तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा

अपनी बेमिसाल अदाकारी से अलग पहचान बनाने वाली अभिनेत्री साधना हालांकि आज हमारे बीच नहीं हैं, पर इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा कि फिल्मों के सतरंगी संसार में उनका साया हमेशा हमारे साथ होगा।



साठ और सत्तर के दशक में अपनी अदाकारी और खूबसूरती के जरिए अभिनय की दुनिया में अलग पहचान बनाने वाली साधना ने 74 साल की उम्र में 25 दिसंबर, 2015 को जब आखिरी सांस ली, तो वे एक बार फिर उस सच को बेपरदा कर गईं, जिसे बॉलीवुड के सितारों की अंतिम नियति समझा जाता है। दूसरे तमाम कलाकारों की तरह साधना ने भी एकाकी जीवन बिताते हुए करीब-करीब गुमनामी की हालत में ही दम तोड़ा। उनके पति पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो चुके थे और कुदरत ने साधना की किस्मत में मां बनना नहीं लिखा था। यही कारण था कि आखिरी दिनों में टूटती सांसों के साथ उनके पास कोई नहीं था, सिवाय उन लम्हों के जो उनकी जिंदगी के खूबसूरत दिनों की यादों से जुड़े थे।


दरअसल अपने कॅरियर के बुरे दिनों में साधना साधारण बीमारियों का सामना करते-करते विवश सी हो गई थीं और इसी कारण उन्हें अपनी अभिनय यात्रा को विराम देना पड़ा। वे लोगों से दूरी बनाकर रखने लगी थीं और फिल्मी आयोजनों में भी वे शामिल नहीं होती थीं। अपने बीते दौर को याद करते हुए उनकी यही इच्छा थी कि उन्हें प्रशंसक युवावस्था की छवि से उन्हें जानते रहें। वो छवि जिसमें कामयाबी का अक्स बहुत गहरे तक नजर आता था और जहां उनके हर कदम को सफलता की गारंटी समझा जाता था।


साधना को देश का पहला फैशन आइकन माना जाता है। सिने प्रेमियों की नई पीढ़ी को शायद इस बात की जानकारी भी नहीं होगी कि साधना ने राजेश खन्ना के सुपर स्टार बनने के पहले सुपर अदाकारा का दर्जा हासिल कर लिया था। उस दौर में उन्हें अपनी समकालीन अभिनेत्रियों के मुकाबले ज्यादा मानदेय भी मिला। इसकी वजह यह थी कि उनकी ज्यादातर फिल्में सिल्वर जुबली मनाती  थीं। नायक प्रधान फिल्म इंडस्ट्री में साधना का यह रुतबा किसी अजूबे से कम नहीं था। दर्शकों में उनका जबरदस्त क्रेज था और उन्होंने अपने दौर के फैशन को नए आयाम दिए।


साधना की यह कामयाबी इस लिहाज से और महत्त्वपूर्ण बन जाती है कि फिल्मी दुनिया में उनके कॅरियर की शुरुआत बहुत साधारण तरीके से हुई थी। राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' के एक गीत में साधना को कोरस लडक़ी की भूमिका मिली थी और वर्ष 1955 में जब यह फिल्म रिलीज हुई, तो साधना का एक भी क्लोजअप नहीं था, वे सिर्फ भीड़ का हिस्सा बनकर रह गई थीं। इसके बाद वर्ष 1958 में साधना को सिंधी फिल्म 'अबाना' में काम करने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने अभिनेत्री शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म के लिए इन्हें एक रुपए की टोकन राशि का भुगतान किया गया था।


जब साधना स्कूल की छात्रा थीं और नृत्य सीखने के लिए एक डांस स्कूल में जाती थीं, तभी एक दिन एक नृत्य-निर्देशक उस डांस स्कूल में आए। उन्होंने बताया कि राज कपूर को अपनी फिल्म में एक ग्रुप डांस के लिए कुछ लड़कियों की जरूरत है। साधना की डांस टीचर ने कुछ लड़कियों से नृत्य करवाया और जिन लड़कियों को चुना गया, उनमें से साधना भी एक थीं। इससे साधना बहुत खुश थीं, क्योंकि उन्हें फिल्म में काम करने का मौका मिल रहा था। फिल्म थी- 'श्री 420'। डांस सीन की शूटिंग से पहले रिहर्सल हुई। वह गाना था- 'रमैया वस्ता वइया..'। साधना शूटिंग में रोज शामिल होती थीं। नृत्य-निर्देशक जब जैसा कहते साधना वैसा ही करतीं। शूटिंग कई दिनों तक चली। एक दिन साधना ने देखा कि 'श्री 420' के शहर में बड़े-बड़े बैनर लगे हैं। फिल्म रिलीज हो रही है। ऐसे में एक्स्ट्रा कलाकार और कोरस डांसर्स को कोई प्रोड्यूसर प्रीमियर पर नहीं बुलाता, इसलिए साधना ने खुद अपने और अपनी सहेलियों के लिए टिकट खरीदे। सहेलियों के साथ साधना सिनेमा हॉल पहुँचीं। जैसे ही गीत शुरू हुआ, तो साधना ने फुसफुसाते हुए सहेलियों से कहा, इस गीत को गौर से देखना, मैंने इसी में काम किया है। सभी सहेलियाँ आंखें गड़ाकर फिल्म देखने लगीं। लेकिन गाना समाप्त हो गया और वे कहीं भी नजर नहीं आईं। साधना की आंखें डबडबा आईं। उन्हें क्या पता था कि फिल्म के संपादन में राज कपूर उनके क्लोजअप को काट देंगे। लेकिन यह एक संयोग ही कहा जाएगा कि जिस राज कपूर ने साधना को उनकी पहली फिल्म में आंसू दिए थे, उन्होंने आठ साल बाद उनके साथ 'दूल्हा दुल्हन'में हीरो का रोल निभाया।


नायिका के तौर पर साधना के अभिनय सफर की शुरुआत फिल्म 'लव इन शिमला' से हुई, जिसके निर्देशक थे आर.के. नैयर। उन्होंने ही साधना को नया लुक 'साधना कट दिया। दरअसल साधना का माथा बहुत चौड़ा था और उसे कवर किया गया बालों से, उस स्टाइल का नाम ही पड़ गया साधना कट। फिल्म निर्माण के दौरान साधना को फिल्म के निर्देशक आर.के.नैयर से प्रेम हो गया और बाद में उन्होंने उनसे शादी कर ली। फिल्म 'लव इन शिमला'सुपर हिट रही और यहीं से साधना का कामयाबी का सफर शुरू हो गया। इस फिल्म में कुल नौ गीत थे, जिनमें से 'यूं जिंदगी के रास्ते संवारते चले गए, और 'गाल गुलाबी किसके हैं तब बहुत पसंद किए गए थे। फिल्म 'लव इन शिमला' के बाद साधना को देव आनंद के साथ फिल्म 'हम दोनों में काम करने का अवसर मिला। फिल्म में देव आनंद ने दोहरी भूमिका निभाई थी, इसके बावजूद साधना के काम को दर्शकों ने बहुत पसंद किया और साथ ही साधना और देव आनंद की जोड़ी भी दर्शकों को बेहद पसंद आई। साधना के कॅरियर के शुरुआती दौर की फिल्म 'हम दोनों'में छह गीत थे जिन्हें संगीतकार जयदेव ने सुरीली धुनों से संवारा था।


साधना ने 'आरजू, 'मेरे महबूब', 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'मेरा साया', 'वक्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार' और 'असली नकली' जैसी कई ऐसी फिल्मों में काम किया था, जिन्हें दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इन फिल्मों के दिलकश गीत-संगीत ने इनकी कामयाबी में एक अहम भूमिका निभाई। उन दिनों फिल्म निर्माताओं के लिए साधना को अपनी फिल्म में लेने का मतलब था- सफलता की गारंटी।


साधना पर फिल्माए गए अनेक गीत सुपर हिट साबित हुए। इनमें 'झुमका गिरा रे' और 'तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा' (मेरा साया), 'ओ सजना बरखा बहार आई' और 'सुनो क्या कहता है झुमका' (परख), 'तेरा मेरा प्यार अमर',  'तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है' और 'इक बुत बनाऊंगा तेरा और पूजा करूंगा' (असली नकली),  'अभी ना जाओ छोडक़र कि दिल अभी भरा नहीं' (हम दोनों),  'बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी', 'आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे' और 'तुम्हें मुहब्बत है हमसे माना बताओ इसका सबूत क्या है' (एक मुसाफिर एक हसीना),  'गोरे गोरे चांद से मुख पर', 'कैसे करूं प्रेम की मैं बात' और 'मैं देखूं जिस ओर सखी री सामने मेरे सांवरिया' (अनीता) जैसे गीत आज भी संगीत प्रेमियों की पसंद की कसौटी पर कायम हैं। इनके अलावा 'लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो' (वो कौन थी), 'ऐ फूलों की रानी बहारों की मल्लिका' और 'अजी रूठ कर अब कहां जाइएगा' (आरजू), 'मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम' (मेरे महबूब), 'कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी' और 'हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए' (वक्त) जैसे गीतों ने भी दर्शकों को साधना का दीवाना बना दिया।


वर्ष 1964 में साधना को एक बार फिर राज खोसला के निर्देशन में फिल्म 'वो कौन थी' में काम करने का अवसर मिला। फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था, लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान ने दर्शकों को अपना बना लिया। फिल्म 'वो कौन थी' मदन मोहन के दिलकश संगीत और लता मंगेशकर की लाजवाब गायकी के लिए भी याद की जाती है। फिल्म के गीत 'नैना बरसे रिमझिम' को आज भी उसी शिद्दत के साथ सुना जाता है। साधना को मदन मोहन का साथ फिल्म 'मेरा साया' में भी मिला, जिसका टाइटल गीत 'तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा' साधना की छवि के साथ मानो एकाकार हो गया है। राज खोसला के निर्देशन में बनी 'एक मुसाफिर एक हसीना' और एच.एस. रवैल की 'मेरे महबूब' जैसी फिल्मों ने भी सफलता के इस सिलसिले को आगे बढ़ाया।


साधना के फिल्मी सफर पर भोपाल के लेखक अशोक मनवानी ने 'सुहिणी साधना' शीर्षक से एक किताब भी लिखी है। लेखक अशोक मनवानी का मानना है कि  साधना फिल्म इंडस्ट्री की प्रथम फैशन आइकॉन होने के साथ-साथ फस्र्ट यंग एंग्री वीमन (इंतकाम),फस्र्ट पॉपुलर आइटम सॉन्ग परफॉर्मर एक्ट्रेस ( मेरा साया ), पॉपुलर डबल रोल एक्ट करने वाली एक्ट्रेस (चार फिल्में) रहीं। इसके अलावा साधना ने रहस्यमय और प्रेम फिल्मों को नई परिभाषा भी प्रदान की। ऐसी विलक्षण अभिनेत्री को अपने जीवन पर किताब प्रकाशित कराने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। साधना के साथ हुई अपनी मुलाकातों को याद करते हुए अशोक मनवानी कहते हैं कि उनके जीवन के बारे में पूछने पर वे हमेशा यही कहती थीं कि मैं अपने बारे में क्या कहूं, मेरे बारे में दूसरे लोग क्या कहते हैं, यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।


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