यदि आपने सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी हैं, तो कुछ भी नहीं देखा
सत्यजीत रे को परिभाषित करने के लिए महान जापानी फिल्मकार अकीरा कुरासोवा का यह कथन काफी है कि यदि आपने सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी हैं, तो इसका मतलब आप दुनिया में बिना सूरज या चाँद देखे रह रहे हैं। सत्यजीत रे भारत में पहले फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने विश्व सिनेमा की अवधारणा का अनुसरण किया। भारतीय सिनेमा में आधुनिकतावाद लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी फिल्में हमेशा यथार्थ पर केन्द्रित रहीं और उनके चरित्रों को हमेशा आम आदमी के साथ जोड़ा जा सकता है। विश्व सिनेमा में एक ख़ास पहचान रखने वाले सत्यजीत रे की आज जयंती है।
सत्यजीत रे ने अपनी फिल्मों 'पाथेर पांचाली', 'अपूर संसार' तथा 'अपराजिता' में जिस सादगी से ग्रामीण जनजीवन का चित्रण किया है वह अद्भुत है। 'चारूलता' में उन्होंने मात्र सात मिनट के संवाद में चारू के एकाकीपन की गहराई को छू लिया है। उन्होंने अपनी हर फिल्म इसी संवेदनशीलता के साथ गढ़ी। शर्मिला टेगौर के मुताबिक सत्यजीत रे बड़ी आसानी से मुश्किल से मुश्किल काम करवा लेते थे। अर्मत्य सेन के मुताबिक रे विचारों का आनंद लेना और उनसे सीखना जानते थे। यही उनकी विशेषता थी।
चार्ली चैपलिन के बाद रे फिल्मी दुनिया के दूसरे व्यक्ति थे जिसे आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा था। उन्हें भारत रत्न दादा साहेब फालके मानद आस्कर एवं अन्य कई पुरस्कारों से देश-विदेश में सम्मानित किया गया था।
उनकी पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली' थी। इस फिल्म के बारे में कहा जाता है कि एक नौसिखिया टीम को लेकर आर्थिक तंगी में उन्होंने यह फिल्म बनाई। 1955 में पश्चिम बंगाल सरकार की मदद से पर्दे पर आई इस फिल्म ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किए। 'पाथेर पांचाली' सत्यजीत रे की अपू ट्राईलॉजी की पहली फिल्म थी। ये भारतीय सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म को विदेश में तो खूब पसंद किया गया लेकिन देश में इसकी आलोचना हुई। दरअसल रे ने भारत की असल तस्वीर दिखाई थी, जिसे विदेशों में तो खूब सराहा गया लेकिन भारत में नहीं। भारत में फिल्म की आलोचना इसलिए हुई क्योंकि इसमें भारत की गरीबी का महिमामंडन था। खास तौर से पश्चिम बंगाल के हालात को खुल कर पेश किया था। बता दें कि पाथेर पांचाली को भारतीय फिल्म जगत का बेहतरीन क्लासिक कहा जाता है।