बजट में प्रिंट मीडिया को राहत, अख़बारी कागज़ पर लागू कस्टम ड्यूटी घटाई

नई दिल्ली। लोकसभा में आज पेश किए  गए आम बजट ने प्रिंट मीडिया को राहत दी है।  केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने  न्यूज प्रिंट के आयात  पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी को दस प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया है।  


अपने बजट भाषण में  वित्त मंत्री  ने कहा, ‘पिछले बजट के दौरान न्यूज प्रिंट और लाइटवेट कोटेड पेपर  के आयात पर दस प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी लगाई गई थी। हालांकि, तब से लेकर कई बार मेरी जानकारी में यह बात आई कि प्रिंट मीडिया पहले ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस पर दस प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी से और परेशानी हो रही है। ऐसे में न्यूज प्रिंट और लाइट वेट कोटेड कागज के आयात पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी को दस प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत किया गया है।’



हालांकि इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अखबारी कागज पर लगाये गये आयात शुल्क को वापस लेने की मांग को लगातार खारिज करती रही हैं।  हाल ही उन्होंने कहा था कि आयातित अखबारी कागज पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क से घरेलू कागज उद्योग को कारोबार के समान अवसर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि सस्ता आयात होने की वजह से घरेलू कागज विनिर्माता कंपनियों को उनके उत्पादन के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। सीतारमण ने कहा, ‘‘घरेलू कागज विनिर्माताओं को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिये मूल सीमा शुल्क बढ़ाया गया है। देश में अखबारी कागज उत्पादन की क्षमता है। लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे क्योंकि अखबारी कागज का बड़े पैमाने पर आयात होता है।’’ उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में विदेशी बाजारों में अखबारी कागज की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आयी है। इसका दाम 700 डालर प्रति टन से कम होकर 500 डालर प्रति टन पर आ गया। विश्व बाजार में दाम काफी नीचे आने से भारतीय विनिर्माता खरीदार नहीं मिलने से प्रभावित हो रहे थे। वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘इसीलिए अगर हम ‘मेक इन इंडिया’ की बात कर रहे हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से आयात की अनुमति दे रहे हैं, इसका कोई मतलब नहीं बनता है।


इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने इससे पहले सरकार से अखबारों और पत्रिकाओं में उपयोग होने वाले कागज पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क के बजट प्रस्ताव को वापस लेने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि समाचार पत्र और पत्रिका के प्रकाशक पहले से ही कई तरह के वित्तीय दबाव को झेल रहे हैं। विज्ञापन आय कम हुई है, लागत बढ़ी है ऊपर से तेजी से फैलते डिजिटल उद्योग से भी पत्र उद्योग पर दबाव बढ़ा है।


Popular posts from this blog

देवदास: लेखक रचित कल्पित पात्र या स्वयं लेखक

नई चुनौतियों के कारण बदल रहा है भारतीय सिनेमा

‘कम्युनिकेशन टुडे’ की स्वर्ण जयंती वेबिनार में इस बार ‘खबर लहरिया’ पर चर्चा