माँ के कहे एक शेर ने बदल दी थी जगदीप की ज़िन्दगी

मुंबई। "वो मंजिल क्या जो आसानी से तय हो/वो राह ही क्या जो थककर बैठ जाए !" बॉलीवुड के मशहूर कॉमेडियन और सूरमा भोपाली के नाम से लोकप्रिय जगदीप की माँ ने एक बार उनसे यह शेर कहा था और यही वो वक़्त था जब जगदीप की ज़िन्दगी बदल गई थी। खुद जगदीप अक्सर  अपने इंटरव्यू में माँ के इस  शेर का जिक्र करते थे।  आज जगदीप  हमारे बीच नहीं हैं। बुधवार की रात उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वे अक्सर कहते थे कि .'पूरी जिंदगी मुझे ये ही शेर समझ में आता रहा कि वो राही क्या जो थककर बैठ जाए।  तो अपने एक-एक कदम को एक मंजिल समझ लेना चाहिए, हमें  छलांग नहीं लगानी चाहिए, इसमें गिरने का खतरा रहता है। '



सूरमा भोपाली के नाम से लोकप्रिय जगदीप  पिछले कुछ समय से बीमार थे। 400 से अधिक फिल्मों में काम करने वाले जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था। जगदीप को 2019 में आइफा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्‍हें अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र अभिनीत फिल्म 'शोले' में सूरमा  भोपाली की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता था। बॉलीवुड अभिनेता जावेद जाफ़री और टीवी निर्माता नावेद जाफ़री जगदीप के बेटे हैं। 


उनका जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया में हुआ था। उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बाल कलाकार के तौर पर बी आर चोपड़ा की फिल्म अफसाना से की थी। बिमल रॉय की फिल्म दो बीघा जमीन (1953) से उन्होंने बतौर सपोर्टिंंग एक्टर अपने करियर का आगाज किया था। उन्होंने ज्यादातर कॉमेडी किरदार निभाए। हालांकि कुछ हॉरर फिल्मों पुराना मंदिर और सामरी में भी काम किया था। उन्होंने फिल्म सूरमा भोपाली का निर्देशन भी किया था।


जगदीप सूरमा भोपाली कैसे बने, इसका जवाब देते हुए एक इंटरव्यू में जगदीप ने कहा था यह बड़ा लंबा और दिलचस्प किस्सा है। सलीम खान और जावेद अख्तर की फिल्म थी 'सरहदी लुटेरा'। उसमें उन्होंने कॉमेडियन का किरदार निभाया था। फिल्म के डायलॉग बहुत बड़े थे। उन्होंने फिल्म के निर्देशक एस एम सागर से कहा कि डायलॉग बहुत बड़े हैं। उन्होंने लेखकों से उस संबंध में बात करने को कहा। बहरहाल, सलीम के साथ बैठने पर उन्होंने खास लहजे में बात की। जगदीप ने कहा ये उन्होंने कभी नहीं सुना। इस पर सलीम ने कहा कि ये भोपाल की औरतों का लहजा है। वो इसी तरह बात करती हैं। उन्होंने कहा कि मुझे भी सिखाओ। इस वाकये के 20 साल बीत जाने के बाद फिल्म शोले शुरू हुई। उन्हें लगा कि शूटिंग के लिए बुलाया जाएगा लेकिन वैसा हुआ नहीं। एक दिन रमेश सिप्पी का फोन उनके पास आया। उन्होंने कहा कि शोले में काम करना है। यह सुनकर जगदीप ने कहा कि उसकी तो शूटिंग तो पूरी हो गई। यह सुनकर उन्होंने कहा कि नहीं ये सीन असली है इसकी शूटिंग अभी बाकी है। वहीं से वह सूरमा भोपाली के तौर पर विख्यात हुए।


विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आ गया थाा। 6-7 साल के थे। पिता के निधन के बाद मां ने परवरिश की थी। दूसरे बच्चों को काम करता देख उन्हें ख्याल आया कि उन्हें अपनी मां का हाथ बंटाना चाहिए। मां से पढ़ाई छोड़ने की बात की। मां ने समझाया, लेकिन वह नहीं माने। उन्होंने काम करना शुरू किया, पतंगें बनाने और साबुन बेचने लगे। जिस सड़क पर वह काम करते थे, वहां एक शख्स आया जो फिल्म के लिए बच्चे ढूंढ़ रहा था। जब उसने जगदीप को पूछा कि फिल्मों में काम करोगे, तो उन्होंने पूछा था कि यह क्या होता है, क्योंकि फिल्में कभी देखी नहीं थी। शख्स ने बताया अभिनय करना होगा, जिसके बदले तीन रुपये मिलेंगे। तीन रुपये सुनते ही वह तैयार हो गए। स्टूडियो में मां के साथ पहुंचे तो एक सीन में उन्हें बच्चों में बैठना है, जो नाटक देख रहे है। वहां एक उर्दू का डायलॉग था, जो कोई बच्चा नहीं बोल पा रहा था। उन्होंने बगल में बैठे बच्चे से पूछा अगर मैं यह डायलॉग बोल दूं तो, तब उस बच्चे ने कहा कि तुम्हें छह रुपये मिल जाएंगे। उन्होंने डायलाग बोले। फिल्म थी 'अफसाना', जिसके डायरेक्टर थे बी आर चोपड़ा और असिस्टेंट डायरेक्टर थे यश चोपड़ा। 'भाभी', 'बरखा' जैसी फिल्मों में उन्होंने हीरो की भूमिका निभाई थी।  वर्ष 1968 में रिलीज हुई फिल्म 'ब्रह्मचारी' से उन्होंने कॉमेडियन के तौर पर खुद को स्थापित किया।


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