नफ़रत भरी भाषा को ख़त्म करने के लिए कोका-कोला कंपनी ने रोके अपने विज्ञापन

मुंबई। कोका-कोला कंपनी ने घोषणा की है कि विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हेट स्पीच को लेकर दबाव बनाने के लिए वो कम से कम 30 दिनों के लिए इन प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन नहीं देगी। पेय निर्माता कंपनी के चेयरमैन और सीईओ जेम्स क्विन्सी ने कहा, "दुनिया में नस्लवाद के लिए कोई जगह नहीं है और सोशल मीडिया पर नस्लवाद के लिए कोई जगह नहीं है।" उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों से 'अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता' की मांग की।



यह घोषणा फ़ेसबुक के उस बयान के बाद हुई है जब उसने कहा था कि वो न्यूज़ वैल्यू के हिसाब से किसी पोस्ट को ख़तरनाक या भ्रामक घोषित करेगा। फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग ने कहा है कि वो उन विज्ञापनों को भी प्रतिबंधित करेंगे जिनमें 'विभिन्न नस्लों, राष्ट्रीयता, धर्म, जाति, लिंग या प्रवासियों' को लेकर ख़तरा होगा। #StopHateforProfit अभियान के आयोजकों ने फ़ेसबुक पर नफ़रत भरे संदेशों और ग़लत सूचनाओं को न रोकने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि 'कम संख्या में कम बदलाव समस्या का समाधान नहीं कर पाएंगे।' #StopHateforProfit के समर्थन में 90 से अधिक कंपनियां अपने विज्ञापन रोक चुकी हैं।


हालांकि, कोका-कोला ने सीएनबीसी से कहा है कि उसका विज्ञापन स्थगित करने का मतलब यह नहीं है कि वो इस अभियान का समर्थन कर रहा है। क्विंन्सी ने कहा कि कंपनी का वैश्विक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन रोकने के बाद वह अपनी विज्ञापन नीतियों पर फिर से विचार कर पाएगी।


ज़करबर्ग की घोषणा के बाद कपड़ा निर्माता लेवी स्ट्रॉस एंड कंपनी ने कहा था कि वह फ़ेसबुक पर विज्ञापन रोक रही है। कोका-कोला से अलग इसने सोशल मीडिया कंपनी पर बहुत कुछ न करने का आरोप लगाया था। कंपनी के सीएमओ जेन से ने कहा, "हम फ़ेसबुक से कह रहे हैं कि वो निर्णायक बदलाव का वादा करे।"


उन्होंने कहा, "हम ग़लत सूचना और नफ़रत भरी भाषा को ख़त्म करने की दिशा में सार्थक प्रगति देखना चाहते हैं। मतदाताओं को प्रभावित करने वाले राजनीतिक विज्ञापनों और सामग्री से बेहतर तरीक़े से निपटने में हम प्रगति देखना चाहते हैं। हालांकि, हम फ़ेसबुक की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने इस दिशा में कुछ क़दम उठाएं हैं लेकिन वो नाकाफ़ी हैं।"इस अभियान का कहना है, "फ़ेसबुक के साथ ऐसा पहले भी हम देख चुके हैं। वह पहले भी माफ़ी मांग चुका है। अपने प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए किसी एक बड़ी तबाही में अपनी भूमिका निभाने के बाद फ़ेसबुक ने कुछ मामूली क़दम उठाए थे लेकिन अब यह बंद होना चाहिए।"


ज़करबर्ग से मांग की गई है कि वो नफ़रत भरी सामग्री रोकने के लिए और क़दम उठाएं। साथ ही अपनी कंपनी में स्थायी नागरिक अधिकारों के बुनियादी ढांचे की स्थापना करें। इस अभियान की मांग है कि फ़ेसबुक एक स्वतंत्र ऑडिट कराए जो किसी ख़ास पहचान वाले शख़्स के ख़िलाफ़ नफ़रत और ग़लत सूचना की जांच करे और इस तरह की सामग्री को प्रकाशित करने वाले सार्वजनिक और निजी समूहों को ढूंढकर हटाए।


 


 


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा