अंकों को लेकर मेरे प्यार को 'शकुंतला देवी' ने फिर से ज़िंदा कर दिया - विद्या बालन
जयपुर। हाल ही रिलीज बायोपिक फिल्म 'शकुंतला देवी ' खासी चर्चा में है। शकुंतला देवी का नाम आते ही हमसे ज्यादातर के जहन में पौराणिक चरित्र दुष्यंत - शकुंतला का किरदार सामने आता है। लेकिन हमारे लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि यह फिल्म गणितज्ञ शकुंतला देवी के जीवन पर आधारित है, जिन्हें खुद 'ह्यूमन कंप्यूटर' कहा जाता रहा है। अंकों का तिलिस्म रच देने वाली शकुंतला देवी के दिमाग में आखिर क्या था, जो वे मिनटों में गणित के गूढ़ सवालों को हल कर लेती थीं, यह प्रश्न अब भी अनसुलझा है। 13 अंकों के गुणनफल को चंद सेकंड्स में हल कर देने वाली ऐसी महान शख्सियत का रोल निभाया है अभिनेत्री विद्या बालन ने । शकुंतला देवी को परदे पर जीवंत करने वाली विद्या बालन ने हाल ही सीएनएन न्यूज 18 के साथ बातचीत में खुलासा किया कि किस तरह वे खुद भी इस किरदार को अपने बेहद करीब महसूस करने लगीं थीं।
जब आप एक गणितज्ञ पर बायोपिक करते हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि गणित के साथ आप कितनी जुडी रही हैं? क्या आप मैथ्स की फेन रही हैं या फिर इससे दूर भागने वालों में से एक हैं ?
मैं बचपन से ही तारीखें, कार नंबर, फोन नंबर याद रखती थी या कह सकते हैं नम्बर्स के लिए पागल रहती थी। लोग मुझसे पूछते थे, "आप इतने नम्बर कैसे याद रख सकती हैं?" समय के साथ, हम सब मोबाइल से इतने जुड़ गए कि हर चीज इसमें फीड करने लगे। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इसलिए इस फिल्म ने मुझे वास्तव में नम्बर्स के लिए अपने प्यार को फिर से जगाने में मदद की और मुझे यह बेहद पसंद है।
क्या आप मैथ्स की अच्छी स्टूडेंट थीं?
मैं मैथ्स में अच्छी थी। मुझे 10 वीं कक्षा की ज्यामिति (ज्योमेट्री ) आज भी याद है। हमारी किताब में 'कंस्ट्रक्शन' नाम का एक चैप्टर था, जिसे 'डायग्राम' कहा जाता था। यह मुझे बहुत मुश्किल लगता था, मैं इसे नहीं कर पाती थी। इसलिए मैंने फैसला किया कि उन 12 नम्बर्स की तैयारी मैं नहीं कर रही हूं। लेकिन बाकी पूरा पेपर, मैंने वास्तव में बहुत अच्छा किया। जब रिजल्ट आया तो उन 12 अंकों को छोड़कर, मुझे 75 में से 63 अंक मिले।
फिल्म में एक सीन में आप कहती हैं कि 'मैथ्स में कोई रूल नहीं, सिर्फ जादू चलता है,' लगता है केवल आप ही हैं जो इससे सहमत हैं, जबकि मैथ्स में कमजोर ज्यादातर स्टूडेंट इससे तौबा करते हैं और इसे नहीं पढ़ना चाहते ...।
मुझे उम्मीद है कि यह लोगों की मैथ्स के प्रति धारणा, विशेष रूप से मैथ्स के साथ बच्चों के रिश्ते को बदल देगा। इसमें अंकों की जादूगरी को बेहद मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इस फिल्म की तैयारी के दौरान मैंने कुछ शॉर्टकट खोजे, खासकर वैदिक गणित के माध्यम से। मैंने पाया कि मैथ्स छात्रों के लिए जिंदगी को सहज और आसान बना सकती है। स्कूलों में भी इसे दिखाया जाये, ख़ास तौर पर बच्चों के लिए यह फिल्म प्रेरणा का काम कर सकती है।
मैथ्स के अलावा क्या था, जो शकुंतला देवी को महान बनाता है ?
यह जानना मेरे लिए बहुत आश्चर्यजनक था कि 1970 के दशक में एक महिला जीवन को ठीक उसी तरह जीती थी, जैसा वह चाहती थी। मुझे लगता है कि मेरे लिए यह सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन था। उन्होंने समलैंगिकता पर पहली पुस्तक 'द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल' लिखी, उन्होंने पुरुषों के लिए व्यंजनों की एक पुस्तक लिखी, पहेली की किताबें लिखीं, एक ज्योतिषी थीं, उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। वह हर पल ऐसे जीती थीं,जैसे वह जिंदगी का आखिरी पल हो।
शकुंतला देवी के व्यक्तित्व .में क्या ख़ास था? जैसा कि आम तौर पर हम लोग सोचते हैं, कोई भी 'मैथेमेटिकल जीनियस ' धीर -गंभीर ही होगा?
लेकिन अंकों की यह जादूगर तो इससे बिलकुल उलट थी। कंप्यूटर से तेज अंकों की गुत्थी सुलझाने वाली इस शख्सियत का नाम जहां गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ, वहीँ दूसरी और उनका बोल्ड और बिंदास अंदाज कुछ और ही बयां करता था। उन्हें रात में क्लबों में डांस करते देखा जा सकता था । वे खुल कर हंसती थी। उन्हें चटख कपडे, डार्क लिपस्टिक का शौक था, बालों को वे पूरी तरह कलर करवाती थीं और नाखून हमेशा रंगे रहते थे । उन्हें खाना बहुत पसंद था। उन्हें मधुमेह था, लेकिन वे चाय में तीन चम्मच चीनी लेती थीं। कुल मिलाकर वे जीवन के हर पहलू का आनंद लेती थीं और उन्होंने अपनी जिंदगी को उसी तरह जीया, जैसा वे खुद चाहती थीं।