अलविदा 2020 - मुश्किलों ने सिखाए कुछ अनूठे सबक़

- मंजु माहेश्वरी - 
साल 2020 बस अब खत्म होने वाला है और लोग नए साल के स्वागत के लिए खुद को तैयार भी कर रहे हैं। संभवत: ऐसा पहली बार होगा जब लोग नए साल के आने से ज्यादा साल 2020 के बीत जाने की ज्यादा खुशी मनाएंगे क्योंकि साल 2020 का अनुभव वैश्विक रूप से बहुत ही बुरा साबित हुआ है। यूं तो हर साल अपने बीतने के साथ खट्टे-मीठे अनुभव देकर जाता है, लेकिन इस बार बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो यह कहेंगे कि साल 2020 में उन्हें खुशी भी प्राप्त हुई है। साल 2020 बीतने के साथ ही लोगों को कई सबक भी देकर जा रहा है, जो उन्हें जीवन भर याद रहेंगे।


कुछ लम्हे ही शेष हैं साल 2021 आने में। बहरहाल, हमारी जिंदगी में अब तक कितने बरस आए, कितने चले गए। कुछ मीठी यादें दे गए, कुछ चुनौतियां तो कुछ कड़वा अनुभव दे गए। दुनिया आने वाले साल को उम्मीदों से भरे नए दशक के रूप में देख रही है। फ्लैश बैक में जाकर याद करें तो साल 2020 को त्रासदी या मुश्किलों का साल भी कहा जाएगा। एक वायरस के कारण शुरू हुई कोरोना महामारी की वजह से यह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। पर यह भी सच है कि मुश्किल चुनौतियों से ही हम मजबूत भविष्य की नींव रखने को तत्पर हो पाते हैं। इसे दूसरे नजरिए से देखें तो हमने जिंदगी से कई सबक लिए, पाठ पढ़े। तो आइए, वर्ष 2020 के 12  सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

आ गया वैक्सीन

आज कोविड-19 वैक्सीन पर सबकी नजर है। इस बार वैक्सीन में सबसे खास बात यह रही कि अब तक दुनिया भर में बनी सभी वैक्सीन को बनाने में 8 से 10 साल लगते हैं, तब यह सारी प्रक्रियाओं से गुजर पाती है, पर इस बार रिसर्च में जुटे सभी देशों के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों ने अपनी जानकारियां एक दूसरे से साझा कीं, तो हल भी जल्दी निकल आया। सम्मिलित प्रयासों ने इसे रिकॉर्ड समय में ला दिया। मास्क, सैनिटाइजर, बार-बार हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग हमारे जीवन में शुमार नई आदतें  बन गयीं।     

थोड़े की जरूरत

सबसे बड़ा सबक जो हमने सीखा, ‘जरूरत और इच्छा में अंतर करने का। हमारी जिंदगी की मूलभूत जरूरतें हवा, पानी, रोटी, कपड़ा को पूरा करके भी हम संतुष्ट रह सकते हैं। ब्रांडेड कपड़े, लकदक गाड़ियों, लग्जरी तथा ऐशो-आराम के सामानों के बिना जिंदगी बेमानी नहीं हो जाती। इच्छाओं पर ध्यान न देकर, जरूरतें पूरी करके भी खुश रहा जा सकता है। सच है, लॉकडाउन के लंबे अंतराल में हमने सीखा है, ‘थोड़ा है ..थोड़े की जरूरत है।

कुदरत में दखल नहीं  

कोविड-19 की इस महामारी ने हमें क्या-क्या नहीं सिखाया? प्रकृति से छेड़छाड़ और खिलवाड़ करने का नतीजा हम देख चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ता प्रदूषण, कटते पेड़, सिसकता पर्यावरण, जलते जंगल... इन सब के जिम्मेदार आखिर हम ही हैं। हम में से अधिकांश ने पहली बार जिंदगी में ऐसी भयावह महामारी को देखा है, जिसने दुनिया भर में उथल-पुथल मचा दी। इसी के चलते लॉकडाउन में जब इंसान और गाड़ियां सब थम गए, तो हमने देखा कि नदियां निर्मल हो गयीं,  हवा साफ और स्वच्छ हो गई,  पंछी और पशु स्वतंत्र विचरण करने लगे। जाहिर है, झीलों, तालाबों का पानी पारदर्शी नजर आने लगा, यहां तक कि गंगा और यमुना भी स्वच्छ नजर आने लगी। प्रकृति में इंसान का दखल बंद हो गया, तो कुदरत खुलकर, निखर कर अपने नैसर्गिक स्वरूप में आ गई। पर्यावरण के लिए अच्छी खबरें आईं और कई कंपनियों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया। निश्चित रूप से, यदि पृथ्वी को बचाना है, तो उसके पेड़ -पौधों, पानी, जंगलों और जानवरों को बचाने के लिए कारगर नीति बनानी होगी। गौरतलब है कि पंजाब के जालंधर में रहने वालों ने ऐसी तस्वीरें साझा कीं, जिसमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश की धौलाधार पर्वत श्रंखला की चोटियां साफ दिख रही थीं। इसी तरह असम से कंचनजंघा और सहारनपुर से हिमालय नजर आ रहा था। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग रिसर्च के अनुसार इस दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण के स्तर में पुणे में 43 फीसदी, मुंबई में 38 फीसदी और अहमदाबाद में 50 फ़ीसदी की कमी आई। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन काफी कम हो गया। एक अनुमान के अनुसार न्यूयॉर्क में प्रदूषण पिछले की साल की तुलना में 40-50 प्रतिशत तक कम हो गया। चीन में भी कार्बन उत्सर्जन में 25 फीसदी की कमी आई। ब्रिटेन और स्पेन की भी कमोबेश यही कहानी है। हालांकि  नेचर पत्रिका के मुताबिक यह कोई नई बात नहीं,  हमेशा महामारी के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर वातावरण में कम हो जाता है। 

अपनों का साथ

यूँ तो लॉकडाउन ने हमसे बहुत कुछ छीना, पर उन चीजों के बारे में सोचने का मौका दिया, जिन्हें हम जिंदगी की तेज रफ्तार और आपाधापी में भूल से गए थे या अनदेखा कर गए थे। इसने रिश्तों को समझने का मौका दिया। पूरे परिवार का एक साथ रहना, साथ में खाना-पीना और बेशकीमती समय जो बच्चे, बीवी या माता-पिता एक दूसरे से चाहते थे, उन्हें मिला और उन्होंने एंजॉय भी किया। संभवत कई लोगों ने पहली बार अपने परिवार के साथ इतना लंबा समय बिताया। जो परिवार के साथ थे, उन्हें कोरोना का तनाव भी अपेक्षाकृत कम था। साथ ही साथ अपने मनपसंद शौक और हुनर को आजमाने का सभी को मौका मिला।

वर्क फ्रॉम होम कल्चर

इस समय ने एक ओर शगूफा दिया वर्क फ्रॉम होम कल्चर का। ज्यादातर दफ्तर अपने कर्मचारियों से ऑनलाइन काम करवाने लगे। अधिकांश जगह यह अब भी जारी है। संभवतया, यह समय कंपनियों के लिए भविष्य का एक नया प्लेटफार्म सामने लाया। इससे देश की ज्यादा से ज्यादा आबादी ऑनलाइन सुविधाओं से जुड़ने को उन्मुख हुई।

ई-लर्निंग का दौर

यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी में 206 देशों के 160 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा सके। स्कूल बंद हो गए। ज्यादातर देशों में अब भी स्कूल बंद हैं। बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। लैपटॉप के सामने बैठकर या फिर मोबाइल पर ही पढ़ाई करना बच्चों की जरूरत बन गया। स्टूडेंट्स ने ऑनलाइन पढ़ना सीखा, तो टीचर्स ने ऑनलाइन पढ़ाना। दुनिया में ऑनलाइन पढ़ाई के नए-नए तरीके खोजे गए।

कम बजट में शादी

लॉकडाउन  खुलने के बाद सोशल डिस्टेंसिंग की पालना के लिए शादी समारोहों में मात्र 50 लोगों को अनुमति दी गई। इससे कम बजट में शादी जैसे भव्य समारोहों की आदर्श मिसाल देखने को मिली। आमतौर पर वेडिंग इवेंट्स में भारी बजट और दिखावा मिलता है। कोरोना  गाइडलाइन का पालन करते हुए शादी समारोह सादगी से संपन्न हुए। फिजूलखर्ची और आडंबरों से बचने का सबक लेते हुए हम इसे आगे भी जारी रख सकते हैं। कहते हैं ना, आपकी खुशियों से आपके बहुत नजदीकी 25 से ज्यादा लोग खुश नहीं होते, बाकी सब तो औपचारिकता पूरी करने आते हैं।                  

स्वास्थ्य बना प्राथमिकता

इस साल हेल्थ केयर या स्वास्थ्य लोगों के लिए प्राथमिकता बन गया। अब स्वाद की जगह इम्युनिटी बेस्ड चीजों की ओर लोगों का रुझान हुआ। घर में रहकर साथ मिलकर योग, प्राणायाम करके इम्युनिटी बूस्ट करना लोगों की दिनचर्या बन गया। जब बाहर घूमने जाना भी बंद हो गया, तो घर में रहकर अपनी दिनचर्या में विविधता लाना आदतों में शुमार हो गया। 

बचत है जरूरी     

हालांकि लॉकडाउन में कई लोगों की नौकरियां चली गयीं, फिर भी इन मुश्किल आर्थिक हालात ने हमें बचत की अहमियत सिखाई। जिन्हें यह है आदत नहीं थी, उन्हें सबक मिला कि बुरे वक्त के लिए या कम से कम 6 महीने के खर्च जितनी बचत आपकी होनी चाहिए। निश्चित रूप से, आपने पैसा बचाया है , तो वह मुश्किल समय में आपके काम आएगा। कई इंडस्ट्रीज बंद हुईं, तो कई क्षेत्रों में काम के नए अवसर खुले।

 

इंसानियत की मिसालें

मुश्किलें आती हैं, तो कई बार कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। ऐसे समय अनेकों स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिसकर्मियों, डॉक्टरों और समाजसेवकों ने अपनी चिंता नहीं करते हुए लोगों की हरसंभव सहायता के प्रयास किए। इंसानियत की कई शानदार मिसालें हमें अपने आस-पास देखने को मिली। सचमुच कहानियों से इतर असल जिंदगी में सुपर हीरो नजर आए।                  

ओटीटी प्लेटफार्म

फिल्म इंडस्ट्री बंद होने से लॉकडाउन में ओवर द टॉप  (ओटीटी) का चलन कई गुना बढ़ा। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में पिछले महीने तक ओटीटी सब्सक्राइबर्स 47 फीसदी तक बढ़े और इसकी कमाई में भी 26 प्रतिशत का इजाफा हुआ। ओटीटी प्लेटफार्म पर कई फिल्में रिलीज हुईं और अब नये ओटीटी अवार्ड की भी शुरुआत हो गई। आज की पीढ़ी ने 1980- 90 के दशक के धारावाहिक रामायण और महाभारत देखें,  जो आज भी हमारे मार्गदर्शक हैं। 

महिला शक्ति को सलाम

दुनिया भर में हरेक क्षेत्र में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ा। देश में 17वीं लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कुल सीटों का 14 फ़ीसदी तक पहुंच गया, जो अब तक  का सबसे ज्यादा है। साल 2020 में उन देशों की संख्या 21 तक पहुंच गई,  जहां एक महिला देश का नेतृत्व कर रही है, जबकि 1995 में ऐसे देशों की संख्या 12 थी। इस दौरान महिलाओं के संबंध में आए फैसलों ने एक नई दिशा दी। मुस्लिम महिलाओं के हित में तीन तलाक को लेकर बड़ा फैसला आया। दोषी पाए जाने पर 3 साल तक सजा का प्रावधान हुआ। सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं का प्रवेश मान्य हुआ। उज्जवला योजना में महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन मिले। निर्भया प्रकरण में आपराधिक विधि संशोधन 2013 लागू हुआ। सजा बढ़ाई गई और धाराएं जोड़ी गयीं। सेना में महिलाओं के स्थाई कमीशन की स्वीकृति मिली। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले महिलाओं के हक में आए। मसलन, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन एक्ट के अनुसार बेटियों का पैतृक संपत्ति पर बेटे के बराबर का हक तो पहले से ही था , अब यह उन बेटियों के लिए भी फायदेमंद होगा, जिनके पिता की मृत्यु 2005  से पहले ही हो गई हो। एक अन्य फैसले में, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू अपने ससुराल में रहने का अधिकार मांग सकती है। टाइम मैगजीन ने 15 साल की भारतीय मूल की लड़की गीतांजलि राव को किड्स ऑफ द ईयर चुना। इस  नन्ही वैज्ञानिक ने पानी में लेड यानी सीसे का का पता लगाने वाला सेंसर टेथिस बनाया। साथ ही काइंडली नामक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऐसा ऐप बनाया, जो साइबर बुलिंग को पहचान कर उसे फ्लैग कर देता है। उसने ओपाइड नशे के निदान के लिए भी समाधान खोजा।

    

     


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा