बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां,ये रैना और.....!

 

जयपुर। बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां,ये रैना और.....! इन दिनों इस गीत की तरह मानो सबकुछ प्रकृति के वरदान जैसा निर्मल और स्वच्छ हो गया है। सब कुछ एकदम पवित्र पवित्र सा महसूस होने लगा है। हर तरफ शांति, हरियाली,पक्षियों का कलरव, प्रदूषण रहित वातावरण, स्वच्छ-निर्मल कल-कल बहती नदियां, नदियों की सतह में दिखती मछलियां और कंकड़ पत्थरों के छोटे- छोटे गोल मटोल अंश। लेकिन अफसोस लोग इस नजारे का पूरी तरह आनंद नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि शायद इसके लिए जिम्मेदार भी यही लोग हैं। आज के संदर्भ में बात करें तो कोरोना जो कि एक वैश्विक महामारी बन कर आई है, इसके कारण आज धरती पर मानव जैसे घर में कैद होकर रह गया है। शहरों और गांवों में सड़कों से, बाजारों से लोगों की भीड़ खत्म सी हो गई है। सड़कों पर वाहनों की आवाजाही बंद हो गई है, फैक्ट्रियों से निकलता धुआं और जहरीला प्रदूषित पानी निकलना बंद हो गया है, और सब कुछ फिर से ईश्वर और प्रकृति के वरदान की तरह लगने लगा है। शायद इसी को कुदरत का करिश्मा कहते हैं, नहीं तो हमने पृथ्वी का सारा नक्शा ही बदल डाला था।


ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ गया था खतरा:- 

 अपनी सुख-सुविधाओं के लिए ग्लोबल वार्मिंग जैसी स्थिति पैदा कर दी, जिससे पूरी पृथ्वी पर इसका प्रभाव नजर आने लगा था। अशुद्ध और गंदी नदियां, हवा में प्रदूषण का स्तर सभी स्तरों को पार कर गया था। बढ़ती जनसंख्या, पहाड़ों-पेड़ों की कटाई, धरती पर कंक्रीट का बढ़ता जंगल जैसे कई सारे कारण हैं ग्लोबल वार्मिंग के। इसके कारण पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी  से ग्लेशियर का पिघलना, जगह-जगह भूकंप आना, जमीन का धसना, बाढ़ और महामारियों का फैलना भी इसी का एक परिणाम कहा जा सकता है।

अब सुधरने लगे धरती के हालात:- 

पिछले कुछ महीनों की बात करें तो पर्यावरण विदों के अनुसार अधिकतर राज्यों के तापमान में इस मौसम में करीब 8डिग्री से अधिक तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। मार्च-अप्रैल में एकाएक बढ़ने वाले तापमान में भी अचानक गिरावट महसूस की जा रही है। पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह के अनुसार लोकडाउन के कारण पृथ्वी को गर्म करने वाला ग्रीन हाउस गैसों का कवच भी अब टूट सा गया है, इन दिनों सुबह- शाम ठंडी हवाएं, बीच-बीच में बारिश होना इसी के कारण संभव हुआ है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष इन राज्यों में अप्रैल और मई के तापमान में लगभग 6 से 10 डिग्री तक की गिरावट आई है।  विशेषज्ञों की मानें तो लोक डाउन के चलते वायुमंडल में ओजोन परत का छेद भी अब आश्चर्यजनक रूप से भरने लगा है, तो वातावरण में घटी कार्बन डाइऑक्साइड ग्लेशियर के लिए भी फायदेमंद साबित हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में  जानवरों से जनित वायरस ने इंसानों पर हमला किया है। कई शोध बताते हैं कि इंटेंसिव मीट, प्रोडक्शन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई वायरस दुनिया में आए। लेकिन अभी तक कॉविड 19 के  बारे में ऐसी कोई रिसर्च सामने नहीं आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार मौसम में बदलाव के चलते बैक्टीरिया और वायरस को ना सिर्फ फलने फूलने की जगह मिल रही है बल्कि पर्यावरण परिवर्तन से हमारी प्रतिरोधक क्षमता पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2030 तक हर साल पर्यावरण परिवर्तन के कारण करीब ढाई लाख लोगों की मौत होगी, और ये आंकड़ा एक करोड़ तक भी पहुंच सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यदि समय रहते पर्यावरण परिवर्तन सुधार लिया गया तो कुछ हद तक बचत संभव है।

 

 लॉकडाउन से ये फायदे जरूर हुए हैं, जिन्हें इस समय बताना बहुत जरूरी है, क्योंकि इसी से सबक लेकर शायद इंसान सुधर जाए और बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को फिर से सुधारने में सब मिलकर प्रकृति की कुछ मदद कर सकें :- 

- लॉकडाउन के चलते घटते प्रदूषण के कारण - ओजोन परत का छेद धीरे-धीरे बंद हो रहा है।

- पर्यावरण में पार्टीकुलेटेड मेटर यानी पीएम में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिससे प्रदूषण स्तर काफी सुधार गया है।

- प्रदूषण कम होने से ग्लेशियर के पिघलने की गति भी अब कम होने लगी है और धीरे-धीरे इसकी गति और ज्यादा कम होगी।

- नर्मदा नदी का पानी 40 साल पहले की तरह एकदम मिनरल वाटर जैसा शुद्ध हो गया है जिसका टीडीएस 85 से 95 आया है।

         

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