‘बिरजू महाराज- मेरे गुरु, मेरी नजर में’ - महान कलाकार के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति

कथक सिरमौर पंडित बिरजू महाराज की सबसे प्रमुख और प्रेमिल शिष्या शाश्वती सेन का कहना है कि वे अपने गुरु के प्रभामंडल को अपनी आंखें बंद करके भी देख सकती हैं। शाश्वती सेन करीब 50 वर्षों से पंडित बिरजू महाराज के सानिध्य में रही हैं और जाहिर है कि इस दौरान उन्होंने अपने गुरु के जीवन के विविध आयामों को बेहद करीब से देखा है। शाश्वती सेन ने अपने गुरु को जैसा देखा, समझा और जाना है, उसे उन्होंने शब्दों में पिरोकर एक किताब की शक्ल में उतारा है- ‘बिरजू महाराज- मेरे गुरु, मेरी नजर में’। दुर्लभ छायाचित्रों से सजी यह पुस्तक एक ऐसे महान कलाकार के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, जिसे दुनिया भारतीय नृत्य का प्रतीक मानती है और जो दुनियाभर में अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। पंडित बिरजू महाराज एक बेजोड़ कथक नर्तक होने के साथ-साथ एक शानदार गायक और कल्पनाशील चित्रकार भी हैं। कथक के आगे भी उनकी एक दुनिया है। उनकी इस कलात्मक दुनिया में सिनेमा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस किताब का एक अध्याय पंडित बिरजू महाराज के सिनेमाई योगदान के बारे में है। इसी अध्याय के कुछ अंशः


सन् 1976-77 में महान फिल्मकार सत्यजित राय ने हिंदी में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बनाने की योजना बनाई। माणिक दा (सत्यजित राय) ने मेरी एक प्रस्तुति दिल्ली के विज्ञान भवन में देखी थी और इसी दौरान उन्होंने महाराज जी (पंडित बिरजू महाराज) से आग्रह किया कि वे उनकी फिल्म के लिए दो नृत्यों का संयोजन कर दें। महाराज जी इसके लिए खुशी-खुशी राजी हो गए और बिंदादीन महाराज की कई रचनाओं पर बहुत सोच-विचार के बाद दरबार में नृत्य के दृश्यों के लिए उनकी एक ठुमरी का चयन किया गया। अगला चरण इस ठुमरी की नृत्य प्रस्तुति के लिए उपयुक्त नर्तक का चयन था। अंततः इस भूमिका के लिए मेरा चयन हुआ। माणिक दा ने महाराज जी से कहा कि वह उस दौर में दरबार में नृत्य की जिस शैली का चलन था, वही दिखाने का प्रयास करें। ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में काम करने का अनुभव यादगार रहा। इस फिल्म में बिंदादीन महाराज की भैरवी में निबद्ध रचना ‘कान्हा मैं तोसे हारी‘ को महाराज जी ने पूरे मनोयोग से गाया था।



एक लंबे अंतराल के बाद जब हमारा दल अमेरिका दौरे पर गया था, तब महाराज जी  की मुलाकात माधुरी दीक्षित से हुई और उसके बाद ही वे वर्ष 2000 में फिल्म जगत में वापस आए। उन्होंने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ में माधुरी दीक्षित के लिए एक छोटे से नृत्य क्रम की रचना की। इस प्रस्तुति में माधुरी ने शानदार प्रदर्शन किया। उनकी तेज गति, बिलकुल सही पादस्थिति, अंग संचालन और मोहक मुस्कान देखकर किसी भी नर्तक को ईर्ष्या हो सकती है।


संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म ‘देवदास’ में उनका नृत्य संयोजन अत्यंत श्रेष्ठ था, जिसमें शास्त्रीय कथक शैली के साथ कोई समझौता नहीं किया गया था। माधुरी की जादुई भावाभिव्यक्ति और निपुण अंग संचालन के साथ महाराज जी के प्रशिक्षित छात्रों को लेकर किया गया भव्य नृत्य संयोजन आंखों में बस जाने वाला था। मुझे इसमें महाराज जी के सहायक के तौर पर काम करने का अवसर मिला। इसी दौरान मैंने संजय लीला भंसाली की कार्यशैली में वह रचनात्मकता और गंभीरता देखी, जिसने मुझे माणिक दा की याद दिला दी कि वह कितनी सावधानी से अपनी फिल्म की एक-एक बात की योजना बनाते थे।


इसके बाद बड़ी परियोजना के रूप में कमल हासन की तमिल तथा हिंदी में बनी फिल्म ‘विश्वरूपम’ का काम था। कमल जी भी बहुत रचनात्मक और गंभीर अभिनेता हैं। उन्होंने शुरू में कुछ समय तक महाराज जी से कथक का पदसंचालन सीखा और पूरे मनोयोग से नृत्य-संरचनाओं में काम किया। यह संयोजन वास्तव में बहुत रोचक बना था।


(पुस्तक- ‘बिरजू महाराज- मेरे गुरु, मेरी नजर  में’/ लेखिका- शाश्वती सेन/ अनुवाद- श्रीकांत अस्थाना/ प्रकाशक- नियोगी बुक्स, ब्लॉक-डी, बिल्डिंग नंबर 77, ओखला औद्योगिक क्षेत्र फेज - 1, नई दिल्ली - 110020 )


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