देश में सिर्फ 38 फीसदी लोग करते हैं खबरों पर यकीन, यह संख्या अंतरराष्ट्रीय स्तर से भी नीचे

 -ब्यूरो रिपोर्ट-

जयपुर। हमारे देश में सिर्फ 38 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो समाचारों में पूरा भरोसा करते हैं, जबकि इनकी तुलना में 62 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो कहते हैं कि खबरें सच्ची हो, यह जरूरी नहीं। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट ने हाल ही इस बारे में एक सर्वे किया था, जिसके नतीजों के आधार पर डीडब्ल्यू वल्र्ड पर चारु कार्तिकेय ने एक दिलचस्प रिपोर्ट पोस्ट की है। इस सर्वे में भारत में समाचारों की खपत को लेकर दिलचस्प नतीजे सामने आए हैं। आइए, देखते हैं भारत में लोग किस माध्यम से खबरें देखना ज्यादा पसंद करते हैं।



खबरों पर भरोसा कम- रॉयटर्स इंस्टीट्यूट ने पाया कि भारत में सिर्फ 38 प्रतिशत लोग खबरों पर भरोसा करते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर से नीचे है। पूरी दुनिया में 44 प्रतिशत लोग खबरों पर भरोसा करते हैं। फिनलैंड में खबरों पर भरोसा करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है (65 प्रतिशत) और अमेरिका में सबसे कम (29 प्रतिशत)। भारत में लोग टीवी के मुकाबले अखबारों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

सोशल मीडिया पर कम यकीन- 45 प्रतिशत लोगों को परोसी गई खबरों के मुकाबले खुद खोज कर पढ़ी गई खबरों पर ज्यादा भरोसा है। सोशल मीडिया से आई खबरों पर सिर्फ 32 प्रतिशत लोगों को भरोसा है।

इंटरनेट पसंदीदा माध्यम- 82 प्रतिशत लोग खबरें इंटरनेट पर देखते हैं, चाहे मीडिया वेबसाइटों पर देखें या सोशल मीडिया पर। इसके बाद नंबर आता है टीवी का (59 प्रतिशत) और फिर अखबारों का (50 प्रतिशत)।

स्मार्टफोन सबसे आगे- खबरें ऑनलाइन देखने वाले लोगों में से 73 प्रतिशत स्मार्टफोन पर देखते हैं। 37 प्रतिशत लोग खबरें कंप्यूटर पर देखते हैं और सिर्फ 14 प्रतिशत टैबलेट पर।

व्हॉट्सऐप, यूट्यूब की लोकप्रियता- इंटरनेट पर खबरें देखने वालों में से 53 प्रतिशत लोग व्हॉट्सऐप पर देखते हैं। इतने ही लोग यूट्यूब पर भी देखते हैं। इसके बाद नंबर आता है फेसबुक (43 प्रतिशत), इंस्टाग्राम (27 प्रतिशत), ट्विटर (19 प्रतिशत) और टेलीग्राम (18 प्रतिशत) का।

यह ध्यान देने की जरूरत है कि ये तस्वीर मुख्य रूप से अंग्रेजी बोलने वाले और इंटरनेट पर खबरें पढ़ने वाले लोगों की है। सर्वेक्षण सामान्य रूप से ज्यादा समृद्ध युवाओं के बीच किया गया था, जिनके बीच शिक्षा का स्तर भी सामान्य से ऊंचा है। इनमें से अधिकतर शहरों में रहते हैं। इसका मतलब इसमें हिंदी और स्थानीय भाषाओं बोलने वालों और ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की जानकारी नहीं है।

Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा