संकट में सांस, गफलत में सरकार
किसी ने भी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों में मरीज तड़प-तड़प कर दम तोड़ देंगे। अनेक अस्पतालों में कई मरीज ऑक्सीजन पर निर्भर हैं, लेकिन उन्हें उपलब्ध कराने के लिए खुद अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। मामला जब अदालत में पहुंचा तो दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन के इस संकट पर बहुत ताज्जुब व्यक्त किया और केंद्र सरकार को फटकार लगाई कि स्थिति को सुधारने के लिए वह पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है। अदालत की फटकार के बाद केंद्र सरकार हरकत में आई, लेकिन संकट अभी टला नहीं है।
- श्याम माथुर -
‘अगर केंद्र, राज्य या स्थानीय
प्रशासन में कोई अधिकारी ऑक्सीजन सप्लाई में अड़चन डाल रहा है, तो हम उसे बख्शेंगे
नहीं,
उसे फांसी पर लटका देंगे।’
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते जब यह टिप्पणी
की,
तब पूरे देश ने जाना कि मेडिकल ऑक्सीजन को लेकर हम कितने जबरदस्त बुरे दौर से गुजर
रहे हैं। या फिर जिन लोगों ने दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल के बुजुर्ग डायरेक्टर
को टीवी चैनलों पर आंसू बहाते देखा है, उन्हें इस बात का अहसास
हो गया होगा कि ऑक्सीजन की कमी का यह संकट कितना गहरा है। पिछले सप्ताह जयपुर गोल्डन
अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण पच्चीस मरीजों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया था।
जाहिर है कि ऑक्सीजन की किल्लत ने देशभर में दहशत पैदा कर दी है। देश में कोविड संक्रमण
की ताजा लहर के बीच ऑक्सीजन की इतनी कमी हो गई है कि अस्पतालों को अदालतों के दरवाजे
खटखटाने पड़ रहे हैं।
देश में कोरोना के मामले जिस तेजी से सामने
आ रहे हैं, उससे साफ हो गया है कि देश का हेल्थकेयर सिस्टम चरमरा गया है।
केंद्र और राज्य सरकारें पूरी तरह गफलत में हैं और उन्होंने देश के लोगों को मरने के
लिए छोड़ दिया है। शहरों से लेकर दूरदराज के इलाकों तक- सबका एक ही हाल है। पश्चिम में
महाराष्ट्र और गुजरात से लेकर उत्तर में हरियाणा और मध्य भारत में मध्य प्रदेश तक सभी
जगह मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी पैदा हो गई है। कुछ अस्पतालों ने बाहर ‘ऑक्सीजन आउट ऑफ
स्टॉक’ की तख्ती लगा दी है और कुछ अस्पतालों ने तो मरीजों को कहीं और
जाने के लिए कहना शुरू कर दिया है। राजधानी दिल्ली के छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम
भी यही कर रहे हैं। कई शहरों में मरीजों के बेहाल परिजन खुद सिलिंडर लेकर री-फिलिंग
सेंटर के बाहर लाइन लगा कर खड़े दिख रहे हैं। कोरोना के शिकार कई मरीज इलाज के इंतजार
में दम तोड़ रहे हैं। आॅक्सीजन की इस जबरदस्त किल्लत को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट को
कहना पड़ा कि ‘चाहे भीख मांगिए, उधार लीजिए या चोरी कीजिए, आपको ऑक्सीजन का
इंतजाम करना ही पड़ेगा।’ दिल्ली हाई कोर्ट के दो जजों की एक पीठ इस
समय दिल्ली के कई अस्पतालों द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करवाने के लिए दायर
की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका मैक्स समूह ने दायर की है, जिसके दिल्ली में
कई अस्पताल हैं।
रिपोर्टों पर गौर किया जाए, तो पता चलता है
कि देश में इस समय प्रतिदिन 7,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है, जबकि मांग सिर्फ
करीब 5,000 टन की है। इस लिहाज से देश में असल में आवश्यकता से ज्यादा ऑक्सीजन उपलब्ध
है। जानकारों का कहना है कि संकट उपलब्धता का नहीं, ऑक्सीजन को जगह-जगह
पहुंचाने का है। सभी राज्यों में ऑक्सीजन बनाने के संयंत्र नहीं हैं इसलिए जहां इसका
उत्पादन होता है वहां से यह उन राज्यों में पहुंचाई जाती है जहां इसका उत्पादन नहीं
होता। यह ठीक वैसा ही है, जैसा पीने के पानी के मामले
में हो रहा है। एक तरफ देश का आधा हिस्सा पीने के पानी के लिए तरसता रहता है, दूसरी तरफ बाकी
आधा हिस्सा ऐसा भी है, जो अत्यधिक जल प्लावन की
समस्या से जूझ रहा है। ज्यादा दूर नहीं भी जाएं, तो जयपुर का ही
उदाहरण लें, जहां कुछ हिस्सों में लगातार चैबीसों घंटे पानी की सप्लाई जारी
रहती है, वहीं शहर के ही ज्यादातर हिस्से पानी की कमी के संकट से जूझ
रहे हैं। जयपुर शहर की करीब पच्चीस फीसदी आबादी आज भी पीने के पानी के लिए टैंकरों
पर निर्भर है। या फिर अजमेर जैसे शहर की बात करें, जहां आज भी सरकारी
लाइन के जरिये तीन दिन में एक बार पीने के पानी की सप्लाई होती है। कुल मिलाकर मामला
जल प्रबंधन का है। यानी जिन लोगांे की जिम्मेदारी है, वे ठीक से इसका
प्रबंधन नहीं कर पाते हैं।
कुछ ऐसी ही लापरवाही मेडिकल ऑक्सीजन के मामले
में हुई है। चिकित्सा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऑक्सीजन भारत में कोई नियंत्रित
उत्पाद नहीं है। बस इसका दाम राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स प्राधिकरण (एनपीपीए) तय करता
है। हालांकि इस समय महामारी से जन्मे हालत को देखते हुए इसकी आपूर्ति केंद्र ने अपने
हाथों में ली हुई है। केंद्र सरकार का एक सशक्त समूह इसकी निगरानी करता है, जिसके अध्यक्ष
हैं केंद्र सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीआईपीपी) के सचिव। राज्यों
का कोटा यही समिति निर्धारित करती है। समिति में राज्यों के प्रतिनिधि भी हैं और साथ
में और भी कुछ मंत्रालयों और ऑक्सीजन बनाने वाली सभी बड़ी कंपनियों के नुमाइंदे भी हैं।
जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में सबसे ज्यादा
ऑक्सीजन बनती है, लेकिन वहीं मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन बनाने का एक भी संयंत्र
नहीं है। महाराष्ट्र और गुजरात दोनों ही राज्य महामारी की शुरुआत से ही सबसे ज्यादा
प्रभावित राज्यों में से रहे हैं, इसलिए वो ज्यादा ऑक्सीजन
दूसरे राज्यों को देने की स्थिति में नहीं हैं। दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड
जैसे प्रदेशों में अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध है, लेकिन चुनौती इसे
वहां से दूसरे राज्यों में पहुंचाने की है। अस्पतालों में आॅक्सीजन नहीं पहुंचने से
उन लोगांे को ज्यादा दिक्क्त हो रही है, जिन्हें साँस लेने में
ज्यादा तकलीफ हो रही है, उनका इलाज करने में अस्पतालों
को दिन-रात एक करना पड़ रहा है। जिन लोगों को किस्मत से बेड मिल गया है, उनकी साँसें बचाने
के लिए अस्पताल भारी जद्दोजहद में जुटे हैं।
डॉक्टरों और महामारी विशेषज्ञों का कहना है
कि कोरोना के केस इतनी तेजी से बढ़े हैं कि टेस्ट और इलाज के लिए काफी इंतजार करना पड़ा
रहा है। इलाज में देरी की वजह से लोगों की हालत खराब हो रही है और उन्हें इलाज के लिए
अस्पताल में भर्ती कराना पड़ रहा है। हालत गंभीर होने की वजह से लोग धड़ाधड़ अस्पताल में
भर्ती हो रहे हैं, लिहाजा ऑक्सीजन की माँग बढ़ गई है। चिकित्सकों का कहना है कि
उन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसे हालात कभी नहीं देखे। किसी को पता नहीं कि जिंदगी बचाने
की यह लड़ाई कब और कैसे खत्म होगी।