अंकों की दिलचस्प जादूगरी यानी 'शकुंतला देवी'


मुझे नहीं लगता कि ब्रिटेन के फिल्म निर्देशक मैथ्यू ब्राउन की फिल्म ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी‘ के बारे में बहुत सारे लोगों को जानकारी होगी। और गिने-चुने जिन लोगों ने इस फिल्म का नाम सुना होगा या जो इस फिल्म के बारे में थोड़ा-बहुत जानते होंगे, उन्हें शायद यह भी पता होगा कि यह फिल्म देश के जाने-माने गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन पर आधारित है। साल 2015 में रिलीज हुई इस फिल्म की बहुत कम चर्चा हुई। लेकिन हाल ही रिलीज हिंदी फिल्म ‘शकुंतला देवी‘ की खूब चर्चा है। ज्यादातर लोगों को पता है कि यह फिल्म कर्नाटक की मशहूर गणितज्ञ शकुंतला देवी के जीवन पर आधारित एक बायोपिक है। दरअसल यह एक ऐसी हस्ती के बारे में बात करती है, जिसके बारे में टिक-टाॅक पर वाहियात किस्म के वीडियो बनाने वाली और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने वाली मौजूदा दौर की युवा पीढ़ी शायद कुछ भी नहीं जानती। लंदन फिल्म स्कूल से फिल्म मेकिंग में ग्रेजुएशन का कोर्स करने वाली निर्देशक अनु मेनन ने अपनी फिल्म ‘शकुंतला देवी‘ के जरिये दर्शकों और समीक्षकों को चैंकाया है। गणित जैसे विषय पर एक काॅमर्शियल और मनोरंजक फिल्म कैसे बनाई जा सकती है, यह अनु मेनन से सीखना चाहिए। 



इस फिल्म को पिछले हफ्ते ओटीटी प्लेटफाॅर्म पर रिलीज किया गया और यही इस फिल्म का सबसे दुखद पहलू भी है। आॅनलाइन स्ट्रीमिंग के कारण यह फिल्म निश्चित तौर पर बहुत कम दर्शकों तक पहुंच पाएगी। अगर यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती, तो एक बड़ा दर्शक वर्ग शकुंतला देवी के तिलिस्म को समझ पाता और यह जान पाता कि आखिर क्यों दुनिया उन्हें ह्यूमन कंप्यूटर कहती थी। 13 अंकों वाली संख्या का गुणनफल सिर्फ 28 सेकंड में निकालकर कंप्यूटर को मात देने वाली शकुंतला देवी के जीवन पर आधारित इस फिल्म को देश के सभी स्कूलों मंे दिखाया जाना चाहिए। खास तौर पर उन बच्चों के लिए यह फिल्म एक प्रेरणा का काम कर सकती है, जिनके लिए गणित किसी अजूबे से कम नहीं है।
हालांकि फिल्म आखिर तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाती कि शकुंतला देवी के लिए यह सब करना कैसे मुमकिन होता था। फिल्म के एक सीक्वेंस में दो डाॅक्टर उनके दिमाग का सीटी स्कैन करते हुए इस गुत्थी को सुलझाते हुए दिखाए गए हैं। लेकिन न उन्हें और न खुद शकुंतला को यह रहस्य पता है कि कैसे उनका दिमाग गणित के गूढ़ सवालों को पलक झपकते ही सुलझा लेता है।
फिल्म इस मिथक को भी तोड़ती है कि आम तौर पर वैज्ञानिक या गणितज्ञ अपनी निजी जिंदगी में बेहद नीरस और ऊबाऊ होते हैं। अंकों के जादू को मनोरंजक अंदाज में लोगों के सामने पेश करने वाली शकुंतला देवी दरअसल अपनी निजी जिंदगी में भी बेहद जिंदादिल और दिलचस्प इंसान थीं। दुनियाभर के शहरों की सैर करने के दौरान वे क्लब और बार में डांस करती थीं, अलग-अलग लोगांे से दोस्ती करती थीं और उन्हें जिंदगी को अपने ही अंदाज में जीने का मानो एक नशा था। हालांकि यह फिल्म शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा के नजरिये से बनाई गई है, लेकिन इसमें शकुंतला के जीवन से जुड़े वे तमाम रंग झिलमिलाते नजर आते हैं, जो उन्हें एक तिलिस्मी महिला का दर्जा देते हैं। बचपन में अपने घर वालों के लिए पैसा कमाने का जरिया बनने वाली शकुंतला रिश्तों को वह बहुत अधिक तवज्जो नहीं देती, अपनी मां से नफरत करती है, लेकिन जब उसकी बेटी बगावत पर उतारू हो जाती है, तो उसे इस हकीकत का अहसास होता है कि उसने मां को पूरी उम्र गलत समझा है। लंदन में  अपना शो बिजनेस खड़ा करने के बाद एक झटके में वह सब कुछ छोड़छाड़ कर अपनी बेटी को अपनाने का फैसला करती है। 
शकुंतला की जिंदगी में जितने भी रंग नजर आते हैं, उन सबको विद्या बालन ने बेहद खूबसूरती के साथ परदे पर उतारा है, जिन्होंने इस फिल्म में लीड रोल निभाया है। फिल्म में युवावस्था की विद्या बालन को देखने के बाद अधेड़ उम्र की विद्या को देखना अधिक हैरान करता है। फिल्म की मेकअप टीम ने विद्या के किरदार के साथ कमाल की मेहनत की है।
फिल्म ‘शकुंतला देवी’ की रफ्तार बहुत तेज है। दर्शक कुछ संभलें, इससे पहले ही किरदारों के नए रंग सामने आ जाते हैं। बीच-बीच में फिल्म में इमोशनल ड्रामा भी बहुत है, जैसे शुरुआत में ही शकुंतला का अपने आपको घर का मुखिया घोषित करना, अपने प्रेमी को गोली मार देना, संतान के लिए रिश्ते कायम करना और फिर बेटी के लिए अपने पति से अलगाव और आखिर में अपनी बेटी को फिर से हासिल करने के लिए ड्रामा करना। फिर भी इस ड्रामाबाजी के बावजूद फिल्म देखने योग्य बन जाती है। अंकों की जादूगरी को बेहद मनोरंजक बनाने वाली एक हस्ती के जीवन को सिनेमाई परदे पर पेश करने की एक फिल्मकार की ईमानदार कोशिशों की सराहना की जानी चाहिए।


 


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