जोहरा सैगल का दावा था - मैं अपने आप में सौ साल का इतिहास हूँ!
आज उनकी जयंती है। जोहरा बेगम मुमताजेउल्लाह खान यानी जोहरा सैगल 27 अप्रैल, 1912 को सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में पैदा हुई थीं। मां ने बिलकुल सही नाम दिया था - जोहरा। जोहरा का मतलब होता है एक हुनरमंद लड़की। इस हुनरमंद लड़की ने रंगमंच और सिनेमा की दुनिया में खूब धूम मचाई और पूरे 102 साल की भरपूर जिंदगी को जीने के बाद 2014 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। जोहरा सैगल की बेटी हैं ओडिसी डांसर पद्मश्री किरण सैगल। जब जोहरा 100 साल की हुई थीं, तब किरण ने उनकी बायोग्राफी लिखी थी, ‘जोहरा सैगल -फैटी’ शीर्षक से। अंग्रेजी में लिखी इस बायोग्राफी का हिंदी अनुवाद पिछले दिनों जारी हुआ। यह बेटी की नजर से मां पर लिखी एक पर्सनल किताब है, जिसमें जोहरा के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे पहलुओं का पता चलता है, जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं। क़िताब में किरण लिखती हैंः-
मुंबई का 41-पाली हिल वह बंगला था जहां हम सभी रुके हुए थे। हम से मेरा मतलब है चेतन आनंद, देव आनंद, विजय आनंद और उनकी बहन सावित्री कोहली, जिन्हें हम बच्चे ‘माती‘ कहा करते थे। मुंबई फिल्मों, थिएटर और डांस से जुड़े कलाकारों वाली एक मशहूर जगह बनती जा रही थी। चेतन आनंद एक डायरेक्टर के तौर पर अपने कदम जमाने की कोशिश में थे, और यही बात विजय आनंद के मामले में थी। जबकि देव आनंद एक उभरते हुए युवा एक्टर थे। वे कुछ फिल्मों मंे काम भी कर चुके थे। गुरुदत्त मेरे माता-पिता के दोस्त थे और अक्सर घर आते रहते थे। वे उस समय ‘बाजी‘ फिल्म बना रहे थे जिसमें देव आनंद और गीता बाली काम कर रहे थे। अम्मी से ‘बाजी‘ का डांस डायरेक्शन करने को कहा गया। मुझे याद है कि उन्हें गीता बाली और ग्रुप के गीत और डांस सीक्वेंस की एक लोकेशन पर ले जाया गया था। यह गीत था- ‘देख के अकेली मोहे बरखा सताए रे‘। सभी नर्तकियों ने पोल्का डाॅट वाले छाते ले रखे थे, जिसका इस्तेमाल उन्होंने एक खास डांस मूवमेंट के लिए किया था। उन दिनों शूटिंग का काम बहुत ही परेशान करने वाला और खासा मुश्किल हुआ करता था।
इसी दौरान नवकेतन ने ‘नौ दो ग्यारह‘ नाम की एक फिल्म बनाई, जिसका निर्देशन विजय आनंद ने किया। इसमें भी अम्मी से डांस डायरेक्शन के लिए कहा गया। यह वहीदा रहमान की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें उन्होंने खलनायिका की भूमिका निभाई। मैं फिल्म के सैट पर थी और मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें बड़े अजीब गुलाबी रंग की ड्रेस क्यूं पहनाई गई थी, वैसे ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में ये काफी बढ़िया लगी। अम्मी ने एक और फिल्म में भी डांस डायरेक्शन किया था, जिसका नाम था ‘बदनाम‘। इसमें बलराज साहनी और श्यामा ने काम किया था और इसका डायरेक्शन डी डी केशव ने किया था। इसके अलावा हेलन की फिल्म ‘फरार‘ में भी अम्मी ने डांस डायरेक्शन का काम किया था, जिसमें किशोर कुमार थे। अम्मी ने इस फिल्म में अभिनय भी किया था।
मेरे पिता पाली हिल में पेंटिंग बनाया करते थे, जिनका इस्तेमाल चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर‘ में किया गया था। इस फिल्म में उन्होंने आर्ट डायरेक्शन भी किया। हालांकि अपने दौर में इस फिल्म को फ्लाॅप माना गया था। अब भारतीय सिनेमा में इस फिल्म को क्लासिक का दर्जा दिया जाता है। मेरे माता-पिता दोनों ने ही इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थीं, लेकिन मेरी मां की भूमिका महत्वपूर्ण थी और इसे उन्होंने बहुत अच्छे ढंग से किया भी था। मेरे पिता फिल्म में भीड़ में यहां-वहां सिगार पीते हुए नजर आए थे।
1945 में अम्मी पृथ्वी थिएटर से जुड़ीं और करीबन 15 साल तक जुड़ी रहीं। पृथ्वीराज कपूर का वो बहुत आदर किया करती थीं और थिएटर में उन्हें अपना गुरु मानती थीं। अम्मी का पूरा जीवन फिल्मों में बीता, पर वे फिल्में लगभग ना के बराबर देखती थीं, हां, क्रिकेट मैच वो बड़े चाव से देखा करती थीं। आँखें कमजोर होने के कारण मैं क्रिकेट के मैच के दौरान मैच का स्कोर लगातार उन्हें बताया करती थी, हालांकि उनका कोई पसंदीदा खिलाड़ी नहीं था। बचपन में मां को पोएट्री से नफरत थी, लेकिन बाद में उन्हें कविताओं और शायरी से इश्क हुआ और कई बार सभाओं में वे शायरी सुनाया करती थीं। 1989 में जब सफदर हाशमी का बेरहमी से कत्ल किया गया, तो उनकी याद में दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी की एक सभा हुई। उनके परिवार ने अम्मी से पोएट्री सुनाने को कहा। सफदर हाशमी की फैमिली ने उन्हें फैज अहमद फैज की एक गजल पढ़ने को दी। उन्हें इसे याद करने में तीन दिन लगे और सुनाने में पांच मिनट। इन तीन दिनों के दौरान वे समझ गई थीं कि इस शायर ने आम जिंदगी से ताल्लुक रखने वाले लोगों की तकलीफों के लिए खुद को कैसे समर्पित कर दिया था।
बाद में हम लोग पाली हिल से बैंड्रा के कार्टर रोड वाले घर में आ गए। फिर मेरे माता-पिता ने इसे पृथ्वी थिएटर के एक एक्टर मनसा राम को किराये पर दे दिया था। इसका सर्वेन्ट क्वार्टर्स समुद्र के एकदम नजदीक था। सड़क पार करके समुद्र में उतरा जा सकता था। इस घर का इस्तेमाल ‘दिल चाहता है‘ फिल्म की शूटिंग के लिए किया गया था।
क़िताब - ‘जोहरा सैगल -फैटी’/ मूल - किरण सैगल / अनुवाद - बालकिशन बाली /प्रकाशक - नियोगी बुक्स, ब्लॉक डी , बिल्डिंग नंबर 77 , ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, नई दिल्ली - 110020