मददगार बन कर उभरा डाक विभाग, खोले 23 लाख नए खाते


नई दिल्ली। ई-मेल, व्हाट्सएप और अन्य ऑनलाइन माध्यमों ने संपर्क का मुख्य आधार रहे डाकघरों को अप्रासंगिक बना दिया था।  कोरोना और लॉकडाउन काल में यही खासकर ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए बड़ा मददगार बन कर उभरा है। यही नहीं, लॉकडाउन के दौरान बाकी वित्तीय संस्थाएं जहां अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जूझ रही हैं, वहीं इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक में प्रवासी मजदूरों ने 23 लाख नए खाते खोले हैं।  विभागीय कर्मचारी उक्त एप के जरिए किसी भी बैंक में जमा रकम उसके ग्राहकों तक घर बैठे पहुंचा रहे हैं। खासकर कोरोना की वजह से रेड जोन या कंटेनमेंट इलाकों में रहने वाले पेशनभोगियों और कमजोर तबके के लोगों के लिए तो डाक विभाग जीवनरक्षक के तौर पर सामने आया है। उन इलाकों के लोगों को घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं हैं। विभाग के कर्मचारी अंगुलियों के निशान के जरिए ग्राहक की शिनाख्त कर उनको घर बैठे नकदी पहुंचा रहे हैं।



डाकियों ने इस दौरान देश भर में एक हजार करोड़ से ज्यादा नकद की होम डिलीवरी की है। यह रकम लॉकडाउन के दौरान डाकघर बचत खातों में हुए 66 हजार करोड़ के लेन-देन के अतिरिक्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते महीने रेडियो पर अपने मन की बात कार्यक्रम में लॉकडाउन के दौरान नकदी, आवश्यक वस्तुओं और चिकित्सा उपकरणों की सप्लाई बहाल रखने में डाक विभाग की भूमिका की सहाहना की।


कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बैंक तो खुले रहे, लेकिन कूरियर सेवाओं और परिवहन के तमाम साधनों के बंद होने की वजह से खासकर दूर-दराज के इलाके के लोगों के लिए पैसे निकालने के लिए बैंकों तक पहुंचना या अपने प्रियजनों तक पैसे या जरूरी सामान भेजना असंभव हो गया था। ऐसे में केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इंडिया पोस्ट से संकट के इस दौर में कुछ नई तरकीब निकालने की अपील की थी। इसके बाद ही विभाग ने अपने वाहनों के जरिए एक सड़क नेटवर्क विकसित करने का फैसला किया। इसके तहत एक नेशनल रोड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क विकसित किया गया और पांच सौ किलोमीटर के दायरे में 22 लंबे रूट तय किए गए जो देश के 75 शहरों तक पहुंचते हैं।


अब इसके जरिए जरूरी सामानों और नकदी के अलावा चिकित्सा उपकरणों की भी होम डिलीवरी की जा रही है। खासकर नकदी की होम डिलीवरी ने कई पेंशनभोगी लोगों को भारी राहत पहुंचाई है। 82 वर्षीय पेंशनभोगी सुब्रत बागची कहते हैं, "लॉकडाउन के एलान के बाद मेरी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि मैं अपने पेंशन की रकम नहीं निकाल सकूंगा। लेकिन पोस्टमास्टर को एक फोन करते ही अगले दिन घर पर पेंशन की रकम मिल गई.।पेंशन ही मेरी रोजी-रोटी का जरिया है।” वह कहते हैं कि संकट के इस दौर में डाक घर बेहद अहम भूमिका निभा रहे हैं।


इंडिया पोस्ट की सबसे बड़ी कामयाबी एक ऐसी वैकल्पिक बैंकिंग प्रणाली के तौर पर इसका उभरना है जो घर-घर नकदी पहुंचा रहा है। मोटे अनुमान के मुताबिक यह अब तक 11 हजार करोड़ से ज्यादा नकदी पहुंचा चुका है। इस विभाग के इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक में फिलहाल 30 करोड़ खाते हैं। एक अधिकारी बताते हैं, "अब भी ज्यादातर पेंशनभोगियों को डाकघरों के जरिए ही पेंशन मिलती है। उनकी जीवनभर की जमापूंजी भी डाकघरों में ही जमा है। इनमें से कई लोग तो इतने उम्रदराज हैं कि उनके लिए पैदल डाकघरों तक पहुंचना मुमकिन ही नहीं था। घर बैठे पेंशन की रकम मिलना ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है।”


दरअसल, पैसों की यह होम डिलीवरी आधार-इनेबल्ड पेमेंट सर्विसेज यानी एईपीएस की वजह से संभव हुई। वाई-फाई की सुविधा वाले खास उपकरण के जरिए एईपीएस के इस्तेमाल से अब किसी भी बैंक खाते से ग्राहकों को उनके पैसे घर बैठे मिल सकते हैं। इस ऐप को बीते साल सितंबर में लांच किया गया था। इससे खासकर दुर्गम और ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को काफी सहूलियत हो गई है। ऐसे इलाकों में बैंकों की शाखाएं 10 से 40 किमी तक दूर हैं। लॉकडाउन के चलते आम लोगों के लिए उन तक पहुंचना असंभव था।


 


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