पानी की बर्बादी नहीं रोकी तो शून्य से भी नीचे जा सकती है देश की विकास दर

एक ओर भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। देश में हर साल दो लाख लोग साफ पानी नहीं मिलने की वजह से मर जाते है। दूसरी ओर जिनके पास RO  है, वहां पानी की बर्बादी हो रही है। एक लीटर साफ़ पानी लेने के लिए तीन लीटर पानी बहाया जाता है । एक तथ्य यह भी है कि अगले 11 वर्षों में देश के 60 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने का पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा । एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत में पानी की बर्बादी नहीं रोकी गई तो इससे भारत की विकास दर शून्य से भी नीचे जा सकती है। 


जयपुर। अगर आपके घर में भी वाटर प्योरिफायर यानी  RO  लगा है और आप  फिल्टर किया पानी ही पीते हैं,  तो सावधान हो जाइए। क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( NGT ) ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को आखिरी चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार इस साल के अंत तक ऐसे वाटर प्योरिफायर पर प्रतिबंध लगा दे जिनमें पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान 70-80 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। एनजीटी के अनुसार सिर्फ ऐसे RO  की बिक्री को ही इजाजत मिलनी चाहिए, जो पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान 40 प्रतिशत से कम पानी बर्बाद करते हैं।  इसके अलावा, एनजीटी ने उन जगहों पर वाटर प्योरिफायर पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है, जहां एक लीटर पानी में टीडीएस यानी टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है। इसी वजह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आरओ के इस्तेमाल का नियमन करने के प्रयास के तहत सरकार को निर्देश दिए हैं। एनजीटी ने ये आदेश कुछ महीनों पहले भी दिया था लेकिन पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से इसे लागू कराने में देर हो रही है। सरकार ने इसे लागू कराने और लोगों को जागरूक करने के लिए चार महीने का समय माँगा है। सम्भवत साल के अंत तक यह प्रभावी हो जाएगा।



पानी की गुणवत्ता समान नहीं 


भारत में हर जगह पीने के पानी की गुणवत्ता एक जैसी नहीं हैं, इसलिए लोगों को ये पता नहीं चल पाता कि उनके यहां जो पानी आता है, वो पीने के लायक है या नहीं।  RO   या मिनरल वाटर का आजकल ट्रेंड बढ़ता जा रहा है। इन दिनों लोग इसी का पानी पीना पसंद करते हैं। बेशक, यह ध्यान रखना जरूरी है कि आप जो पानी पी रहे हैं,  वह स्वच्छ और शुद्ध  हो ।  ट्रांसपेरेंसी मार्केट रिसर्च के अनुसार, हाल के वर्षों में स्वस्थ जीवन के प्रति देश में  जागरूकता  ने वाटर प्योरिफायर को जनजीवन के लिए जरूरी बना दिया है। इसी धारणा ने आरो के मार्केट को बढ़त दी है। पानी में कई प्रकार की अशुद्धियाँ क्लोरीन, आर्सेनिक, मेटल आर्टिकल, बालू कण  टीडीएस आदि पाए जाते हैं, जिनसे बचने और स्वच्छ जल पीने के लिए हम आरो का इस्तेमाल करते हैं। हम मानकर चलते हैं कि दूषित पानी पीना हमारे लिए नुकसानदायक होगा, जबकि यह जानकारी अधूरी है ।


टीडीएस की मात्रा  जानना  जरूरी


RO  को घर या ऑफिस में लगाने से पहले पानी में उपलब्ध टीडीएस की जानकारी हमारे लिए लेना बेहद जरूरी है। कुछ नए और स्मार्ट आरो सिस्टम आपको ये बताने में सक्षम होते हैं कि आपके पानी में टीडीएस की मात्रा कितनी है। इसके अलावा आप टीडीएस मीटर के जरिए भी इसका पता लगा सकते हैं। क्षेत्रीय निकाय भी पानी की क्वालिटी और टीडीएस की जानकारी प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित कर सकते हैं।   ज्यादातर जनता  इस तथ्य से अनजान हैं और अपने घर पर इनपुट पानी में टीडीएस का परीक्षण किए बिना आरओ वाटर प्योरिफायर लगाए जा रहे हैं।


अलग-अलग मानक


ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स के मुताबिक भारत में एक लीटर पानी में टीडीएस की मात्रा अगर 500 मिलीग्राम या उससे कम है, तो ये पीने लायक है,  इसे आरो की जरूरत नहीं है । गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के अनुसार 300 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम टीडीएस को उत्तम माना जाता है। तकरीबन 900 मिलीग्राम टीडीएस प्रति लीटर को खराब और 1200 मिलीग्राम टीडीएस प्रति लीटर से ऊपर का पानी पीने के लायक नहीं होता।    टीडीएस  की जानकारी लेकर ही हम समझ पाएंगे कि क्या हम जो पानी वाटर प्योरिफायर से ले रहे हैं,  वह हमारे लिए पूरी तरह से उपयोगी है?


स्वास्थ्य और बर्बादी 


एनजीटी  द्वारा बनाई एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के मुताबिक जिस पानी में 500  मिलीग्राम प्रति  लीटर से कम सॉलिड्स हैं,  उस पानी को आरो  से साफ करने पर न केवल  ग्राउंड वाटर प्रदूषण बढ़ेगा,  पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा बल्कि पानी से ज़रूरी मिनरल्स की मात्रा कम हो जाएगी, जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। इनमें आयरन, कैल्शियम और पोटेशियम जैसे मिनरल्स शामिल हैं । जाहिर है कि  इसके लिए लोगों को मिनरल रहित पानी के बुरे प्रभावों के बारे में सचेत होना होगा। लम्बे समय तक इसका सेवन इम्युनिटी में भी कमी ला सकता है।


वाटर प्योरिफायर के साथ समस्या यह है कि पानी की शुद्धिकरण प्रक्रिया के दौरान लगभग 70 से 80 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। आरओ सिस्टम की बढ़ती लोकप्रियता और अंधाधुंध उपयोग के कारण,  यह पानी की भारी बर्बादी का कारण बन रहा है। अब इस पर सख्ती की जाएगी। एनजीटी का कहना है कि आगे उन्हीं आरओ को बिक्री की इजाजत मिलेगी, जो पानी की शुद्धिकरण प्रक्रिया में 40 प्रतिशत से ज्यादा पानी बर्बाद नहीं करते हैं ।


RO  की जरूरत कहाँ ? 


 विशेषज्ञों का मानना है कि वाटर प्योरिफायर लगाने की जरूरत सिर्फ उन्हीं लोगों को है जिनके यहां आने वाले पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है। या फिर उन जगहों पर होगी, जहां पानी का स्रोत समुद्र का पानी है, या कुएं / बोरिंग का भूजल है, या जहां औद्योगिक प्रदूषण या कीटनाशक के उपयोग के कारण टीडीएस या रसायन पानी की आपूर्ति में मौजूद हैं। अगर आपके यहां का पानी खराब है तो कोई बात नहीं, आरओ इस्तेमाल करें, लेकिन आरओ के वेस्ट  वाटर को ऐसे ही न बहाएं। इस वेस्ट पानी का इस्तेमाल और दूसरे कामों के लिए कर सकते हैं मसलन पोंछा लगाना, धुलाई करना  आदि ।  कुल मिलाकर हमें पानी की बर्बादी रोकनी होगी ।


 


 


     


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