महामारी को खत्म करने की वैश्विक स्पर्धा में भारत की स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन
140 से अधिक वैक्सीन विकास के विभिन्न चरणों में हैं। प्रमुख उम्मीदवार वैक्सीन हैं- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेनर इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित एजेडडी 1222 वैक्सीन, जिसके निर्माण का लाइसेंस एस्ट्राजेनेका को दिया गया है, जो ब्रिटिश-स्वीडिश बहुराष्ट्रीय दवा और बायोफार्मास्युटिकल कंपनी है और जिसका मुख्यालय कैंब्रिज, इंग्लैंड में है। कैसर परमानेंट वाशिंगटन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट, वाशिंगटन द्वारा विकसित एमआरएनए-1273 वैक्सीन का लाइसेंस अमेरिका स्थित मॉडर्न फार्मास्युटिकल को मिला है। इन दोनों कंपनियों ने पहले ही कोविड वैक्सीन के उत्पादन के लिए भारतीय निर्माताओं के साथ समझौते किये हैं।
समानांतर रूप से वैक्सीन के विकास के लिए भारतीय संस्थान भी अनुसंधान एवं विकास के कार्य में लगे हुए हैं। आईसीएमआर, पुणे; नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे और सीएसआईआर- सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद जैसे संस्थानों से आने वाले प्राथमिक वैज्ञानिक इनपुट के साथ, छह भारतीय कंपनियां कोविड-19 के वैक्सीन पर काम कर रही हैं। दो भारतीय वैक्सीन, जाइकोव-डी तथा कोवाक्सिन के साथ, दुनिया भर में, 140 वैक्सीन उम्मीदवारों में से 11 के मानव परीक्षण चरण की शुरुआत हो गयी है।
रोगाणु के ऐन्टिजन और मानव प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा निर्मित एंटीबॉडी को संगत जोड़ी के रूप में सोचा जा सकता है। प्रत्येक रोगाणु की विशिष्ट आणविक संरचनाएं होती हैं जिसे एंटीजन कहा जाता है। वे एक सतह की तरह होते हैं जिनका विशेष रंग और डिजाइन होता है। रोगाणु से संक्रमित होने के बाद, मानव प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी का निर्माण करती है जो एंटीजन के समान होती है।
जिस तरह खुदरा विक्रेता विशेष रंग और डिजाइन के सामानों का भंडार रखता है, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में भी दस हजार प्रकार के एंटीबॉडी हैं। यदि रोगाणु एक जाना-पहचाना दुश्मन है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली स्टॉक से मिलते-जुलते डिज़ाइन का उपयोग करती है। मिलान हो जाने के बाद रोगाणु निष्क्रिय हो जाता है। अब यह संक्रमित नहीं कर सकता है।
हालांकि, अगर सूक्ष्मजीव अपरिचित है, और मुख्य रूप से जब यह पहली बार उभरा है, तो सूची में कोई रंग और डिज़ाइन उपलब्ध नहीं होता है। फिर भी, एंटीबॉडी विकसित हो सकती है। सबसे पहले, निकटतम समानता की कोशिश की जाती है। एंटीबॉडी विकास के विभिन्न चक्रों के बाद, जो एंटीबॉडी सबसे सटीक होती है वह परिपक्व होती है। मुख्य सतह के रंग की पहचान करने (एंटीजन) तथा समान डिजाइन का युग्मन करने (एंटीबॉडी) के बीच का समय-अंतराल ही संक्रमण को हल्का या गंभीर बनाता है। यदि प्रतिरक्षा प्रणाली रोगाणु को तुरंत बेअसर कर सकती है, तो संक्रमण को रोका जा सकता है।
जैसे नए डिज़ाइन को भविष्य के लिए स्टॉक किया जाता है, उसी तरह जब एंटीजन से मेल खाते हुए नए एंटीबॉडी का विकास होता है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली इसे स्मृति में बनाए रखती है। अगली बार जब लगभग समान रोगाणु आक्रमण करता है, प्रतिरक्षात्मक स्मृति सक्रिय हो जाती है, और जुड़वां एंटीबॉडी जारी की जाती है। संक्रमण को शुरुआत में ही ख़त्म कर दिया जाता है। हमें प्रतिरक्षा हासिल होती है।
वैक्सीन कृत्रिम रूप से प्रतिरक्षात्मक स्मृति को प्रेरित करने की एक विधि है। जब रोगाणु प्रवेश करते हैं, तो प्रतिरक्षा प्रणाली को युग्मित (मेल खाती हुई) एंटीबॉडी और प्रतिरक्षात्मक स्मृति को विकसित करने के लिए उत्प्रेरित किया जाता है।
ऐसे कई तरीके हैं जिनके जरिये एंटीबॉडी और स्मृति (मेमोरी) को विकसित करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को कृत्रिम रूप से उत्प्रेरित किया जा सकता है। मूल बात है कि नोवेल कोरोनवायरस के एंटीजन को मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए प्रस्तुत करना। एडिनोवायरस-आधारित (श्वसन तंत्र को संक्रमित करने वाले रोगाणु )तथा जीवित व कमजोर किये गए वायरस से लेकर पुनः संयोजक आनुवंशिक तकनीक का उपयोग वैक्सीन को विकसित करने के लिए किया जाता है। भारत की दो संभावित वैक्सीन हैं - निष्क्रिय वायरस वैक्सीन और डीएनए प्लास्मिड वैक्सीन।
हम गर्मी या फॉर्मेल्डिहाइड से वायरस को निष्क्रिय कर सकते हैं (मार सकते हैं) तथा एंटीजन आणविक संरचनाओं को बरकरार भी रख सकते हैं। निष्क्रिय वायरस बीमारी या संक्रमण पैदा करने में सक्षम नहीं होगा, क्योंकि यह अब काम नहीं कर सकता है। भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन - निष्क्रिय वायरस वैक्सीन विकसित करने के लिए उस वायरस का उपयोग किया है जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा एक भारतीय मरीज से अलग किया गया था।
नोवेल कोरोनवायरस अपने स्पाइक प्रोटीन की मदद से मानव कोशिकाओं को संक्रमित करता है। वायरस का स्पाइक प्रोटीन मानव श्वसन पथ की कोशिकाओं की सतह पर एसीई 2 रिसेप्टर्स के साथ बंध जाता है। जब वायरस एकरूप (फ्यूज) हो जाता है तो वायरल जीनोम मानव कोशिका में प्रवेश कर जाता है, जहां सिर्फ दस घंटों में लगभग एक हजार वायरस बन जाते हैं। ये शिशु वायरस पास की कोशिकाओं में जाते हैं। संक्रमण को रोका जा सकता है यदि हम नोवेल कोरोनवायरस के स्पाइक प्रोटीन को निष्क्रिय करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार स्पाइक प्रोटीन पर एंटीजन, वैक्सीन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। यदि एंटीबॉडी स्पाइक प्रोटीन को अवरुद्ध करती है, तो वायरस कोशिका से एकरूप नहीं हो सकता है और अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकता है।
स्पाइक प्रोटीन का जीनोम कोड एक हानिरहित डीएनए प्लास्मिड में मिलाया जाता है। वायरल स्पाइक प्रोटीन के आनुवंशिक कोड वाले इस संशोधित प्लास्मिड डीएनए को मेजबान कोशिकाओं में पेश किया जाता है। सेलुलर मशीनरी डीएनए की पहचान करती है और जीनोम में एन्कोड किये गए वायरल प्रोटीन बनाती है। मानव प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी प्रोटीन की पहचान करती है और इसके समान एंटीबॉडी विकसित करती है। इस वैक्सीन को देने के बाद, यदि किसी भी समय, हम नोवेल कोरोनावायरस से संक्रमित होते हैं, तो स्पाइक प्रोटीन को समझते हुए तुरंत एंटीबॉडी जारी हो जाती है। प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा निष्क्रिय वायरस को समाप्त कर दिया जाता है। संक्रमण होने से पहले ही रोग-संचार को ख़त्म कर दिया जाता है।