आज भी प्रासंगिक है एम एस सथ्यू की 'गर्म हवा'

जयपुर। नागरिकता संशोधन बिल को लेकर देशभर में कई राज्यों में इसका विरोध हो रहा है, खास तौर पर पूर्वी राज्यों में इसका विरोध कुछ अधिक ही है, जानकारों की मानें तो देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लाने के लिए राजनीतिक दल रास्ता निकालने में जुटे हैं इसी प्लानिंग के तहत केंद्र सरकार ने पहले नागरिकता संशोधन बिल को संसद में पास करवाया ताकि आगे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लाने में ज्यादा मशक्कत का सामना नहीं करना पड़े। 
नागरिकता संशोधन बिल को लेकर आज जो विरोध हो रहा है और इससे जुड़े मुद्दे कितने  प्रासंगिक हैं  इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज से करीब 45 साल पहले  फिल्मकार एम एस सथ्यू ने इस  विषय को गहराई से समझा और भारत के विभाजन होने के बाद जब भारत से अलग होकर मुस्लिम देश पाकिस्तान का निर्माण हुआ तो वहां गए हिंदू और भारत में रह रहे मुसलमानों को लेकर फिल्म "गर्म हवा" का निर्माण किया।  ये सथ्यू की दूरदर्शिता ही तो थी कि उन्होंने लोगों को पीड़ा का समझा ओर आने वाले समय में इसके दुष्परिणामों से हमें आगाह किया था।  फिल्मकार सथ्यू ने 1974 में  "गर्म हवा" बनाकर देश में ये मैसेज देने का प्रयास किया था कि मुल्क के बंटवारे से न यहां रहने वाले मुसलमान खुश रह पाएंगे और न पाक में रुक गए हिंदुओं को संतुष्टि मिलेगी। 



सथ्यू ने अपनी फिल्म में दर्शाया है कि पाकिस्तान में रुक गए हिंदुओं के साथ कैसे कैसे अत्याचार हो रहे हैं या उन्हें किन-किन प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ रहा है और जो मुसलमान भारत में रह गए उन्हें लोगों के कैसे-कैसे ताने सहने पड़ रहे हैं, यानि सरल शब्दों में कहें तो भारत के विभाजन और पाकिस्तान के बनने की कहानी, उसके पीछे की राजनीति और उसके बाद दोनों मुल्कों में यातनाएं झेल रहे लोगों के दर्द को अपनी फिल्म के माध्यम से प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया था। 
 अब आज के संदर्भ में बात करें तो नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशभर में लोगों में गुस्सा है, खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों में इस बिल को जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन चुका है पर आपत्ति है, इन राज्यों में यहां रहने वाले लोगों को लगता है कि अब नागरिकता संशोधन बिल के जरिए अन्य देशों के लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी तो इनका वर्चस्व ज्यादा हो जाएगा और अब बाहर से आने वाले लोगों के कारण उनकी परम्परा और संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी। 


सथ्यू द्वारा निर्मित फिल्म फिल्मकार एम एस सथ्यू भारत और पाकिस्तान के लोगों के नागरिकता के मुद्दे को भी छूती है।  अब ताजा माहौल में एम एस सथ्यू  का मानना है कि दोनों देशों का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ, दो देश तो बन गए लेकिन यहां और वहां छूट गए अपनों को फिर से मिलाने के लिए कुछ तो कानून होना चाहिए था। भारत में इस विधेयक को मंजूरी से पहले 11 साल लगते थे भारत की नागरिकता पाने में, अब सरकार ने इसे और सरल बनाकर पड़ोसी देशों में रह रहे गैर मुस्लिमों के लिए भारत में आना और सरल कर दिया है।


विशेषज्ञों की राय में इस नागरिकता संशोधन बिल के कानून बनने के बाद भारत हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ता जा रहा है।  अब भारत में धर्मनिरपेक्षता की लौ हल्की पड़ती जा रही है, तो भारत में इस तरह नागरिकता बांटना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इसके लिए हर देश के कुछ कानून होते हैं, अब धीरे- धीरे भारत शरणार्थियों का देश हो जाएगा और भारत की वास्तविक परंपरा और संस्कृति समाप्त हो जाएगी। वहीं दूसरी ओर सरकार का मानना है कि इससे भारत में रह रहे मुसलमानों को कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि जो अन्य देशों के सिख,ईसाई, पारसी, बौद्ध और हिंदू शरणार्थी हैं उनकी भारत में आने का राह और आसान हो जाएगी। 


फिल्मकार एम एस सथ्यू अब 90 साल के हो चुके  हैं, लेकिन उनके खयालात और उनके तेवर आज भी बरकरार हैं। हाल ही एक अंग्रेजी अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "हालांकि  70 के दशक में इस तरह का राजनीतिक माहौल नहीं था, लेकिन मुस्लिमों की स्थिति तब भी ऐसी ही थी, तब मुझे ऐसा लगा कि मुझे इस विषय पर ईमानदारी से फिल्म बनानी चाहिए, इसलिए मैंने ये फिल्म बनाई।  लेकिन आज के संदर्भ  में भी ये फिल्म प्रासंगिक हो रही है, क्योंकि आज भारत में साम्प्रदायिकता की स्थिति बन रही है और कुछ हद तक स्थिति मुस्लिम विरोधी भी होती जा रही है। ऐसा लगता है कि सरकार ने जो बिल पारित किया है शायद उसकी पृष्ठभूमि काफी पहले ही लिखी जा चुकी थी।"


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