रामगोपाल वर्मा ने किया करण का समर्थन, कहा - आउटसाइडर जैसी कोई चीज़ नहीं

मुंबई। जाने-माने फिल्मकार रामगोपाल वर्मा ने लगातार 15 ट्वीट्स करके नेपोटिज़्म और 'इनसाइडर बनाम आउटसाइडर' के मुद्दे पर अपनी बात रखी है। उन्होंने इनसाउडर-आउटसाइडर की थ्योरी को सिरे से खारिज करते हुए पब्लिक से ही कुछ सवाल पूछे हैं और साफ़ तौर पर करण जौहर का बचाव करने का प्रयास किया है। उन्होंने लिखा- ''नेपोटिज़्म कहां नहीं है? जो हुआ उसके लिए करण जौहर को दोष देना हास्यास्पद और फ़िल्म इंडस्ट्री के काम करने के तौर-तरीकों की कम समझ का नतीजा है। अगर करण को सुशांत से कोई दिक्कत भी होती तो भी यह उनकी च्वाइस है वो किसके साथ काम करना चाहते हैं, जैसे किसी दूसरे फ़िल्ममेकर की च्वाइस होती है कि वो किसके साथ काम करना चाहता है।"



गौरतलब है कि सोशल मीडिया में चल रही इन बहसों के बीच करण जौहर एक प्रतीक के तौर पर उभरे हैं जिनके इर्द-गिर्द नेपोटिज़्म की चर्चा सिमटकर रह गयी है। सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद से ही सोशल मीडिया में नेपोटिज़्म (भाई-भतीजावाद) और इनसाइडर-आउटसाइडर की बहस छिड़ी हुई है। एक वर्ग का मानना है कि सुशांत को बॉलीवुड ने कभी अपनाया नहीं और व्यावसायिक बेरुख़ी की वजह से एक उभरता हुआ सितारा यह जहां छोड़ गया। ख़ास बात यह है कि यह बहस बॉलीवुड के अंदर और बाहर दोनों तरफ़ छिड़ी हुई है। कुछ सेलेब्रिटीज़ ने भी बॉलीवुड में ग्रुपिंग की ओर इशारा किया है और करण जौहर को लगातार ट्रोल किया जा रहा है। 


रामगोपाल वर्मा ने नेपोटिज़्म और 'इनसाइडर बनाम आउटसाइडर' के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा, "अगर 12 साल की शोहरत और दौलत के बाद सुशांत ने अपनी ज़िंदगी ले ली, क्योंकि उन्हें आउटसाइडर महसूस करवाया गया तो 100 एक्टर्स को हर रोज़ सुसाइड कर लेना चाहिए, जो उसके आस-पास भी नहीं पहुंच सके हैं, जहां सुशांत जहां पहुंच चुके थे। अमिताभ बच्चन जैसे कई इनसाइडर कभी आउटसाइडर ही थे। करण जौहर इसलिए इंडस्ट्री में नहीं हैं क्योंकि इनसाइडर हैं, बल्कि उनकी फ़िल्में लाखों लोगों द्वारा देखी जाती हैं। हम सब जानते हैं कि बाहर वाले जितने असफल होते हैं, फ़िल्मी परिवार भी उतने ही असफल रहते हैं। इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता कि तमाम लोग सुशांत को बाहर देखना चाहते थे, क्योंकि ऐसे लोग भी कम नहीं होंगे, जो उनके साथ काम करना चाहते होंगे। लेकिन जैसे यह सुशांत की च्वाइस थी कि वो किसके साथ काम करेंगे, वैसे ही यह दूसरों की भी च्वाइस है कि वो सुशांत के साथ काम करें या ना करें।''


रामगोपाल वर्मा आगे लिखते हैं- ''सोशल मीडिया में इस बात को लेकर ख़ूब शोर किया जा रहा है कि एक बेहद होनहार व्यक्ति को हाशिए पर डाल दिया गया। सच तो यह है कि ये वही लोग हैं, जो सुशांत से ज़्यादा दूसरों की फ़िल्में देख रहे थे। करण जौहर ने ऑडिएंस की कनपटी पर बंदूक रखकर अपनी फ़िल्में नहीं दिखायी हैं। इनसाइडर-आउटसाइडर जैसी कोई चीज़ नहीं है। यह सिर्फ़ दर्शक हैं जो तय करते हैं कि वो किसे पसंद करते हैं, किसे नहीं। फ़िल्म फैमिलीज़ चाहे जितनी बड़ी हों, जनता को प्रभावित करने की ताक़त नहीं रखतीं। यह मत भूलिए, करण जौहर इसलिए हैं, क्योंकि लोगों ने बड़ा बनाया। जो लोग करण पर निशाना साध रहे हैं, उनमें ऐसे भी हैं जो सुशांत की मौत के बहाने करण के ख़िलाफ़ अपनी ईर्ष्या को ज़ाहिर कर रहे हैं।''


उन्होंने लिखा, ''नेपोटिज़्म को नेगेटिव समझना मज़ाक की तरह है, क्योंकि पूरा समाज परिवार को प्यार करने के सिद्धांत पर ही टिका है। क्या शाह रुख़ ख़ान आर्यन के बजाए किसी और को लॉन्च करेंगे, सिर्फ़ इसलिए की वो ज़्यादा काबिल है? (काबिलियत कौन तय करेगा?) रही बात इस सारे शोर-शराबे की कि एक सुपर टैलेंट को दबा दिया गया, मैं यह शर्त लगा सकता हूं कि 48 घंटे पहले तक सोशल मीडिया में उन लाखों लोगों की तरफ़ से एक भी ऐसा कमेंट नहीं किया गया, जिसमें सुशांत की फ़िल्में देखने की मांग की गयी हो।"


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा