पोर्न फिल्मों से उपजा देह का उन्माद
अश्लील सामग्री के मामले में कानूनी प्रावधान और उससे संबंधित आईपीसी में मौजूद धाराओं से स्पष्ट है कि भारत में अश्लील सामग्री देखने को किसी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अपराध सिर्फ उसके निर्माण और प्रसार या वितरण को माना गया है। कानून के जानकार कहते हैं कि अश्लीलता जिस तरह फैल रही है, समय आ गया है कि इसे लेकर अलग से कानून बनाया जाए, जिसमें इसके लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नए जमाने के साधनों का भी स्पष्ट उल्लेख हो।
- श्याम माथुर -
आपकी नजरों में भले ही पोर्न फिल्म और इरोटिक फिल्म में कोई फर्क नहीं हो, लेकिन अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी की मासूमियत को क्या कहिए, जो लगातार यह कह रही हैं कि उनके पति राज कुंद्रा जिन वीडियोज के लिए काम कर रहे थे, वह इरोटिक फिल्म थी और पोर्न फिल्मों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। शिल्पा शेट्टी ने पुलिस स्टेटमेंट में कहा है कि उनको पोर्न ऐप और पोर्न फिल्मों के बारे में कुछ नहीं पता है और उनके पति बेकसूर हैं। अश्लील फिल्में बनाने के आरोप में मुंबई पुलिस ने शिल्पा शेट्टी के पति और बिजनेसमैन राज कुंद्रा को गिरफ्तार किया है। इस मामले में पुलिस हर रोज कुछ नए लोगों से पूछताछ कर रही है। राज कुंद्रा फिलहाल पुलिस रिमांड में हैं और पुलिस उनसे इस संबंध में एक-एक जानकारी लेने की कोशिश कर रही है।
राज कुंद्रा की गिरफ्तारी के बाद देश में अश्लीलता
या अश्लील सामग्री के सवाल पर मौजूदा कानूनी प्रावधानों को लेकर चर्चा हो रही है। इसी
दौरान एक बार फिर ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या पोर्नोग्राफी को लेकर हमारे यहां जो
मौजूदा कानून हैं, क्या वे इतने सख्त हैं कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई हो पाएगी।
ज्यादातर लोग पोर्न से संबंधित पुराने कानून में संशोधन की वकालत कर रहे हैं। कानून
के जानकार कहते हैं कि अश्लीलता जिस तरह फैल रही है, समय आ गया है कि
इसको लेकर अलग से कानून बनाया जाए, जिसमें इसके लिए इस्तेमाल
किये जाने वाले नए जमाने के साधनों का भी स्पष्ट उल्लेख हो।
इसी साल भारत सरकार ने आईटी एक्ट के दिशानिर्देश
भी जारी किए हैं, लेकिन जानकार कहते हैं कि इसके बावजूद अब भी ओटीटी प्लेटफॉर्म
पर अश्लील सामग्री दिखाए जाने को लेकर कोई ठोस नीति स्पष्ट रूप से नहीं नजर नहीं आ
रही है। जो कानून मौजूद हैं, उनमें फिल्मों या इंटरनेट
का उल्लेख नहीं है। जानकार लोगों का मानना है कि आईटी एक्ट भी उतना धारदार नहीं है, जिसकी खामियों
का लाभ उठाते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म या इंटरनेट पर मौजूद ऐप धड़ल्ले से अश्लील सामग्री
परोस रहे हैं और महिलाओं या बच्चों को शोषण का शिकार बनना पड़ रहा है।
दुनियाभर में पोर्नोग्राफी एक बड़ा कारोबार
है। इसके दायरे में ऐसे फोटो, वीडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और अन्य
सामग्री आती है, जो यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हों। ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक
ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी
और के जरिए प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर एंटी पोर्नोग्राफी लॉ लागू होता है। दुनिया
की सबसे बड़ी पोर्न वेबसाइट मानी जाने वाली ‘पोर्नहब’ के मुताबिक, भारत उसका सबसे
तेजी से बढ़ता बाजार है। हालाँकि बढ़ती यौन हिंसा के पीछे कई विशेषज्ञ पोर्न को भी कहीं
न कहीं जिम्मेदार मानते हैं। साल 2018 में भारत के दूरसंचार विभाग ने देश में इंटरनेट
सेवा उपलब्ध करवाने वाले तमाम सर्विस प्रोवाइडर्स को आदेश दिया है कि वे 827 पॉर्न
वेबसाइटों को ब्लॉक कर दें। यह आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद दिया गया
जिसमें उन्होंने देश में पोर्न वेबसाइटों को बंद करने की बात कही थी। हाईकोर्ट में
बलात्कार के एक मामले की सुनवाई के दौरान अभियुक्त ने कहा था कि उसने पीड़िता का बलात्कार
करने से पहले पोर्न वीडियो देखा था।
ऐसी सूरत में यह सवाल सबसे अहम है कि देश में
बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए पोर्न जिम्मेदार है या मानसिकता? ज्यादातर लोग मानते
हैं कि पोर्न देखने की लत से भारत में रेप की घटनाएं होती हैं। ऐसा मानने वालों में
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं। कुछ अर्सा पहले प्रधानमंत्री को लिखे
पत्र में नीतीश ने पोर्न वेबसाइटों को अपराधों की जड़ मानते हुए उन पर पूरी तरह से रोक
लगाने की मांग की थी, क्योंकि उनके मुताबिक वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम
पर ऐसा अनुचित कंटेंट देखने नहीं दिया जा सकता।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले
एक दशक के दौरान बलात्कार के सवा चार लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। अगर रेप
का ये आंकड़ा लगातार बढ़ा है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि इंटरनेट के जरिए पोर्न का एक बहुत
भीषण संजाल बन गया है, ये आंकड़ा इसलिए भी बढ़ा
है कि पुरुषों में महिलाओं के प्रति एक सामान्य न्यूनतम व्यवहार और सम्मान की भावना
कमतर होती जा रही है, स्त्रियां जिस तत्परता से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनती हुई बढ़
रही हैं, पुरुष में वर्चस्व और अहम का दैत्य उतना ही आकार लेता जाता है।
वो उसे हासिल करना चाहता है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि वो महज उसकी वासना है, वो उसे हासिल कर
पराजित करना चाहता है, उसका दोयम दर्जे का संदेश
उसे देते रहना चाहता है। इसी मानसिकता के बीच कहीं ना कहीं पोर्न की तरफ रुझान बढ़ता
नजर आता है।
राज कुंद्रा के मामले में भी इसी तरह की मानसिकता
नजर आती है। पुलिस का दावा है कि राज कुंद्रा ऐसी लड़कियांे को अपना शिकार बनाता था, जो मायानगरी मुंबई
मंे पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। ऐसी लड़कियों को वह वेब सीरीज या ओटीटी प्लेटफॉर्म
पर बन रहीं फिल्मों में काम दिलाने का आश्वासन देता और जिस दिन शूटिंग शुरू होती थी, उस दिन उन्हें
जबरन अश्लील दृश्य फिल्माने के लिए मजबूर किया जाता था। शूटिंग पूरी हो जाने पर इन्हें
कुछ खास मोबाइल ऐप पर अपलोड भी किया जाता था और इसका प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम
से किया जाता था। कुंद्रा पर इस तरह की फिल्मों के निर्माण करने के साथ-साथ ब्रिटेन
स्थित एक निर्माता कंपनी के ऐप के जरिए इन्हें अपलोड करने का भी आरोप है। भारत के कानून
के हिसाब से अश्लील सामग्री का निर्माण, वितरण या प्रसार एक आपराधिक कृत्य है। इसलिए कुंद्रा और दुसरे अभियुक्तों के
खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293 के अलावा धारा 420
और आईटी एक्ट की धारा 67 और 67 ए के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा महिलाओं
को अभद्रता से पेश करने के आरोप में अलग से धाराएँ भी लगाई गई हैं।
कानून के हलकों में इन्हीं प्रावधानों को लेकर
चर्चा हो रही है। जानकार मानते हैं कि नए जमाने के अपराध को पुराने जमाने के कानून
के जरिए नहीं रोका जा सकता है। उनका कहना है कि 1860 में बने इस कानून को और भी स्पष्ट
किया जाने की जरूरत है, जिसमें अपराध, सजा, अभियुक्त की भूमिका
और क्षेत्राधिकार की व्याख्या स्पष्ट रूप से होनी चाहिए।