विज्ञापनों के जरिये धोखाधड़ी का खेल
- श्याम माथुर -
टेलीविजन विज्ञापन के माध्यम से चमत्कारी या अलौकिक शक्तियों का दावा करने वाले आइटम की बिक्री का सिलसिला यूं ही जारी रह सकता था, अगर पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई होती। कम पढ़े-लिखे और गरीब लोगों के साथ-साथ अमीर और शिक्षित वर्ग के अंधविश्वासी दृष्टिकोण के कारण तथाकथित संत और बाबा उनका शोषण करते रहे हैं और उन्हें यंत्र, गदा आदि धार्मिक वस्तुएं बेच रहे हैं।
बॉम्बे
हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही एक महत्वपूर्ण फैसले में उन वस्तुओं की बिक्री
पर रोक लगा दी, जिनके बारे में टेलीविजन विज्ञापन के माध्यम से
यह दावा किया जाता है कि उनके पास चमत्कारी या अलौकिक शक्तियां हैं। हाईकोर्ट ने यह
भी कहा है कि इस तरह के विज्ञापन का प्रसारण करने वाला टीवी चैनल महाराष्ट्र प्रतिबंध
और मानव बलि और अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथाओं की रोकथाम और काला जादू
कानून, 2013 के प्रावधानों के तहत उत्तरदायी होगा। बेंच ने राज्य को
यह भी निर्देश दिया है कि वह उन व्यक्तियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करे, जो इस
तरह के विज्ञापन कर रहे हैं।
दरअसल
हाईकोर्ट का यह फैसला टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों के प्रभाव और उनके
गहरे असर की तरफ भी इशारा करता है। पिछले एक दशक के दौरान अनेक ऐसे टीवी चैनल सामने
आए हैं, जो टेलीमार्केटिंग के सहारे तमाम तरह की चीजों के लिए एक अलग
ही ग्राहक वर्ग तैयार कर रहे हैं। ये ऐसे ग्राहक हैं, जो गांवों-कस्बों
में रहते हैं, जिनका पढ़ाई-लिखाई का स्तर बेहद सामान्य है और
जिनके लिए टेलीविजन पर नजर आने वाली तस्वीरें ही अंतिम सत्य है। शहरी दर्शकों की तरह
यह ग्राहक वर्ग कोई सवाल भी नहीं उठाता और सही या गलत में आसानी से फर्क भी नहीं कर
पाता। ऐसे भोले-भाले दर्शक वर्ग को निशाना बनाते हुए अनेक टीवी चैनलों पर धार्मिक वस्तुओं
के विज्ञापन दिखाए जाने लगे। ऐसे विज्ञापनों में फिल्म जगत की अनेक हस्तियों को भी
शामिल किया गया और अन्य तमाम लोगों के अनुभव भी प्रसारित किए गए, जिसमें
उन्होंने दावा किया कि जिस धार्मिक यंत्र को वे दिखा रहे हैं, उसके
चमत्कारिक स्वरूप को खुद उन्होंने अनुभव किया है। जाहिर है कि इन हस्तियों ने इस तरह
के चमत्कारों को प्रदर्शित करने के लिए कंपनी से बड़ी रकम ली होगी।
प्रसिद्ध
फिल्म निर्माता, लेखक, निर्देशक,
अभिनेता मनोज कुमार, गायक
अनुराधा पौडवाल और अनूप जलोटा जैसी हस्तियों को हनुमान चालीसा यंत्र के विज्ञापन में
दिखाया गया था और उनके अनुभवों को बयान किया गया था,
जिसमें उन्होंने हनुमान चालीसा
यंत्र का उपयोग करके ‘चमत्कार’
का अनुभव होने का दावा किया
था। स्पष्ट है कि टीवी चैनलों पर दिखाए गए विज्ञापनों के माध्यम से यह प्रचारित किया
गया कि हनुमान चालीसा यंत्र में विशेष, चमत्कारी और अलौकिक गुण थे। हनुमान चालीसा यंत्र
बेचने वाली कंपनी के विज्ञापन में तो यह भी दावा किया गया था कि यह यंत्र किन्हीं बाबा
मंगलनाथ ने तैयार किया है, जिन्हें सिद्धि (कुछ भी करने की क्षमता) हासिल
थी। यह भी कहा गया कि बाबा के पास भगवान हनुमान का आशीर्वाद है और इस यन्त्र को घर
पर लाना स्वयं भगवान हनुमान को घर लाने जैसा था।
निश्चित
तौर पर इस तरह के प्रचार से वे लोग जरूर प्रभावित हुए जो स्वभाव से अंधविश्वासी हैं
और फिल्मी हस्तियों की बातों पर यकीन करते हैं। यहां यह बताने की जरूरत शायद नहीं है
कि गांवों-कस्बों के लोगांे के बीच आज भी विजुअल्स यानी तस्वीरों का जबरदस्त प्रभाव
है। ये ऐसे लोग हैं जो अखबार-मैगजीन्स नहीं पढ़ते और जो छपे हुए शब्दों के स्थान पर
तस्वीरों में पूरा भरोसा करते हैं। टेली मार्केटिंग से जुड़ी कंपनियों ने ऐसे लोगों
को ही निशाना बनाया और चमत्कारी और अलौकिक शक्तियों वाले यंत्रों को बेचने का प्रयास
किया, जिसमें वे किसी हद तक कामयाब भी रहे।
दिलचस्प
बात यह है कि इस तरह के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए महाराष्ट्र में ब्लैक
मैजिक एक्ट पहले से ही मौजूद है, फिर भी कानून का पालन नहीं किया गया और अंधविश्वासों
को बढ़ावा देने वाले ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण धड़ल्ले से होता रहा। ब्लैक मैजिक एक्ट
की धारा 3 न केवल काले जादू, बुरी प्रथाओं आदि के प्रसारण-प्रकाशन पर रोक लगाती
है, बल्कि इस तरह की प्रथाओं और जादू के प्रचार, प्रसार
पर भी पाबंदी लगाती है। अधिनियम की धारा 3 (1) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति मानव
बलिदान और अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथाओं को बढ़ावा देने, उनका
प्रचार या अभ्यास करने के लिए या तो स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्रेरित
नहीं करेगा। केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995
के तहत भी केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्राधिकरण को टीवी चैनलों पर इस तरह के विज्ञापन
का प्रसारण तुरंत रोकने का अधिकार है।
ब्लैक
मैजिक एक्ट की धारा 3 (2) से पता चलता है कि इस तरह के प्रचार को नहीं रोकना भी एक
अपराध है। इस पृष्ठभूमि में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा,
‘इस प्रकार, टीवी
चैनल, जो इस तरह के विज्ञापन का प्रसारण करते हैं, ब्लैक
मैजिक अधिनियम की धारा 3 के तहत भी उत्तरदायी होते हैं।’ वैज्ञानिक
समझ को विकसित करने के लिए मौलिक कर्तव्य का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि महात्मा
फुले, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जैसे सुधारवादी इसी मिट्टी में पैदा
हुए हैं, जिन्होंने बुरी प्रथाओं को दूर करने और समाज में अंधविश्वास
के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम किया। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि इन सुधारकों का
मकसद पैसा कमाना नहीं था, वे सही अर्थों में देश-दुनिया और समाज की बेहतरी
के लिए काम करते थे। लेकिन अब वक्त बदल गया है। आज जबकि पैसा ही सबका ईमान हो गया है, ऐसे
में हमें यह कहने में भी कोई हिचक नहीं कि चमत्कारों और अलौकिक शक्तियों का थोथा प्रचार
करते हुए धन अर्जित करने वाली ‘हस्तियां’
निश्चित तौर पर अपने प्रशंसकों
के साथ धोखाधड़ी करती रही हैं और अब वक्त आ गया है कि किसी भी कीमत पर ऐसी चीजों को
रोकना होगा।