निजी अस्पताल कोविड-19 मरीजों को लूट रहे हैं - मरीजों की भर्ती और शुल्क को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आवेदन
नई दिल्ली। कोविड-19 रोगियों की दुर्दशा को उजागर करते हुए उपचार की आड़ में "भारत के नागरिकों को लूटने" के लिए कथित घोटाले और दुर्भावनाओं पर शीर्ष अदालत में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है। सचिन जैन की ओर से दायर उस जनहित याचिका में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मनीषा टी करिया के माध्यम से आवेदन को दाखिल दिया गया है, जिसमें निजी / कॉरपोरेट अस्पतालों में कोविड-19 के उपचार के शुल्क के नियमन की मांग की है। यह कहते हुए कि निजी अस्पताल शोषणकारी साधनों में लिप्त हैं और मरीजों से शुल्क वसूल रहे हैं क्योंकि राज्य सरकारों द्वारा दरों पर कैप को लागू किया गया है, आवेदक ने दो अलग-अलग अस्पतालों को चिन्हित किया है, जिन्होंने इसकी आड़ में आवेदक के परिवार से फार्मेसी बिल का भारी शुल्क वसूला है।
आवेदक ने दलीलों में कहा है कि भारत में वर्तमान स्थिति खराब है और कोविड-19 मामलों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है, भारत में स्थिति को "बहुत देर होने से पहले" काबू करने के लिए कुछ पहलुओं का तत्काल कार्यान्वयन बेहद महत्वपूर्ण है,भारत सरकार के सुझावों के साथ। 14 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ द्वारा पारित आदेश के निर्देशों के अनुपालन में न्यायालय के समक्ष ये मुद्दा है। इसमें शामिल है: -कोविड-19 रोगियों के दाखिले और अस्पताल से छुट्टी के लिए दिशानिर्देश तैयार करना। संबंधित जिले में प्राधिकरण भर्ती रोगियों के डेटा और स्थिति को बनाए रखने और अन्य रोगियों को बेड उपलब्ध कराने की स्थिति का निर्वहन करें। जो डेटा बनाए रखा जाएगा, उसका उपयोग जिले में उपलब्ध प्लाज्मा दाताओं की सूची बनाने के लिए भी किया जा सकता है; -कोविड-19 रोगियों को स्वीकार करने से इनकार करने का कारण अस्पताल के अधिकारियों द्वारा लिखित रूप में दिया जाना चाहिए। यह अस्पतालों को रोगियों को उनकी मनमर्जी और रिक्तियों के आधार पर मना करने से रोकने के लिए है; - हर जिले में विशिष्ट निगरानी समिति होनी चाहिए जहां सभी अस्पतालों को, जो कोविड-19 रोगियों को संभाल रहे हैं, उन्हें कोविड-19 रोगियों की रिपोर्ट / रिकॉर्ड भेजना चाहिए और आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस या इलेक्ट्रॉनिक मोड की मदद से बिलों की जांच करनी चाहिए।
दरअसल याचिकाकर्ता और वकील सचिन जैन ने तर्क दिया है कि सभी संस्थाओं के लिए एक नियम होना चाहिए क्योंकि सरकार ने रोगियों से लागत वसूलने के लिए उन्हें अधिकार दे दिए हैं। उन्होंने कहा था, " निजी अस्पतालों में जो कोविड-19 समर्पित अस्पताल हैं , उनके पास इस बात की कोई योग्यता नहीं है कि वे अस्पताल कितना शुल्क ले सकते हैं। मरीजों से 10 से 12 लाख रुपये वसूले जा रहे हैं। सरकार ने उन्हें बिना शुल्क के शक्तियां दी हैं।" जैन ने आगे तर्क दिया था कि अप्रकाशित और भारी शुल्क में सर्जिकल उपचार को शामिल नहीं किया गया है बल्कि केवल मरीजों को अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं।
याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी और कॉर्पोरेट संस्थाओं को देश भर में लागत नियमों का मुद्दा "तत्काल विचार" का विषय है क्योंकि कई निजी अस्पताल राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का व्यावसायिक रूप से शोषण कर रहे हैं। याचिका में कोरोना के रोगियों को बढ़े हुए बिलों और प्रतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनियों को इनकार करने की विभिन्न रिपोर्टों की ओर इशारा किया गया है।
याचिका में कहा गया है- "यह प्रस्तुत किया जाता है कि अगर अस्पतालों द्वारा इस तरह के बढ़ाए गए बिल बीमा उद्योग के लिए चिंता का विषय बन सकता है, तो एक आम आदमी की क्या दुर्दशा होगी, जिसके पास ना तो साधन हैं और प्रतिपूर्ति करने के लिए न ही बीमा कवर है, यदि उसके एक निजी अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग अभी भी किसी भी बीमा कवर का अधिकारी नहीं है और किसी भी सरकारी स्वास्थ्य योजना के तहत भी नहीं कवर नहीं हैं।"