वो कौन-सी बातें हैं जो डीडीएलजे को आइकॉनिक बनाती हैं ?

मुंबई। फिल्म 'डीडीएलजे' यानी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के नाम से गाने, डायलॉग के अलावा भी कई चीज़ें ज़हन में आती हैं। राज का सिमरन के हाथ को पकड़कर चलती ट्रेन पर खींचना, राज किरदार का काली जैकेट और काली टोपी, गाय के गले में घंटी, कबूतर, राज का मैन्डोलिन म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट, सरसों के खेत, करवा चौथ का व्रत, काजोल का चश्मा। फ़िल्म का आइकॉनिक ट्रेन सीन कई हिंदी फ़िल्म में इस्तेमाल किया गया है जिसमें शामिल है रोहित शेट्टी की फ़िल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस', इम्तियाज़ अली की फ़िल्म 'जब वी मेट', वरुण धवन और आलिया भट्ट की फ़िल्म 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया'। डीडीएलजे को दर्शको से बहुत प्यार मिला। पर आज के समाज से इस फ़िल्म की कई बातें मेल नहीं खाती हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रम्हात्मज के मुताबिक़, "उन्होंने 1995 में ये फ़िल्म देखी तो उन्हें बहुत पसंद आई पर जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया उन्हें फ़िल्म में दर्शाए गए भारतीय मूल्य खोखले लगे और फ़िल्म उन्हें रूढ़िवादी लगी।"



जहां आज दुनिया में महिला सशक्तिकरण की लहर दौड़ रही है, वहीं इस फ़िल्म की कई बातें आज के बदलते समाज में सही नहीं है। जैसे यूरोप ट्रिप के दौरान जब राज का किरदार सिमरन के क़िरदार का ध्यान बटोरने के लिए अनुचित हरकतें करता है जिसे सिमरन नकारती है। लेकिन राज का किरदार समझता नहीं है और अपनी चालबाजियां जारी रखता है। ऐसे व्यवहार को आज के दौर में उत्पीड़न का नाम दिया गया है।


जहां राज और सिमरन के क़िरदार को नौजवान अपने आप से जोड़ रहे थे वहीं दूसरे क़िरदार भी अपनी छाप छोड़ रहे थे। ऐसे क़िरदार में शामिल थी सिमरन की छोटी बहन "चुटकी" जिसे निभाया पूजा रूपारेल ने, कुलजीत की बहन "प्रीति" जिसे निभाया मंदिर बेदी ने और बुआ जिसे निभाया हिमानी शिवपुरी ने। हिमानी शिवपुरी ने बताया कि शूटिंग के दौरान काम कर रहे सब लोग परिवार बन गए थे। शूटिंग के दौरान उन्हें ज़रा-सा भी इल्म नहीं था कि ये फ़िल्म आगे चलकर आइकॉनिक बन जाएगी। उनके करियर के लिए ये "हम आपके है कौन" के बाद दूसरी बड़ी फ़िल्म थी।


हिमानी शिवपुरी का कहना है कि इस फ़िल्म से ही हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को "बुआ" का क़िरदार मिला। इससे पहले महिला किरदारों में मां, भाभी, बहन, चाची या मामी क़िरदार ही होते थे पर डीडीएलजे के बाद "बुआ" क़िरदार बनाया गया। 


फ़िल्म एक तरह से लैंगिक भेदभाव को भी पेश करती है। फ़िल्म में आज्ञाकारी, शर्मीली, पारंपरिक और त्याग करने वाले महिला क़िरदारों को आदर्श माना गया है। फ़िल्म में महिला क़िरदार को सहनशील वस्तु की तरह दर्शाया गया है जिसके जीवन के सभी फ़ैसले पुरुष करते हैं।


राज  का डायलॉग "मैं जानता हूं, एक हिंदुस्तानी लड़की की इज़्ज़त क्या होती है" दर्शाता है कि भारतीय महिला की प्रतिष्ठा उनके सतीत्व पर निर्भर है जो रूढ़िवादी सोच को ही प्रदर्शित करता है। ऐसे में अगर मौजूदा दौर में ये फ़िल्म आती तो युवा पीढ़ी के बीच शायद ही इतनी कामयाब होती। लेकिन अपने दौर में यह फ़िल्म रोमांस के ताज़े झोंके की तरह आई जिसकी खूशबू आज भी लोग महसूस करते हैं।


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा