अपनों की कमी को दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा- रिसर्च में खुलासा

नई दिल्ली। ज्यादातर लोग अपनी  ज़िन्दगी में अपने लोगों की कमी को दूर करने  के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोरोग विशेषज्ञों ने अपने हालिया अध्ययन के आधार पर यह दावा किया है। मनोरोग विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर आप दिन-रात अपना फेसबुक अकाउंट खंगालते रहते हैं, या  रात में व्हॉट्सएप पर दोस्तों से चैटिंग किए बिना आपको नींद नहीं आती, तो इन आदतों को सोशल मीडिया की लत समझकर नजरअंदाज न करें। मुमकिन है आप अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हों, जो आपको अंदर ही अंदर खोखला बनाती जाती है। उन्होंने चार अन्य लक्षण भी गिनाए हैं, जो नए दोस्त तलाशने का संकेत देते हैं।



इन पांच लक्षणों को हल्के में न लें--
1.सोशल मीडिया की लत  - कोरी फ्लॉयड के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में पाया गया कि इनसान अक्सर रियल लाइफ में मौजूद अपनों की कमी को भरने के लिए सोशल मीडिया का रुख करता है। हालांकि, वर्चुअल दुनिया में खुशी तलाशने की उसकी यह कोशिश अक्सर उल्टी ही पड़ती है। दूसरों के जीवन से तुलना के चक्कर में वह जलन, हीन भावना और यहां तक कि डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।


2.बार-बार सर्दी-जुकाम होना - फ्लॉयड के मुताबिक अकेलेपन के शिकार व्यक्ति में स्ट्रेस हार्मोन ‘कॉर्टिसोल’ का स्त्राव अधिक होता है। यह हार्मोन रोग-प्रतिरोधक कोशिकाओं के उत्पादन में बाधा डालता है, जिससे सर्दी-जुकाम सहित अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि अकेला व्यक्ति खुद को हमेशा खतरे में महसूस करता है। उसमें जीवन से आशा और उत्साह का भाव भी घटता चला जाता है।


3.जख्म जल्दी न भरना - अकेलेपन से जूझ रहे शख्स को जख्म जल्दी न भरने की शिकायत भी सता सकती है। दरअसल, सामाजिक स्तर पर अलग-थलग होने का एहसास ‘ग्रोथ हार्मोन’ के उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है। ये हार्मोन न सिर्फ त्वचा कोशिकाओं, बल्कि चोटिल हिस्से में खून का प्रवाह सुनिश्चित कर घाव भरने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने वाली नसों के उत्पादन के लिए अहम माने जाते हैं।


4.नींद कम या ज्यादा आना - अगर आपकी आधी रात करवट बदलने में गुजर जाती है या फिर आपको दिनभर सोते रहने का मन करता है तो यह भी अकेलेपन की निशानी है। फ्लॉयड की मानें तो तनहाई के एहसास से पैदा होने वाला ‘कॉर्टिसोल’ स्लीप हार्मोन ‘मेलाटोनिन’ का उत्पादन बाधित करता है। यही नहीं, कुछ लोगों में जीवन से निराशा का भाव पनपने लगता है, जिससे वे हर समय सुस्ती-थकान महसूस करते हैं।


5.भूख ज्यादा लगना, मोटापा - फ्लॉयड ने बताया कि अकेलेपन का एहसास मन में संतुष्टि का भाव जगाने वाले ‘लेप्टिन’ हार्मोन के उत्पादन में रोड़ा डालता है। इससे मस्तिष्क को पेट भरने का संकेत नहीं मिल पाता और व्यक्ति भूख से कहीं ज्यादा खाना खा लेता है। उन्होंने यह भी कहा कि अकेलेपन में मन हमेशा खतरे के एहसास से घिरा रहता है। आपात स्थिति से लड़ने के लिए ऊर्जा की कमी न पड़े, इस बाबत शरीर फैट संरक्षित करने लगता है।


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा