संगीत प्रेमियों ने ‘ध्रुपद संध्या' का आनंद उठाया और डागर घराने के ध्रुपद संगीत के इतिहास से रूबरू हुए

जयपुर। उस्ताद जिया मोहिउद्दीन खान डागर की पुण्यतिथि के अवसर पर, जेकेके फेसबुक पेज पर सोमवार को ऑनलाइन कार्यक्रम ‘ध्रुपद संध्या‘  आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान, जवाहर कला केंद्र और उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी (डागर अभिलेखागार), जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। कार्यक्रम की शुरुआत जयपुर के रवींद्र मंच में स्थित डागर अभिलेखागार के संक्षिप्त वर्चुअल वॉकथ्रू से हुई, जो विशेष रूप से ध्रुपद घराने को समर्पित है। इसके बाद डागर अभिलेखागार द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘योगी नाद‘ की स्क्रीनिंग हुई। इस लघु फिल्म में ध्रुपद के प्रतिपादक, पद्म भूषण उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर ने अरबी और फारसी संगीत से इसकी उत्पत्ति, ‘नाद‘, ‘सातों सुरों का राग‘, ‘सा रे गा मा‘, आदि के बारे में बताया। उन्होंने ध्रुपद गायन में आवाज संस्कृति के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जिसे ध्रुपद में ‘नाद योग‘ के रूप में जाना जाता है। फिल्म के दौरान, उन्होंने विभिन्न मनमोहक ध्रुपद प्रस्तुतियां भी पेश की।



लघु फिल्म  ‘योगी नाद'


फहीमुद्दीन डागर ने आगे बताया कि ध्रुपद भारतीय संगीत का एक इम्प्रुवाइजेशन है। यह भारतीय संगीत के शुद्ध स्वरूप की जानकारी देता है। बदलते समय के बारे में उन्होंने कहा कि समय कभी एक जैसा नहीं रहता। यह बीते हुए कल से बदल गया है और आने वाले कल में फिर बदल जाएगा। भविष्य, हालांकि, अनिश्चित है, लेकिन ध्रुपद की परंपरा आगे बढ़ेती रहेगी। ध्रुपद शैली के गायकों की वर्तमान पीढ़ी मजबूत है। ये गायक युवा हैं, उन्हें प्रोत्साहन की आवश्यकता है और वे भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों से बहुत अच्छे से वाकिफ हैं।


ध्रुपद और वर्तमान संदर्भ पर टॉक का आयोजन - लघु फिल्म के बाद ध्रुपद के डागर घराने की शबाना डागर से ‘ध्रुपद और वर्तमान संदर्भ’ पर चर्चा हुई। ध्रुपद के इतिहास के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि ध्रुपद संगीत मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि पूजा के लिए है। अधिकाशतः यह मंदिरों में गाया जाता है और भगवान को समर्पित होता है। ध्रुपद के शैलीगत चार स्वरूप हैं। ये हैं - गौरी (गौहार), खंडार, नौहार और डागर। चार में से, सबसे प्रसिद्ध डागर घराना है। डागर घराने की परंपरा के बारे में उन्होंने कहा कि डागर घराने के अलावा भारतीय शास्त्रीय संगीत में कोई दूसरा परिवार नहीं है, जिसने 20 पीढ़ियों से संगीत की एक ही शैली का अभ्यास जारी रखा हो। उन्होंने डागर घराने के सबसे उत्कृष्ट संगीतकारों में से एक, बेहराम खान की कहानी भी साझा की, जिन्होंने जयपुर में  महाराजा राम सिंह द्वितीय के शाही दरबार में सेवा की। उन्होंने बताया कि बेहराम खान ने अनेक स्थानों की यात्रा की और अपना सम्पूर्ण जीवन संगीत और गायन को समर्पित कर दिया।


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