एसिड अटैक को झेलने वाली लड़कियों की रूह में झांकने की ईमानदार कोशिश है ‘छपाक'


कच्ची उम्र की लड़कियों के चेहरे पर तेजाब फेंकने की अनेक घटनाएं देशभर में हुई हैं और तमाम कोशिशों के बावजूद इस तरह की वारदातों पर अंकुश लगाने में  हम नाकाम रहे हैं। ऐसी वारदातों में शामिल अपराधी मानसिकता के लोगों से नफरत करने और उन्हें  सजा दिलाने की बजाय हम उन लड़कियों को ही हिकारत भरी नजरों से देखते हैं, जिनकी आत्मा तेजाब के हमले से छलनी हुई है। लेकिन पहली बार एक महिला फिल्मकार ने एसिड अटैक को झेलने वाली लड़कियों की रूह में झांकने की ईमानदार कोशिश की है और ‘छपाक‘ के रूप में एक ऐसी फिल्म दर्शकों के सामने रखी है, जो एसिड अटैक से जुड़े सवालों की गहराई तक पड़ताल करती है और यह साबित करने का प्रयास करती है कि तमाम कोशिशों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद आज भी कमसिन लड़कियों के चेहरे और जिस्म तेजाबी हमलों में झुलस रहे हैं।



ऐसा बहुत कम होता है कि आप कोई फिल्म देखकर सिनेमाघर से निकलें और इसके बाद भी लंबे समय तक वो फिल्म आपकी आत्मा को, आपकी रूह को डिस्टर्ब करती रहे और आप लगातार उस फिल्म के बारे में ही सोचते रहें। निर्देशक मेघना गुलजार की फिल्म ‘छपाक' इसी तरह आपको परेशान करती है। 
फिल्म की कहानी यूं तो एसिड अटैक सर्वाइवर मालती की कहानी है, जिसका किरदार दीपिका पादुकोण ने निभाया है। लेकिन कहानी कहने का अंदाज इतना पुरअसर है कि मालती के चेहरे पर फेंके गए तेजाब के छींटों की जलन दर्शक अपने जिस्म पर भी महसूस करते हैं। अगर आप थोड़े-बहुत भी जज्बाती हैं, तो एसिड की तीखी जलन से छटपटाती मालती को देखकर आप भी विचलित हुए बिना नहीं रहेंगे। मालती की चीखें आपको अंदर तक हिला देती हैं। खास तौर पर तब, जब तेजाबी हमले में अपनी जिस्मानी खूबसूरती को गंवाने वाली मालती पहली बाद आईने में अपना विद्रूप चेहरा देखती है। फिल्म का यह संवाद भी बहुत कुछ कह देता है- ‘‘एसिड अटैक उन लड़कियों पर किया जाता है, जो पढ़ना चाहती थीं, बढ़ना चाहती थीं। ऐसी लड़कियां बरदाश्त नहीं हुईं और उन्हें औकात दिखाने के लिए एसिड हमले किए गए।''
फिल्म ‘छपाक‘ हमारे कानून की खामियों को भी उजागर करती है। फिल्म हमें बताती है कि किसी पर गर्मागर्म चाय फेंको या उसके चेहरे पर तेजाब फेंको, दोनों कानून की नजर में समान अपराध हैं। एसिड हमलों की लगातार बढ़ती वारदातों के बाद एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि वह तेजाब की खुलेआम बिक्री पर अंकुश लगाए, लेकिन आज भी गली-मुहल्ले के नुक्कड़ पर किसी मामूली-सी दुकान से आप तेजाब की बोतल आसानी से खरीद सकते हैं। अपने चेहरे और अपनी रूह पर तेजाबी हमला झेलने वाली लड़कियों की जिंदगी में पेश आने वाली तकलीफों और उनके दर्द को भी यह फिल्म बेरहमी से दर्शकों के सामने रखती है और साथ ही यह भी दर्शाती है कि हमारे मुल्क में इंसाफ हासिल करने की डगर कितनी कंटीली और किस हद तक मुश्किल है।
‘छपाक' पूरी तरह से दीपिका पादुकोण और मेघना गुलजार की फिल्म है। मेघना के साहस को सलाम, जिन्होंने एक बेहद मुश्किल सब्जेक्ट को बहुत अच्छे तरीके से सिनेमाई परदे पर उतारा। और दीपिका ने भी अपनी ग्लैमरस इमेज से बाहर निकलते हुए एक विद्रूप और कुरूप चेहरे वाली लड़की मालती के किरदार को पूरी ईमानदारी से जीवंत किया। दीपिका इस फिल्म की प्रोड्यूसर भी हैं, जो जाहिर करता है कि बाॅक्स ऑफिस की कामयाबी ही उनके लिए सब कुछ नहीं है, उनका कलाकार मन भी ‘छपाक' जैसी फिल्मों की छांव में ही पनाह तलाशता है।  
दीपिका के साथ दो और कलाकार इस फिल्म से चैंकाते हैं, वे हैं- विक्रांत मैसी और मधुरजीत सर्घी। विक्रांत टेलीविजन की दुनिया से आते हैं। विक्रांत ने ‘छपाक' में एक एनजीओ चलाने वाले नौजवान के किरदार को बखूबी निभाया है, जो मालती की हर कदम पर मदद करता है। हालांकि यह किरदार हमेशा सिस्टम से नाराज क्यों रहता है, इसका कोई खुलासा यह फिल्म नहीं करती।
दूसरी तरफ, ‘फिराक' और ‘अग्निपथ' जैसी फिल्मों से पहचान बनाने वाली मधुरजीत मालती के वकील की भूमिका में हैं और अपने अभिनय से वे दर्शकों के बीच यह स्थापित करने में कामयाब रही हैं कि मालती के दर्द को उन्होंने अपना दर्द बना लिया है। किसी वकील का ऐसा जज्बाती चेहरा आम तौर पर हिंदी फिल्मों में  नजर नहीं आता। 
ऐसा लगता है कि हिंदी सिनेमा अब अपनी सरहदें तोड़ रहा है। शायद इसीलिए अब एसिड अटैक जैसे कठोर विषयों पर भी एक मुकम्मल फिल्म सामने आती है।



विक्रांत मैसी और दीपिका पादुकोण के साथ मेघना गुलज़ार। 


 


 


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