस की अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिश की जा रही है। यह मुकदमा डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) की तरफ से किया गया, जिसके सदस्यों में टाइम्स इंटरनेट, एचटी डिजिटल, एनडीटीवी कन्वर्जेन्स, जागरण प्रकाशन, दैनिक भास्कर कॉर्प, एबीपी नेटवर्क, मलयाला मनोरमा और अन्य प्रकाशक शामिल हैं।
ऐसा ही मामला बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए लगा। इसमें पिछले हफ्ते फैसला देते समय बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्रकारों के लिए आचरण के मानक भारतीय प्रेस परिषद् ने पहले से तय किए हुए हैं, लेकिन ये मानक नैतिक हैं, वैधानिक नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत प्रोग्राम कोड सिर्फ केबल सेवाओं के विनियमन के लिए है, इंटरनेट पर लेखकों/संपादकों/प्रकाशकों के लिए नहीं। अदालत ने साफ कहा कि डिजिटल मीडिया पर विनियमन से लोगों की सोचने की आजादी छिन जाएगी।