अभिव्यक्ति की आजादी, प्रेस के अधिकार को लेकर राजद्रोह कानून की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

 - ब्यूरो रिपोर्ट -

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में दो तेलुगू न्यूज चैनल्स के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत का कहना है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया के अधिकारों के संदर्भ में राजद्रोह कानून की व्याख्या की समीक्षा करेगी। बता दें कि राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के सांसद के. रघु राम कृष्ण राजू के बयान को प्रसारित करने के संबंध में राज्य के  दो न्यूज चैनल्स टीवी 5’ और एबीएन आंध्रा ज्योतिके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। राजू पर आरोप है कि वह नफरत फैलाने वाले भाषणों से समुदायों में द्वेष फैलाने और सरकार के खिलाफ असंतोष को बढ़ावा देने के कृत्य में शामिल हैं।


दोनों मीडिया संस्थानों ने राजद्रोह के मामले में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। एक मीडिया हाउस ने दावा किया था कि यह राज्य में न्यूज चैनल्स को डराने का एक प्रयास हैताकि वे सरकार की आलोचना वाली सामग्री दिखाने से बचें। चैनलों ने दावा किया कि यह प्राथमिकी राजू के बयानों को दिखाने के कारण दर्ज की गई हैजो अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के आलोचक रहे हैं।

टीवी 5 समाचार चैनल की स्वामी श्रेया ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य ऐसी भ्रामक प्राथमिकीदर्ज कर और कानून का दुरुपयोग कर अपने आलोचकों और मीडिया का मुंह बंद करना चाहता है। टीवी चैनल के खिलाफ प्राथमिकी का संबंध सांसद राजू के विरूद्ध दर्ज राजद्रोह के मामले से है जिन्हें पहले ही आंध्र प्रदेश पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। चैनलों ने दावा किया कि यह प्राथमिकी राजू के बयानों को दिखाने के कारण दर्ज की गयी है, जो अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के आलोचक रहे हैं।

सोमवार को इस मामले को सुनते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस। रवींद्र भट की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने आंध्र प्रदेश पुलिस को इन चैनल्स और उनके एम्प्लॉयीज के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है। पीठ ने चैनलों की याचिकाओं पर राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब भी मांगा है। इसके साथ ही पीठ का कहना है, ‘हमारा मानना है कि भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों 124ए (राजद्रोह) और 153 (विभिन्न वर्गों के बीच कटुता को बढ़ावा देना) की व्याख्या की जरूरत है, खासकर प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर।

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