बीमा कंपनी ने कागजों में फंसा दिया क्लेम, इरडा के आदेश भी दरकिनार
जयपुर। हाल ही भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने अपने ताजा दिशानिर्देशों में कहा है कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां लगातार आठ साल तक प्रीमियम लेने के बाद बीमा दावों पर एतराज नहीं कर सकती हैं। इरडा ने कहा कि इन दिशानिर्देशों का मकसद क्षतिपूर्ति आधारित स्वास्थ्य बीमा (व्यक्तिगत दुर्घटना और घरेलू/विदेश यात्रा को छोड़कर) उत्पादों में बीमे की रकम पाने के लिए सामान्य नियम और शर्तों का मानकीकरण करना है। इसके लिए पॉलिसी करार के सामान्य नियमों और शर्तों की भाषा को आसान बनाया जाएगा और पूरे उद्योग में एकरूपता सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) के ऐसे तमाम आदेशों को बीमा कम्पनियाँ कोई तवज्जो नहीं दे रही हैं और इन बीमा कंपनियों की मनमानी पहले की तरह ही जारी है।
इसी तरह के एक हालिया मामले में वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र ग्रोवर के बीमा दावे को रेलिगेयर हेल्थ इंश्यूरेंस कंपनी ने मानने से इंकार कर दिया है और अब कागजात के नाम पर उनके बीमा दावे को टालने का प्रयास किया जा रहा है। पत्रकार सुरेंद्र ग्रोवर का दावा है कि रेलिगेयर हेल्थ इंश्यूरेंस कंपनी हॉस्पिटल कैश पालिसी का क्लेम एप्रूव करने के बजाय नित नए कागजात की मांग कर रही है। सुरेंद्र ग्रोवर कहते हैं. 'दिल की बात बताऊँ तो सच यही है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आने के बाद बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसके चलते भारी तनाव में हूँ। यह तनाव न तो ढंग से सोने दे रहा है और न ही मेरा शुगर लेवल नियंत्रित होने दे रहा है और इसके चलते मनोमस्तिष्क फिर से अवसाद के गहरे समुद्र में डुबकियाँ लगाने लगा है। इस सबके पीछे रेलिगेयर हेल्थ इंश्यूरेंस कंपनी का मनमाना रवैया जिम्मेदार है।'
वे कहते हैं, 'पॉलिसी लेते वक्त मुझे बताया गया था कि अस्पताल में भर्ती होने पर जो खर्च अन्य स्वास्थ्य पॉलिसी में कवर नहीं होते। यह भी बताया गया था कि उन्हें इस पॉलिसी में कवर किया जाता है और 100 दिन तक के लिए 5 हज़ार रुपये रोज के हिसाब से महज डिस्चार्ज टिकट और कैंसल चैक सबमिट करने पर क्लेम का भुगतान कर दिया जाता है। अब मैंने 31 दिन भर्ती रहने के बाद एक लाख 55 हज़ार रुपये का क्लेम किया है तो रेलीगर ने मुझसे अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान के दस्तावेज़ों के अलावा पिछला रिकॉर्ड भी मांगना शुरू कर दिया जोकि है नहीं। मेरे पास सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर में इलाज़ के जो भी दस्तावेज थे वे सब उनको मुहैया करवा स्वघोषणापत्र भी भेज दिया। यही नहीं, अस्पताल से फाइनल कंसल्टेशन रिपोर्ट भी हासिल कर भिजवा दी, जिसमें डॉक्टर ने स्पष्ट लिखा है कि इन्सुलिन थैरेपी लिए जाने का और अन्य किसी रोग का कोई इतिहास नही पाया गया। लेकिन वे बार बार अपनी एक ही रट लगाए बैठे हैं। यह सब भी तब कर रहे हैं, जबकि उनके अपने डॉक्टर मेरे क्लेम को वेरिफाई कर चुके हैं। इसके चलते पैदा हुए तनाव के कारण मैं फिर अस्पताल में भर्ती होने से पहले वाली हालत में पहुंच चुका हूँ और सम्भव है कि दुबारा अस्पताल की शरण में जाना पड़े।'
दूसरी तरफ़ दावा निपटान को लेकर इरडा का कहना है कि सभी जरूरी दस्तावेज मिलने के 30 दिनों के भीतर बीमा कंपनी के लिए दावे का निपटान या उसे अस्वीकार करना जरूरी है। किसी दावे के भुगतान में देरी के मामले में नियामक ने कहा कि ऐसे में बीमा कंपनी को ब्याज का भुगतान करना होगा। ब्याज की दर बैंक की दर से 2 फीसदी ज्यादा होगी।
सुरेंद्र ग्रोवर वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया दरबार डॉट कॉम के संपादक हैं। फिलहाल देहरादून में स्व-निर्वासित और एकाकी जीवन व्यतीत रहे हैं। फोर्टिस अस्पताल और रेलीगर हेल्थ इंश्यूरेंस ने उनके बीमा दावे को अटका रखा है।