पूर्वोत्तर में जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति

पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है। इन उग्रवादी संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार उग्रवादी संगठनों का नाम भी नहीं लेना चाहता। खबरों को छापने या नहीं छापने के लिए दबाव का सिलसिला लगातार चलता रहा है। पूर्वोत्तर के पत्रकार बताते हैं कि वे बेहद मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं। कभी उग्रवादी संगठन धमकियां देते हैं, तो कभी राज्य सरकार।

- श्याम माथुर -

कुछ राजनीतिक विचारक अक्सर कहते हैं कि भारत की सीमाओं के अंदर कहीं दूसरा देश बसता है, तो वह है पूर्वोत्तर। चीन की संस्कृति से प्रभावित लेकिन रहन-सहन भारतीयता से परिपूर्ण और बदला-बदला सा खानपान इस बात का अहसास कराता है। प्राकृतिक विविधताओं के बीच पूर्वोत्तर भारत आज भी विषमताओं के दंश को झेल रहा है और स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी हालात में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आए हैं। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में असम, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में उग्रवाद और अलगाववादी ताकतें विकास की हवा पहुँचने नहीं दे रही हैं। पहाड़ी राज्यों में ट्रेन रूट व सड़कों का अभाव विकास को भी आगे नहीं बढ़ने दे रहा है। दूसरी तरफ, पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में स्वाधीनता और स्वायत्तता का जुनून छा रहा है।

इन हालात में क्या कभी आपने सोचा है कि पूर्वोत्तर में मीडियाकर्मियों को अपना काम करने में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है? इस दिशा में शायद ही कभी किसी ने गंभीरता से विचार किया होगा। इसका कारण यह है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में घटने वाली गतिविधियों की जानकारी बाकी देश को होती ही नहीं। पिछले हफ्ते मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों से बुरी तरह परेशान मीडियाकर्मियों ने जब लगातार छह दिन तक हड़ताल की, तब भी देश के बाकी हिस्से के लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं थी। दरअसल मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है। इन संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार किसी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता। एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि राज्य में पत्रकार दुधारी तलवार पर चल रहे हैं। यहां कभी उग्रवादी संगठन हमें धमकियां देते हैं, तो कभी राज्य सरकार।

ऐसे ही एक ताजा मामले में एक महिला हमलावर ने पिछले रविवार को मणिपुर की राजधानी इंफाल स्थित मणिपुरी भाषा के प्रमुख अखबार पोक्नाफाम के दफ्तर पर बम से हमला किया। उसने दफ्तर पर एक चीन-निर्मित ग्रेनेड फेंका लेकिन वह फटा नहीं। पुलिस का कहना है कि अगर वह ग्रेनेड फट गया होता को भारी तादाद में कर्मचारियों और वहां पहुंचने वाले लोगों की मौत हो सकती थी। सीसीटीवी फुटेज में एक मोटरसाइकिल सवार अकेली महिला को अखबार के दफ्तर के सामने रुक कर बम फेंकते हुए देखा गया। मीडिया हाउस पर बम से हमले के विरोध में संपादकों और पत्रकारों के धरने पर होने की वजह से लगातार छह दिनों तक राज्य में न तो कोई अखबार छपा और न ही टीवी चैनलों पर खबरों का प्रसारण हो सका। इसके बाद मणिपुर राज्य मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य सरकार से इस मामले में 25 फरवरी को रिपोर्ट मांगी है। बाद में इस मामले में चैतरफा बढ़ते दबाव के बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक बयान में कहा भी कि यह मीडिया पर एक कायराना हमला था।

पूर्वोत्तर से जुड़ी खबरों में दिलचस्पी रखने वाले लोग जानते हैं कि मणिपुर में पत्रकारों और अखबारों पर हमले की घटनाएं नई नहीं हैं। पहले भी इंफाल में कई अखबारों के दफ्तरों पर हमले हो चुके हैं और उनके खिलाफ संपादक व पत्रकार कई सप्ताह तक धरना भी दे चुके हैं। राजधानी से 32 अखबारों का प्रकाशन होता है जिनमें से ज्यादातर स्थानीय भाषा के हैं। इसके अलावा केबल टीवी के कई चैनलों का भी प्रसारण किया जाता है।

इससे पहले बीते साल एक उग्रवादी संगठन की धमकी की वजह से राज्य में दो दिनों तक न तो कोई अखबार छपा और न ही टीवी चैनलों का प्रसारण हुआ। एक उग्रवादी संगठन के दो गुटों की ओर से एक-दूसरे की खबरों को नहीं छापने के लिए दी जाने वाली धमकियों के विरोध में 25 और 26 नवंबर 2020 को कोई अखबार नहीं छपा। पत्रकारों ने इसके विरोध में मणिपुर प्रेस क्लब के सामने धरना भी दिया। वर्ष 2013 में जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना किसी काट-छांट के छापने की धमकी दी थी, तो चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था। उससे पहले 2010 में भी दस दिनों तक अखबार नहीं छपे थे।

मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है। इन संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार किसी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता। ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (एएमडब्ल्यूजेयू) के अध्यक्ष बिजय काकचिंग्ताबाम बताते हैं, ‘हम एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन के दो गुटों की आपसी लड़ाई में पिस रहे हैं। दोनों गुट चाहते हैं कि प्रतिद्वंद्वी गुट की खबरें अखबारों में नहीं छपें या टीवी चैनलों पर नहीं दिखाई जाएं। हमारे सामने एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई जैसी स्थिति है। हमें बकायदा धमकियां दी जा रही हैं।

उग्रवादी संगठनों की धमकियों की वजह से राज्य में अखबारों का प्रकाशन ठप्प होने का यह कोई पहला मामला नहीं है। हाल में मणिपुर इलाके का सबसे हिंसक राज्य रहा है और यहां लगभग एक दर्जन संगठन सक्रिय हैं। साल 2013 में जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना किसी काट-छांट के छापने की धमकी दी थी तो चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था। उससे पहले  2010 में भी दस दिनों तक अखबार नहीं छपे थे।

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