कैसा होगा भविष्य का मीडिया ? जब हम मीडिया के आधुनिक परिदृश्य की कल्पना करते हैं, तो उसमें सैटेलाइट टेलीविजन की जो अहमियत है, उसे कतई अनदेखा नहीं कर सकते।


मीडिया की दुनिया में यह सवाल आज सबसे अहम है कि भविष्य का मीडिया कैसा होगा? दरअसल दुनिया जिस तेजी से बदल रही है, उसे देखते हुए यह सवाल और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। कम शब्दों में इस सवाल का जवाब दिया जाए, तो कहा जा सकता है कि भविष्य में इंटरनेट पर नियंत्रण किया जाएगा, उच्च गुणवत्ता वाले डिजीटल टीवी होंगे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उपयोग के लिए शुल्क देना होगा और टैबलेट पी.सी. पर टीवी सीरियल देखे जाएँगे। लेकिन हर नई तकनीक पुरानी तकनीक का ही एक उन्नत रूप होती है। इसलिए टेलीविजजन, रेडियो और इंटरनेट प्रसारण के  नए उपकरण ही भविष्य में मीडिया के स्वरूप का निर्धारण नहीं करेंगे। मीडिया के स्वरूप का निर्धारण उपभोक्ताओं द्वारा ही किया जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि भविष्य में नई प्रौद्योगिकी नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं का व्यवहार ही मीडिया के स्वरूप को निर्धारित करेगा। 
जहाँ तक मीडिया के भविष्य का संबंध है तो निकट भविष्य में इसके विभिन्न रूपों के बीच कोई खास फर्क नहीं रह जाएगा। मल्टीमीडिया ही मुख्य रूप से दर्शकों और श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि दर्शक या श्रोता खुद ही सामग्री का चयन करेंगे। वे ही यह निर्णय करेंगे कि कैसे कैमरे से खींची गई मूवी देखनी चाहिए या कैसे स्पीकर से आवाज सुननी चाहिए। पिछले कुछ समय में मीडिया क्षेत्र के विकास ने यह दर्शाया है कि पूरी दुनिया में प्रसारण के क्षेत्र में सरकारों और अन्य राष्ट्रीय नियामकों की भूमिका बढ़ेगी। सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि विभिन्न देशों में अपनी-अपनी ऑनलाइन मीडिया प्रणालियों की स्थापना की जाएगी। 
बहुत तेजी से सैटेलाइट टेलीविजन ने हमारे जीवन में एक अहम स्थान बना लिया है। मनोरंजन, ज्ञान-विज्ञान और सूचना के क्षेत्र में केबल टेलीविजन ने सत्तर के दशक में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी, पर सही अर्थों में टीवी दर्शकों ने इसे पहचाना 1990 के खाड़ी युद्ध में। टेड टर्नर के टीवी चैनल सीएनएन ने खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण किया और लोगों ने अपने टीवी सैट्स पर युद्ध के दिल दहलाने वाले दृश्यों को देखा। अब तक अपने टेलीविजन पर फिल्मी गीतों और चटपटे कार्यक्रमों का आनन्द लेने में ही जुटे टीवी दर्शकों ने पहली बार केबल टीवी की क्षमता को पहचाना और देखते ही देखते केबल टीवी के नेटवर्क ने देश भर में अपने पैर पसार लिए। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1991 में 49,450 घरों में केबल टीवी कनैक्शन पहुँच चुका था और ज्यादातर टीवी दर्शकों के लिए केबल टेलीविजन अब कोई नया शब्द नहीं रह गया था। लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत थी। तब किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि अगले दो दशकों के दौरान टेलीविजन की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं।
इसके दो दशक बाद यानी 2014 में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। अब हम डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) के दौर में हैं। केबल टेलीविजन के बाद डीटीएच ने टेलीविजन देखने के हमारे अंदाज को पूरी तरह बदल दिया है। शहरी टीवी दर्शक आज डीटीएच के जरिए अपनी पसन्द के तमाम टीवी चैनलों के कार्यक्रमों का आनन्द ले रहे हैं। न सिर्फ घरेलू टीवी चैनल, बल्कि दुनियाभर के चैनलों को केबल टीवी की मार्फत सीधे अपने टीवी सैट पर हासिल किया जा सकता है। पर इतना जरूर है कि कई बार दर्शकों को वे तमाम कार्यक्रम और चैनल भी देखने पड़ते हैं, जिन्हें या तो वे नापसन्द करते हैं या जिन्हें अपने टीवी सैट पर नहीं देखना चाहते।
टैम की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अनुसार देश में ऐसे परिवारों की संख्या 14 करोड़ 40 लाख से ज्यादा है जहां टेलीविजन देखा जाता है और इनमें से 10 करोड़ 30 लाख परिवार ऐसे हैं जो केबल ऑपरेटर या डीटीएच के जरिए सैटेलाइट चैनल देख रहे हैं। शहरों में 85 फीसदी घरों में टीवी सैट हैं और इनमें से 70 फीसदी घरों में सैटेलाइट चैनल देखे जाते हैं।
लम्बे समय तक केबल टीवी ऑपरेटर अपनी मर्जी और पसन्द के मुताबिक टीवी चैनल अपने दर्शकों को दिखाते रहे और उनका शुल्क भी उनसे वसूलते रहे, भले ही दर्शकों ने उन्हें देखा हो अथवा नहीं। केबल ऑपरेटरों की इस प्रवृत्ति को नियन्त्रित करने के मकसद से 29 सितम्बर, 1994 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसका शीर्षक था-'केबल टेलीविजन नेटवक्र्स (रेग्युलेशन) अध्यादेश-1994।' बाद में 17 जनवरी, 1995 को एक नया अध्यादेश जारी किया गया और इस अध्यादेश के स्थान पर संसद में एक विधेयक पेश किया गया, जिसे संसद की मंजूरी मिलने के बाद 'केबल टेलीविजन नेटवक्र्स (रेग्युलेशन) अधिनियम-1995' अस्तित्व में आया।
केबल अधिनियम का उद्देश्य देश में बेतरतीब तरीके से फैले केबल ऑपरेटरों के जाल को नियन्त्रित करना है। इस सिलसिले में केबल उपभोक्तओं के सुझावों और शिकायतों को भी पर्याप्त महत्त्व दिया गया और यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है कि यह अधिनियम प्रसारण/प्रकाशन सम्बन्धी अन्य नियमों-विनियमों की पालना भी सुनिश्चित करेगा। सिनेमैटोग्राफ एक्ट-1952 और कॉपीराइट एक्ट-1957 के साथ महिलाओं का अशोभनीय प्रस्तुतीकरण (निषेध) अधिनियम-1986 को लागू करने का काम भी केबल अधिनियम के जरिए करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जाहिर है कि बिना सेन्सर प्रमाण-पत्र वाली फिल्मों का प्रसारण रोकने और राष्ट्रहित में जरूरी सूचनाओं के प्रसारण को नियन्त्रित करने का काम भी केबल अधिनियम के जरिए किया गया है। इस तरह देश भर के हजारों केबल ऑपरेटरों के क्रियाकलापों पर अंकुश लगाने का यह अच्छा जरिया बना और लाखों करोड़ों केबल उपभोक्तओं ने भी राहत की साँस ली।
केबल अधिनियम के तहत प्रत्येक केबल ऑपरेटर के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। इसके लिए एक निर्धारित आवेदन-पत्र के साथ पचास रुपए का रजिस्ट्रेशन शुल्क तय किया गया। रजिस्ट्रेशन की अवधि 12 महीने तय की गई है और यही अवधि नवीनीकरण पर भी लागू है। रजिस्ट्रेशन के लिए जिला मजिस्ट्रेट को अधिकृत किया गया और उन्हें किसी भी आवेदन को नामंजूर करने का अधिकार भी दिया गया।
महत्त्वपूर्ण प्रावधान
1. किसी व्यक्ति को केबल टेलीविजन के जरिए ऐसे किसी विज्ञापन के प्रसारण/पुनप्र्रसारण का अधिकार नहीं होगा, जो अधिनियम की धारा 7 के तहत दिए गए विज्ञापन विनियम को पूरा नहीं करता हो;
2. प्रत्येक केबल ऑपरेटर को एक रजिस्टर रखना होगा, जिसमें उसके द्वारा प्रसारित किए गए चैनलों का सम्पूर्ण विवरण होगा। इस तरह का विवरण प्रसारण के बाद एक वर्ष तक की अवधि में भी रखना होगा;
3. केबल ऑपरेटर को दूरदर्शन के कम से कम दो चैनलों का प्रसारण अनिवार्य रूप से करना होगा;
4. केबल नेटवर्क के लिए ऑपरेटर को मानक उपकरणों का प्रयोग करना होगा। ये उपकरण भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणित होने चाहिएं;
5. ऑपरेटर को यह भी ध्यान में रखना होगा कि कहीं उसका प्रसारण नेटवर्क अन्य किसी अधिकृत दूरसंचार प्रणाली के संकेतों को बाधित तो नहीं कर रहा;
6. अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर सक्षम अधिकारी को केबल नेटवर्क से सम्बन्धित उपकरणों को जब्त करने का अधिकार होगा। जब्त किए गए उपकरणों को जिला न्यायालय की अनुमति के बिना दस दिन से अधिक समय तक जब्त नहीं रखा जा सकेगा; और
7. अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दण्ड का प्रावधान भी किया गया-(अ) पहली बार अपराध करने पर दो वर्ष की सजा और/या अधिकतम एक हजार रुपए का जुर्माना; एवं (ब) बार-बार अपराध कारित करने पर पाँच वर्ष की सजा और अधिकतम पाँच हजार रुपए का जुर्माना।
केबल नेटवर्क संशोधन विधेयक - 2002
वर्ष 2002 में संसद ने केबल नेटवर्क संशोधन विधेयक को मंजूरी दी। इस संशोधन विधेयक में ऐसे उपाय किए गए, जिससे कि केबल ऑपरेटरों के हाथों उपभोक्ताओं का शोषण रोका जा सके। विधेयक के जरिए इस बात को सुनिश्चित किया गया कि उपभोक्ता सैट टॉप बॉक्स के जरिए अपनी पसन्द के पे-चैनल देख सके। नए विधेयक में केबल ऑपरेटरों को दो तरह के चैनल दिखाने की अनुमति होगी-फ्री टू एयर या मुक्त चैनल और पे-चैनल यानी भुगतान पर उपलब्ध चैनल। मुक्त चैनलों के लिए उपभोक्ताओं को कोई मासिक शुल्क नहीं देना होगा। इस सुविधा के लिए शुरू में लिए जाने वाले शुल्क की सीमा भी सरकार तय करेगी। लेकिन केबल ऑपरेटर पे-चैनलों का शुल्क अपने हिसाब से तय कर सकेंगे। पे-चैनलों के लिए केबल ऑपरेटरों पर शुल्क सूची प्रदर्शित करने की अनिवार्यता लागू की गई, ताकि उपभोक्ता इस सूची को देख कर अपनी पसन्द के चैनलों का चयन कर सकें।
नए विधेयक में यह व्यवस्था भी की गई कि सभी टेलीविजन चैनलों और केबल ऑपरेटरों को अपने दर्शकों और राजस्व आदि के बारे में जानकारी सरकार को देनी होगी। संशोधन विधेयक के क्रम में सरकार ने भी स्पष्ट किया कि उसका इरादा टेलीविजन कार्यक्रमों पर किसी तरह का अंकुश लगाने का नहीं है। सरकार ने इस तरह डायरेक्ट टु होम (डीटीएच) व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त किया और सैट टॉप बॉक्स तथा डिश एण्टीना के जरिए सीधे घर पर प्रसारण/सिगनल प्राप्त करने का एक नया प्रावधान किया।
सरकार ने केबल टेलीविजन नेटवर्क (नियंत्रण) अधिनियम, 1995 में संशोधन करते हुए इस एक्ट में एक नया अनुच्छेद 4(ए) जोड़ा। इस एक्ट के तहत सरकार ने केबल ऑपरेटरों के लिए निश्चित प्रावधान तय किए। प्रमुख प्रावधानों पर एक नजर-
1. प्रत्येक केबल ऑपरेटर को एक निर्धारित प्रपत्र में सरकार के समक्ष यह जानकारी प्रस्तुत करनी होगी-
 (अ) ग्राहकों की कुल संख्या का विवरण 
 (ब) मासिक चंदे की दर
 (स) पे चैनल और फ्री टू एयर चैनल का विवरण
2. केबल ऑपरेटर को अपने ग्राहकों को स्पष्टï रूप में यह बताना होगा कि पे चैनल देखने की एवज में उन्हें कितनी राशि का भुगतान करना होगा और इस राशि में परिवर्तन कितने दिनों के अंतराल पर होगा।
3. प्रत्येक केबल ऑपरेटर को अपने राज्य, शहर, कस्बे या क्षेत्र के लिए निर्धारित तिथि के अनुसार पे चैनलों का प्रसारण करना होगा। इसके साथ ही चैनलों का प्रसारण उपलब्ध सिस्टम के जरिए करना होगा।
4. केबल ऑपरेटर के लिए अपने चैनल पैकेज में फ्री टू एयर चैनल शामिल करना अनिवार्य होगा। केबल पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम मनोरंजक, ज्ञानवद्र्धक और शिक्षाप्रद होने चाहिएं।
5. प्रत्येक राज्य, शहर, कस्बे या क्षेत्र में केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित संख्या के मुताबिक फ्री टू एयर चैनलों का प्रसारण करना होगा।
6. सरकार ने केबल किराये की अधिकतम राशि तय की है। केबल ऑपरेटर केबल धारक से केन्द्र सरकार द्वारा तय राशि से ज्यादा की मांग नहीं कर सकते हैं।
7. सरकार द्वारा देश के अलग-अलग राज्यों, शहरों, कस्बों और क्षेत्रों के लिए केबल किराये की अधिकतम राशि अलग-अलग तय की गई।
8. केबल ऑपरेटरों को जन सारधाण को सूचित करना होगा कि वे प्रसारित किए जा रहे पे चैनलों के लिए कितना भुगतान कर रहे हैं।
9. केबल धारकों को टेलीविजन नेटवर्क से पे चैनलों के सिग्नल प्राप्त करने के लिए अलग से कोई रिसीवर सैट लगाने की जरूरत नहीं होगी।
10. प्रत्येक केबल ऑपरेटर को केन्द्र सरकार को एक रिपोर्ट पेश करनी होगी, जिसमें कुल कनेक्शनों की संख्या और मासिक किराए के साथ पे चैनलों का ब्यौरा भी देना होगा।
इसी क्रम में कुछ अर्सा पहले सरकार ने देश के चार महानगरों में कण्डीशनल एक्सेस सिस्टम- कैस लागू करने के प्रयास भी किए। सर्वप्रथम सरकार ने घोषणा की कि 
15 जुलाई, 2003 से चार महानगरों-दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई में 'कैस' को लागू किया जाएगा। पर व्यापक विरोध के बाद सरकार ने यह तिथि बढ़ाकर 1 सितम्बर कर दी। तत्कालीन सूचना-प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने केबल ऑपेरटरों के मनमाने व्यवहार से उपभोक्ताओं को मुक्ति दिलाने के लिए कैस को महत्त्वपूर्ण बताया। कैस लागू होने के बाद उपभोक्ताओं को चैनल देखने के लिए एक सैट टॉप बॉक्स की जरूरत बताई गई, पर तमाम प्रयासों के बावजूद कण्डीशनल एक्सेस सिस्टम लागू नहीं हो सका।
इस दौरान डायरेक्ट टू होम सेवा ने चरणबद्ध तरके से अपना विस्तार किया। प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के चलते डीटीएच सेवा के उपकरणों की दरें भी काफी कम हो गई। आज मुख्य तौर पर डीडी डायरेक्ट, डिश टीवी, टाटा स्काई, एयरटेल, सन डायरेक्ट, रिलायंस डिजीटल टीवी और वीडियोकॉन डी2एच के नाम से डीटीएच सेवा बाजार में उपलब्ध है। केबल टेलीविजन नेटवर्क से जुड़े उपभोक्ताओं की संख्या भी आज तेजी से बढ़ती जा रही है (देखें टेबल)।
शहरों में केबल नेटवर्क का विस्तार
वर्ष                                          केबल कनेक्शन
जनवरी 1992                             4,12,000
नवम्बर 1992                          30,30,000
जनवरी 1994                          70,40,000
दिसम्बर 1994                     1,10,80,000
जनवरी 1996                       1,80,10,000
जनवरी, 1999                      2,20,16,000
दिसम्बर, 2000                    2,80,10,000
जनवरी, 2004                      6,50,00,000
जनवरी, 2010                      8,30,00,000
जनवरी, 2013                    10,30,00,000
केबल टीवी उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या के बाद अगर हम उपभोक्तओं की सन्तुष्टि की बात करें, तो साफ झलकता है कि इस दिशा में अभी हमें काफी लम्बा फासला तय करना है। आज भी ज्यादातर केबल ऑपरेटर अपनी पसन्द के चैनलों का प्रसारण अपने नेटवर्क के जरिए कर रहे हैं। उपभोक्ताओं की पसन्द या मर्जी की कहीं कोई अहमियत नजर नहीं आती। औसतन 30 से 60 चैनलों का पैकेज ज्यादातर केबल ऑपरेटर ऑफर करते हैं,बदले में 200 से 350 रुपए का शुल्क वसूला जाता है। उपभोक्ता के सामने कोई विकल्प नजर नहीं आता। केबल ऑपरेटर ही यह निर्णय करता है कि उसे कोन से चैनल देखने हैं। प्रसारण की गुणवत्ता की बात करना तो अभी बेमानी है। केबल ऑपरेटर अपने व्यवसाय में बहुत अधिक पूँजी का निवेश करने के इच्छुक नजर नहीं आते और कम क्षमता के डिश एन्टीना तथा साधारण उपकरणों के जरिए वे केबल नेटवर्क का संचालन करते हैं।
इसी सिलसिले में हाल के दौर में कुछ बड़ी और अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों के भी केबल के मैदान में कूदने के संकेत मिले हैं। अमरीका की तीन बड़ी कम्पनियों-युनाइटेड इण्टरनेशनल होल्डिंग्स (यूआईएच), फाल्कन केबल और टेलीक्म्युनिकेशन इनकॉरपोरेटेड (टीसीआई) ने भारत के केबल बाजार में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। इन कम्पनियों ने साझेदारी के आधार पर इस मैदान में उतरने की तैयारी कर ली है। टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह और आरपीजी समूह जैसे बड़े कारोबारी घरानों ने भी अमरीकी कम्पनियों से हाथ मिलाने की पहल की है। हाल ही में फाल्कन केबल ने नई दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ संयुक्त रूप से 'इण्डिया इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजीस लिमिटेड' नामक कम्पनी की शुरुआत की है।  केबल ऑपरेटर के व्यवसाय में उतरी कुछ बड़ी कम्पनियाँ-
1. इन केबलनेट (हिन्दुजा समूह द्वारा संचालित)
2. सिटी केबल (जी टीवी और न्यूज टेलीविजन का संयुक्त उपक्रम)
3. एशियानेट
4. हैथवे केबल एण्ड डॉट कॉम
5. ऑरटेल कम्युनिकेशन्स
6. आरपीजी नेटकॉम (आरपीजी ग्रुप की कम्पनी)
7. कॉक्स कम्युनिकेशन्स
स्पष्ट है कि केबल व्यवसाय आज चौतरफा पाँव पसार रहा है। सैटेलाइट चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण केबल टीवी से जुडऩे वाले परिवारों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। एक अध्ययन के अनुसार 1996 में दिल्ली में केबल टीवी से जुड़े सैटेलाइट चैनलों के कार्यक्रम देखने वाले दर्शकों की संख्या (कुल टीवी दर्शकों की संख्या में) 11.6 प्रतिशत थी, जो आज बढ़ कर 22.8 प्रतिशत हो गई है। केबल टीवी देखने वाले दर्शकों का राज्यवार प्रतिशत -
राज्य                प्रतिशत
राजस्थान            33.9
गुजरात               62.5
तमिलनाडु           53.2
आन्ध्रप्रदेश          62.1
मध्यप्रदेश           49.8
पंजाब                 43.8
महाराष्ट्र             66.9
हरियाणा             33.8 
उड़ीसा                 25.2 
बिहार                 26.7
स्रोत-सोनी टेलीविजन के लिए आईएमआर सर्वे।


केबल टेलीविजन की दुनिया में वर्ष 2013 में एक अहम बदलाव तब आया, जब टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई - भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण) ने केबल टीवी के डिजिटलीकरण की मुहिम शुरू की। ट्राई ने साफ कहा कि डिजिटलीकरण के तहत कस्टमर वेरिफिकेशन में अब और सुस्ती बरती नहीं जाएगी। ट्राई ने कहा है कि देश के 38 शहरों में जहां केबल के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, वहां हर हाल में सभी कस्टमरों को वेरिफिकेशन फॉर्म जमा करने ही होंगे, वरना उनकी सेवा बंद कर दी जाएगी। हालांकि मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में काम की प्रगति लक्ष्य से काफी कम है, ऐसे में वहां कुछ और दिनों की मोहलत दी गई। ट्राई के अनुसार नई गाइडलाइंस का पालन दिल्ली और इससे सटे इलाकों में तो ढंग से हुआ है, दूसरे राज्यों के शहरों में अभी भी काम बाकी है। उन्होंने कहा कि ट्राई ने हल्की राहत दी है और इसके बाद इसमें कोई और विचार नहीं होगा। ट्राई ने बिना किसी कारण के इसमें हो रही देरी पर अंसतोष जताया। उसने कहा कि पहले से तय योजना के अनुसार केबल कस्टमरों को अपने यूज के हिसाब से बिल मिलने लगेंगे। ट्राई के नए निर्देश के तहत अब केबल ऑपरेटर को हर ग्राहकों को उनका महीने के बिल का पूरा ब्योरा देना होगा और लोग अपने हिसाब से हर महीने इसे तय कर सकेंगे। इस दौरान यदि कोई अपने घर से बाहर गया है, तो उसे उस समय का बिल नहीं देना होगा, बशर्ते उसने समय रहते इसकी सूचना केबल ऑपरेटरों को दी हो।
दिल्ली में डिजिटलीकरण का शत-प्रतिशत पालन हो गया है। एनसीआर में इसकी प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। ऐसे लोगों की संख्या लगभग नहीं के बराबर है, जिन्होंने अब तक अपने फॉर्म जमा नहीं कराए हैं। बिलिंग की योजना भी तय प्रोग्राम के अनुसार लागू कर दी गई है। ट्राई के अनुसार अब केबल डिजिटलीकरण का तीसरा दौर शुरू होने वाला है।
ट्राई ने सैटेलाइट चैनलों को प्रति घंटे 12 मिनट की विज्ञापन सीमा में बांधने का प्रयास भी किया। ट्राई ने तय किया कि कोई भी टीवी चैनल हर घंटे 12 मिनट से अधिक का विज्ञापन या अन्य प्रचार सामग्री का प्रसारण नहीं कर सकता है। हालांकि ट्राई के इस फैसले के खिलाफ कई टीवी चैनल, अपीलीय न्यायाधिकरण टीडीसैट चले गए। ट्राई ने टीवी चैनलों के लिए एक घंटे में विज्ञापन के लिए 12 मिनट की सीमा तय कर दी। इससे पहले इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन ने विज्ञापन सीमा पर ट्राई के नियमन के खिलाफ अपनी याचिका वापस ले ली थी। ब्रॉडकास्टर कंपनियां सन टीवी, बी4यू ब्रॉडबैंड, 9 एक्स मीडिया तथा पालिमर मीडिया विज्ञापन सीमा के मुद्दे पर दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) चली गई। ये चारों ही आईबीएफ की सदस्य हैं। इसके अलावा टीवी विजन तथा ई24 ने भी विज्ञापन सीमा के खिलाफ टीडीसैट में अपील कर दी। आईबीएफ के एक अन्य सदस्य रिलायंस बिग ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लि. ने भी इसी तरह की याचिका दायर की। 


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