लॉकडाउन का फ़ैसला लाखों लोगों के लिए अलग तरह की आपदा बना
जयपुर। मंगलवार की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को सम्बोधित करते हुए आधी रात से सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन लागू करने का एलान किया था यानी लोगों के पास सिर्फ 4 घंटे का वक़्त था। ज़ाहिर है कि यह वक़्त इतना कम था कि ज्यादातर लोग कोई बड़ा फैसला नहीं कर पाए और चुटकियों में लिया गया लॉकडाउन का यही निर्णय लाखों लोगों के लिए अब एक अलग तरह की आपदा बन गया है।
देशभर में लॉकडाउन का फैसला लागू होने से सार्वजनिक यातायात के साधन बंद हो गए और जो जहाँ था वहीँ ठहर गया। लेकिन इस फैसले के 36 घंटे बाद यानी गुरुवार सवेरे हालात यह हैं कि बड़ी संख्या में लोग अपने बीवी-बच्चों के साथ सड़कों पर पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते नजर आ रहे हैं। राजधानी जयपुर में आज सवेरे अनेक स्थानों पर लोग अपने परिजनों के साथ पैदल ही रास्ता नापते दिखाई दे रहे थे। इनमे से ज्यादातर लोग या तो दिहाड़ी मजदूर हैं या किसी फैक्ट्री अथवा मिल में काम करने वाले कामगार । मंगलवार की रात सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद इन्हे इतना भी समय नहीं मिल पाया कि वे अपने लिए कोई स्थायी आशियाना तलाश कर सकें। ऐसे लोगों की मदद के लिए न तो सरकारी एजेंसियां आगे आ रही हैं और न कोई एन जी ओ उनकी सहायता कर रहा है। एक बड़ी आबादी इस मामले में अब सिर्फ भगवान भरोसे ही नजर आ रही है।
इनमे से ज्यादातर लोग अब शहरों को छोड़कर अपने गाँव वापस लौट रहे हैं। इस बात का कोई महत्व नहीं है कि इनका गाँव कितना दूर है , 100 -200 किलोमीटर या इससे भी अधिक दूर, बस, पैदल ही रास्ता तय करना है। इनका कहना है कि शहरों में काम-धंधा अब बंद है और पेट भरने के लाले पड़ रहे हैं। गांव जाएंगे तो वहां कम से कम रोटी-नमक तो मिल जाएगा।
राजधानी जयपुर में सांगानेर, विश्वकर्मा और अजमेर रोड पर रहने वाले मजदूर और कामगार अब अपने गांवों-कस्बों की तरफ पैदल ही चल पड़े हैं। लेकिन सिर्फ इतनी दूर पैदल जाना ही इनकी मुश्किल नहीं है। रास्ते में पुलिस का डर है। ढाबे खुले नहीं हैं तो खाने की समस्या भी है। अगर कुछ मिल रहा है तो बहुत महंगा मिल रहा है। ऊपर से कोरोना का खौफ इतना है कि किसी गांव में या रहने लायक जगह पर रुक भी नहीं सकते हैं। रुकने देना तो दूर लोग मांगने पर पानी भी नहीं देना चाहते हैं। ऐसी ही तमाम समस्याओं से वे लोग भी जूझ रहे हैं जो दूसरे शहरों में फंसे हुए हैं और मदद की बाट जोह रहे हैं।
इनमें से कई लोगों का कहना है कि सरकार को कुछ इंतजाम करना चाहिए। उनके मुताबिक सार्वजनिक यातायात के साधन बंद हैं तो ऐसे में सरकार को उनके लिए कोई व्यवस्था करनी चाहिए या फिर इतना बड़ा फैसला लेने से कुछ दिन पहले बता देना चाहिए था।