ओटीटी भी रहेगा और सिने उद्योग भी


- श्याम माथुर -

‘ये दिल मांगे मोर’ की तर्ज पर सिने दर्शक और अधिक डिमांड करने लगे हैं और उनकी इस डिमांड को वेब सीरीज ने बड़ी आसानी से पूरा किया। अब वो दिन लद गए, जब उम्रदराज लोग घर पहुंचने के बाद टीवी धारावाहिक या बीते जमाने की कोई ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म देखा करते थे। आज का असली सिने दर्शक तो वो नौजवान है, जो अपनी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी ऐप के जरिये संचालित करना पसंद करता है। यही वह स्थिति है जो फिल्म निर्माताओं को ओटीटी कंटेंट तैयार करने के लिए प्रेरित करती है। 

ओवर द टाॅप यानी ओटीटी की लोकप्रियता बढ़ने के बाद क्या फिल्म उद्योग का भविष्य अभी भी उज्ज्वल है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब हर कोई तलाश रहा है। खास तौर पर सिनेमा और मनोरंजन की दुनिया में दिलचस्पी रखने वाला हर शख्स इस सवाल का सामना कर रहा है। इसी सवाल से जुड़ी एक शंका यह भी है कि तेजी से बदलती इस दुनिया में कहीं सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर भी हमेशा के लिए पीछे नहीं छूट जाएं। यूं भी मल्टीप्लैक्स आने के बाद सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की संख्या बड़ी तेजी से कम हुई है और ऐसे सिनेमाघर अब सिर्फ छोटे कस्बों और शहरों तक ही सिमट गए हैं। और अब ओटीटी कंटेंट ने ऐसे कस्बों और शहरों में भी सेंध लगा ली है। आज आलम यह है कि सस्ती दरों पर उपलब्ध इंटरनेट सुविधा के कारण छोटे-छोटे गांवों के नौजवान भी ‘तांडव’ और ‘मिर्जापुर’ या ऐसे ही दूसरे तमाम ओटीटी कंटेंट की चर्चा करने लगे हैं। हर मोबाइल स्क्रीन पर वेब सीरीज देखी जाने लगी हैं और इसी बदलाव का नतीजा है कि अमेजन प्राइम या हाॅटस्टार जैसे प्लेटफाॅर्म खूब फल-फूल रहे हैं।



जब ओटीटी की शुरुआत हुई थी, तो इसका भारी विरोध किया गया कि यह सिनेमा हॉल में फिल्मों की रिलीज को समाप्त कर देगा और फिल्म व्यवसाय को बंद कर देगा। हालांकि ओटीटी और टीवी चैनलों के बावजूद पारंपरिक फिल्म उद्योग, सिनेमा हॉल और बड़े बजट की फिल्मों का आकर्षण बना रहा। बहुत सारे लोगों का आज भी यह मानना है कि यह आकर्षण हमेशा कायम रहेगा। ओटीटी केवल मनोरंजन उद्योग का पूरक है, जो मनोरंजन के कारोबार को वित्तीय रूप से अधिक आकर्षक बनाता है। ओटीटी पर दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और वर्तमान में इसके 20 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। ओटीटी, औसत और छोटे बजट की फिल्मों को भी विश्व स्तर पर देखे जाने की सुविधा देता है, अन्यथा ये फिल्में डिब्बे में ही बंद रह जाएंगी। 

कोविड -19 के कारण, ओटीटी ने निर्माता को फिल्मों के प्रदर्शन के लिए एक विकल्प दिया, ताकि वह इस कठिन समय में धन-अर्जन कर सके, चाहे पैसे कम ही मिलते हों। दूसरी ओर, रिलीज और प्रचार लागत भी पिछले कुछ वर्षों में बेहद बढ़ गई है। सैटेलाइट बाजार में तेजी आने से, 90 के दशक में उत्पादन-लागत बढ़ गई और मल्टीप्लेक्स की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। इन कारणों से उद्योग का प्रदर्शन लगातार खराब रहा। दूसरी तरफ, दर्शकों की फिल्म देखने की पसंद में भी बदलाव आने लगा। ‘ये दिल मांगे मोर’ की तर्ज पर वे और अधिक डिमांड करने लगे। उनकी डिमांड वेब सीरीज ने पूरी की और आज युवा वर्ग के ज्यादातर दर्शक वेब सीरीज को ज्यादा पसंद करने लगे हैं। अब वो दिन लद गए, जब उम्रदराज लोग घर पहुंचने के बाद टीवी धारावाहिक या बीते जमाने की कोई ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म देखा करते थे। आज का असली सिने दर्शक तो वो नौजवान है, जो अपनी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी ऐप के जरिये संचालित करना पसंद करता है। यही वह स्थिति है जो फिल्म निर्माताओं को ओटीटी कंटेंट तैयार करने के लिए प्रेरित करती है। यह एक ऐसा बिजनेस माॅडल है, जिसमें निर्माता और वितरक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई नुकसान नहीं उठाते हैं। ओटीटी पर अपना कंटेंट बेचने वाले सभी निर्माताओं ने 10 से 100 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने के बाद से और विशेषकर कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान ओटीटी को बेची जाने वाली कंटेंट की मात्रा काफी अधिक रही है। दरअसल ओटीटी पर हर फिल्म सफल है, जो निर्माताओं के लिए एक आकर्षक स्थिति है। कोई प्रतिस्पर्धा  या फ्लॉप का भय नहीं है।

मनोरंजन उद्योग के अनुभवी लोग भी कहते हैं कि फिल्म निर्माण के लिए पेशेवर दृष्टिकोण अपनाना, सफलता के लिए आवश्यक है। उनका आशय यह है कि फिल्म निर्माण में निवेश किए गए धन की वापसी होनी चाहिए, हालांकि दूसरी ओर वे यह भी चाहते हैं कि उनकी फिल्में सिनेमा हॉल में देखी जाएं। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि फिल्म व्यवसाय तब तक बना रहेगा, जब तक व्यावसायिक रूप में संभावना बनी रहेगी। 

लेकिन नए डिजिटल माध्यम यानी ओटीटी की भी अपनी सीमाएं हैं। ओटीटी सुविधा प्रदान करते हैं, लेकिन अनुभव नहीं। वे बड़ी स्क्रीन की तरह उत्साह व उमंग पैदा नहीं कर सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो मल्टीप्लेक्स और बड़े स्क्रीन के फिर से शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सिनेमा की संस्कृति हमारे देश में बहुत गहरे रूप से जुड़ी है। लोग घर से बाहर जाकर सिनेमा देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। एक बड़ी हिट फिल्म के साथ ही बड़ी संख्या में दर्शक सिनेमा हॉल का रुख करेंगे। सिनेमा हॉल के लिए उपयुक्त कंटेंट की आवश्यकता है। दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा छोटे शहरों में फैला हुआ है। इसलिए, निर्माताओं और कंटेंट निर्माताओं का ध्यान केवल बड़े शहर के मल्टीप्लेक्स दर्शकों पर नहीं होना चाहिए। कंटेंट को कस्बों और गांवों के  दर्शकों की रूचि के अनुरूप डिजाइन किया जाना चाहिए। हमें बड़ी आबादी को ध्यान में रखते हुए फिल्म बनाने की आवश्यकता है, तभी मनोरंजन उद्योग भी बचा रहेगा और पारंपरिक सिनेमाघर भी।


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा