सच की खोज में 42 पत्रकारों ने जान गंवाई इस साल

 

42 की संख्या सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह हमारे उन सहकर्मियों की जीवंत दास्तान है, जिन्होंने बतौर पत्रकार अपने काम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और उसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाई। यह आंकड़ा हमें याद दिलाता है कि दुनियाभर में जनहित में सत्य को खोज निकालने के लिए पत्रकारों को क्या कीमत चुकानी पड़ती है।

- श्याम माथुर -

जो लोग यह सोचते हैं कि चकाचौंध और ग्लैमर से भरे मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों की जिंदगी बेहद शानदार होती है और ऐसे लोग जो मीडिया कर्मियों को मिली शोहरत से ईष्र्या रखते हैं, उन्हें आईएफजे यानी इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स की हालिया रिपोर्ट पर एक नजर जरूर डाल लेनी चाहिए। आईएफजे की रिपोर्ट कहती है कि यह साल जो अब जल्द ही खत्म होने जा रहा है, उसमें पूरी दुनिया में कम से कम 42 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए। ये सभी मीडियाकर्मी अपने पेशे के कारण अकाल मौत का शिकार बने हैं अर्थात ये लोग अपने काम को अंजाम देने के कारण मौत के मुंह में चले गए।

10 दिसंबर2020 को अफगानिस्तान में आतंकियों की गोलियों का शिकार बनी पत्रकार मलालाई मैवान्द के ताबूत के पास प्रार्थना करते हुए लोग।

जिन देशों में पत्रकार आॅन ड्यूटी यानी अपने फर्ज को पूरा करते हुए मारे गए, उनमें अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया के साथ-साथ हमारे देश का भी नाम है। भारत में पत्रकारों पर हमले होने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2014 से अभी तक देश में कम से कम 22 पत्रकार मारे जा चुके हैं। बीते कुछ सालों में पुलिस द्वारा पत्रकारों के खिलाफ फर्जी आरोप लगाने और उन्हें गिरफ्तार कर लेने के मामलों में भी चिंताजनक रूप से बढ़ोतरी हुई है।

आईएफजे के अनुसार हर साल कम से कम 40 पत्रकार और मीडियाकर्मी अपने काम की वजह से मारे जाते हैं। संस्था का कहना है कि पिछले तीन दशकों में पूरी दुनिया में 2,658 पत्रकार मारे गए हैं। साल 2020 में हमारे देश में कम से कम तीन पत्रकारों के मारे जाने की सूचना मिली। इतने ही पत्रकार अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी मारे गए।

आईएफजे हर साल पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची बनाता है। पिछले पांच सालों में लगातार चैथी बार मेक्सिको इस सूची में सबसे ऊपर है। वहां 2020 में 13 पत्रकार मारे गए। सबसे ताजा वारदात 29 अक्टूबर 2020 को हुई, जब मल्टीमेडिओस चैनल सिक्स के न्यूज एंकर आर्तुरो आल्बा को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी।

सूची में दूसरे नंबर पर है पाकिस्तान। वहां 2020 में पांच पत्रकारों के मारे जाने की जानकारी मिली। कुछ अर्सा पहले अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के लिए अहमद उमर सईद शेख नामक एक आतंकी को मौत की सजा दी गई थी। लेकिन अप्रैल 2020 में पाकिस्तान की एक अदालत ने शेख की मौत की सजा को पलट दिया।

जंग और आतंक के साये में सांस लेने वाले देश अफगानिस्तान में मीडियाकर्मियों को बेहद खतरनाक हालात में काम करना पड़ता है। अमेरिका के स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार 2001 और 2020 के बीच की अवधि में अफगानिस्तान में 50 से अधिक मीडियाकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। युद्धग्रस्त देश अफगानिस्ता में इसी महीने की 10 तारीख को एक युवा महिला पत्रकार मलालाई मैवान्द को आतंकियों ने गोलियों से भून डाला। यह घटना देश में एक पत्रकार के रूप में काम करने के खतरों को उजागर करती है और तालिबान विचारधारा के लिए मार्ग प्रशस्त करती है कि महिलाओं को घर पर रहना चाहिए और समाज का सक्रिय हिस्सा बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मैवान्द की हत्या के ठीक 24 घंटे बाद एक अन्य युवा टेलीविजन प्रस्तोता फरदीन अमिनी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए।

आईएफजे के महासचिव एंथोनी बैलैंगर ने कहा कि ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। ये हमारे दोस्त और सहकर्मी हैं जिन्होंने बतौर पत्रकार अपने काम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और उसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाई। उन्होंने कहा कि संस्था सिर्फ इन पत्रकारों को याद ही नहीं रखेगी बल्कि एक-एक मामले का पीछा करेगी और सरकारों और कानूनी एजेंसियों पर दबाव बनाती रहेगी, ताकि पत्रकारों के हत्यारों को सजा हो सके। 150 देशों में 600,000 सदस्यों वाला आईएफजे उन पत्रकारों की भी खबर रखता है जिन्हें जेल में डाल दिया गया है। अधिकतर मामलों में सरकारों ने खुद को बचाने के लिए बिना स्पष्ट आरोपों के इन पत्रकारों को गिरफ्तार किया है। इस समय पूरी दुनिया में कम से कम 235 पत्रकार अपने काम से जुड़े मामलों की वजह से जेल में हैं।

आईएफजे के अध्यक्ष युनेस मजाहेद ने कहा है कि यह सारे तथ्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले उनकी शक्ति के उस दुरूपयोग पर रोशनी डालते हैं जो वो अपनी जवाबदेही से बचने के लिए करती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी संख्या में हमारे सहकर्मियों का जेल में होना हमें याद दिलाता है कि दुनिया भर में जनहित में सत्य को खोज निकालने के लिए पत्रकारों को क्या कीमत चुकानी पड़ती है।"

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