शिक्षा जगत में क्यूआर कोड क्रांति के जनक हैं प्राइमरी शिक्षक रणजीतसिंह डिसले

कोरोना काल में जब हमारी शिक्षा घरों में कैद होकर रह गई हो, ऐसे माहौल में रणजीतसिंह डिसले जैसे शिक्षक उम्मीद की किरण के तौर पर उभरे हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आॅनलाइन प्लेटफाॅर्म पर बच्चों के लिए शिक्षा को सरस सुरुचिपूर्ण और मजेदार बनाने में डिसले लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं, जो बच्चों को खूब पसंद भी आ रहे हैं। उम्मीद की जा सकती है कि डिसले द्वारा दिखाई राह पर चल कर देश के अन्य शिक्षक भी महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

- राजेन्द्रमोहन शर्मा -

हाल ही हमने गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया है और इस अवसर पर गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा और आदर का भाव प्रदर्शित किया है। विशेष रुप से अपने स्कूली शिक्षा के गुरुओं के प्रति जो अपरिमित श्रद्धा और आदर भाव है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यद्यपि गुरु मंत्र देने वाले और धार्मिक गुरुओं का भी हमारे समाज में बहुत ऊंचा स्थान है लेकिन सच बात यह है कि बुद्धि विवेक और समझ का विकास करने वाले स्कूली शिक्षा के शिक्षक यदि ईमानदारी से काम करते हैं तो बड़े से बड़े पद पर बैठा हुआ व्यक्ति भी उन्हें आजीवन भुला नहीं सकता।  

महाराष्ट्र के रणजीत सिंह डिसले एक ऐसे शिक्षक के रूप में उभर कर सामने आए हैं जिन्हें आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया आदर और सम्मान के साथ देख रही है। ग्लोबल टीचर अवार्ड से सम्मानित एकमात्र भारतीय शिक्षक के रूप में रणजीतसिंह डिसले आज लाखों करोड़ों भारतीय शिक्षकों के आदर्श रूप में उभरे हैं। गर्व की बात यह है कि ग्लोबल टीचर प्राइज जीतने वाले पहले भारतीय शिक्षक रणजीत सिंह डिसले यानी डिस्ले गुरूजी को विश्व बैंक ने सलाहकार नियुक्त किया है। उनका कार्यकाल जून 2024 तक रहेगा। विश्व बैंक ने दुनिया भर के शिक्षकों के ट्रेनिंग की गुणवत्ता में सुधार के लिए ग्लोबल कोच नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसका उद्देश्य दुनिया भर के बच्चों की शिक्षा के स्तर को बढ़ाना, शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम में अधिक सामंजस्य लाना, शिक्षकों को समय पर ट्रेनिंग प्रदान करना और ट्रेनिंग के माध्यम से शिक्षकों में नेतृत्व गुणों का विकास करना है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दुनिया भर से 12 व्यक्तियों को सलाहकार के रूप में चुना गया है इनमें डिसले भी एक हैं।

रणजीतसिंह डिसले जिनका काम है बच्चों को पढ़ाना उन्हें ग्लोबल अवार्ड के रूप में इनाम  में मिले हैं सात करोड़ रुपए। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव के एक जिला परिषद प्राइमरी स्कूल के टीचर रणजीत सिंह डिसलेयह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय हैं। रणजीतसिंह कहते हैं, ‘‘टीचर बदलाव लाने वाले लोगों में से होते हैं जो चॉक और चुनौतियों को मिलाकर अपने स्टूडेंट की जिंदगी बदलते हैं। इसलिए मैं यह कहते हुए हुए खुश हूं कि मैं अवार्ड राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों को दे रहा हूँ। मेरा मानना है कि साथ मिलकर हम दुनिया को बदल सकते हैं।’’

दरअसल रणजीत को लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने के साथ-साथ क्यूआर कोड बेस्ड टेक्स्ट बुक की क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। वो भी एक ऐसे गांव में बदलाव की रोशनी जलाई है जहां कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। इस अवार्ड के लिए डिसले के अतिरिक्त 140 स्कूलों के 12,000 और शिक्षकों के भी नामांकित थे। डिसले 83 देशों में ऑनलाइन विज्ञान पढ़ाते आए हैं और एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना चलाते हैं जिसमें संघर्षरत युवाओं की शिक्षा के लिए भी साथ जुड़े हैं। रणजीत डिसले इनोवेटिव स्टाइल में पढ़ाने वाले टीचर हैं। 

डिसले ने चैथी कक्षा तक के बच्चों के लिए कोर्स बुक को क्यूआर कोडेट बनाया है। मतलब किताब में मौजूद चैप्टर का क्यू आर कोड बनाया है। सारे क्यूआर कोड को किताब पर छापा गया। जैसे कि किताब में दी गई कविताएं या कहानियों का वीडियो भी तैयार किया गया। जब बच्चे किताब पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करते हैं तो उस चैप्टर का वीडियो या ऑडियो स्टूडेंट मोबाइल, लैपटॉप या टैब पर आसानी से देख सकते हैं, सुन सकते हैं और पढ़ सकते हैं। इस तरह की टेक्नोलॉजी बच्चों को स्कूल की ओर खींच लाई। साथ ही अच्छे अंक लाने वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ गई। इतना ही नहीं वे इन वीडियो के माध्यम से तो बच्चों को दूरदराज के पर्यटन स्थलों की सैर कराते ही हैं साथ ही लाइव चैट द्वारा वहाँ के लोगों से बच्चों का सीधा संवाद भी कराते हैं। अब उन्होंने बच्चों में नेतृत्व के गुण उभारने के लिए नई मुहिम भी शुरू कर दी है।

डिसले की इन्ही कोशिशों के दम पर 2016 में इनके स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल से सम्मानित किया गया था। यही नहीं डिसले की इस कामयाबी का जिक्र माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ (सत्य नडेला) ने अपनी पुस्तक हिट रिफ्रेश में भी किया है। केंद्र सरकार ने रणजीत सिंह को 2016 में इनोवेटिव रिसर्चर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड भी दिया था। साथ ही उन्होंने 2018 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के इनोवेटर ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी जीता।

सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं, बल्कि रणजीत सिंह ने दुनिया के आठ देशों में घूम-घूम कर 5,000 स्टूडेंट्स को साथ लेकर एक शांति सेना बनाई है। ये आठ देश- भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक, इजरायल, फिलिस्तीन, अमेरिका और उत्तर कोरिया हैं। इन देशों में शांति स्थापित करने की कोशिश में उन्होंने लेट्स क्रॉस द बॉर्डर प्रोजेक्ट शुरू किया। 

रणजीत माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ब्रिटिश काउंसिल, प्लिपग्रिड, प्लकर्स जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस के साथ काम करते हैं, और वर्तमान में वर्चुअल फील्ड ट्रिप प्रोजेक्ट के जरिए दुनियाभर के 87 देशों के 300 से ज्यादा स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पिछले नौ सालों में रणजीत ने 12 अंतरराष्ट्रीय और 7 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। इसके अलावा 12 एजुकेशनल पेटेंट उनके नाम पर हैं।      

(लेखक जाने-माने साहित्यकार और शिक्षाविद हैं।)


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा