कैलाश सत्यार्थी के सफ़र को समेटा लघु फिल्म में

 


जयपुर।  नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और उनके संगठन बचपन बचाओ  आंदोलन (बीबीए) पर आधारित गैर-फीचर फिल्म "सत्यार्थी" को गोवा में हाल ही संपन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में बहुत सराहा गया।  यह फिल्म कैलाश सत्यार्थी की यात्रा के बारे में है और किस तरह वे  बच्चों को बचाते हैं, यही सब कुछ फिल्म में दिखाया गया है।  


 गैर-फीचर फिल्म सत्यार्थी  के निर्देशक पंकज जौहर ने कहा कि मैं  सत्यार्थी को उनके नोबल पुरस्कार प्राप्त करने के पहले से जानता हूं। मैं किसी और फिल्म पर शोध कर रहा था, लेकिन बाल श्रम पर वृत्तचित्र की चर्चा प्रारंभ हो गई।


पंकज जौहर ने कहा कि मैंने उनके संगठन से भी मदद ली। बाल श्रम की कुप्रथा में धकेले गए अधिकतर बच्चे ओडिशा, झारखंड, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के हैं। यौन तस्करी मुख्य रूप से पूर्वोत्तर तथा बंगाल से की जाती है। लड़कियां हरियाणा में तथा दक्षिण के शिवकाशी में बेची जाती हैं। अभिभावक नहीं जानते कि उनके बच्चों के साथ क्या हो रहा है और बच्चों को झूठे वादों से लुभाया जाता है। उन्हें स्थिति की वास्तविकता कभी नहीं बतायी जाती।    


कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों को दासता से मुक्त करने में अपना जीवन दिया है और उन्हें 2014 में उनके कार्य के लिए नोबल शांति पुरस्कार दिया गया। उनके संगठन  ने पिछले तीन दशकों में 100,000 बच्चों को बचाया है और सैंकड़ों तस्करों को अपनी राह सुधारने में प्रभावित किया है। यह फिल्म उनकी यात्रा को देखती है और आगे बढ़ते हुए यह पाती है कि उन्होंने किस तरह हजारों बच्चों की जिंदगी बदल दी है।



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